दिग्गज उद्योगपति गौतम अदाणी के नेतृत्व वाले समूह को गंभीर नियामकीय आरोपों का सामना शायद नहीं करना पड़े क्योंकि भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) की जांच में समूह की फर्मों द्वारा किसी बड़ी चूक का पता नहीं लगा है। जांच रिपोर्ट की जानकारी रखने वाले सूत्रों के अनुसार हिंडनबर्ग रिसर्च द्वारा लगाए गए तमाम आरोपों की जांच करते समय सेबी संबंधित पक्ष के लेनदेन का खुलासा नहीं करने का आरोप ही साबित कर पाया है। इस उल्लंघन के लिए नियामकीय मानदंड के मुताबिक 1 करोड़ रुपये तक का जुर्माना लगाया जाता है।
सूत्रों ने कहा कि 300 पृष्ठ की जांच रिपोर्ट में शेयर भाव में हेरफेर और समूह की कुछ फर्मों में भेदिया कारोबार के नियमों के उल्लंघन जैसे अन्य गंभीर आरोपों का कोई प्रतिकूल नतीजा नहीं दिखा है। उक्त सूत्र ने कहा कि उदाहरण के तौर पर अदाणी समूह की 7 कंपनियों के शेयर भाव में हेरफेर की जांच करते हुए नियामक इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि 2020-21 में कम शेयर उपलब्ध होने की वजह से भाव बढ़े थे।
29 अगस्त को उच्चतम न्यायालय में जमा कर सकती है रिपोर्ट
सूत्रों के अनुसार अंतिम रिपोर्ट में 6 शॉर्ट सेलरों और हिंडनबर्ग रिपोर्ट आने के समय 18 जनवरी से 31 जनवरी के बीच अदाणी एंटरप्राइजेज सहित समूह की कुछ फर्मों में शॉर्ट पोजिशन के कारण उन्हें हुए लाभ की राशि का ब्योरा हो सकता है। सेबी 29 अगस्त को उच्चतम न्यायालय में जांच के नतीजे जमा करा सकता है।
अदाणी समूह ने मामला अदालत में होने की वजह से इस बारे में कोई टिप्पणी करने से मना कर दिया। इस बारे में जानकारी के लिए सेबी कोई ईमेल भेजा गया लेकिन खबर लिखे जाने तक कोई जवाब नहीं आया।
शीर्ष अदालत ने सेबी को इस मामले में जांच पूरी कर 14 अगस्त तक अपनी रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया था। मगर सेबी ने अदालत से जांच पूरी करने के लिए 15 दिन की और मोहलत ले ली थी। पिछले शुक्रवार को नियामक ने स्थिति रिपोर्ट जमा कर दी, जिसमें जांच के दौरान उठाए गए कदमों का विस्तार से उल्लेख किया गया है।
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13 मामलों की जांच पूरी
स्थिति रिपोर्ट में सेबी ने कहा है कि उसने अदाणी समूह से संबंधित 24 मामलों में से 22 की जांच पूरी कर ली है। इस दौरान उसने शेयरों के करीब 35 करोड़ लेनदेन के आंकड़े जांचे और अदाणी की 7 कंपनियों के सौदों से जुड़े हजारों दस्तावेजों की जांच की। सेबी ने कहा है कि 1 अप्रैल, 2005 से 31 मार्च, 2023 के बीच संबंधित पक्षों के लेनदेन से संबंधित 13 मामलों की जांच पूरी हो गई है।
संबंधित पक्ष के लेनदेन में सूचीबद्ध कंपनी या उसकी सहायक कंपनी खुद से या सहायक कंपनी से संबंधित किसी पक्ष के साथ संसाधनों अथवा सेवाओं का लेनदेन करती है। सूचीबद्ध कंपनी के प्रवर्तक अथवा प्रवर्तक समूह से जुड़े किसी भी व्यक्ति अथवा संस्था को संबंधित पक्ष कहा जाता है।
सेबी ने अदाणी समूह की कंपनियों- अदाणी एंटरप्राइजेज, अदाणी इन्फ्रा, अदाणी पावर, अदाणी माइनिंग और अदाणी ग्लोबल- द्वारा एनक्यूएक्सटी, एडिकॉर्प, कारमाइकल रेल ऐंड पोर्ट सिंगापुर होल्डिंग्स, रहवर इन्फ्रास्ट्रक्चर, माइलस्टोन ट्रेडलिंक्स और पीएमसी प्रोजेक्ट्स सहित कई पार्टियों के साथ हुए लेनदेन की जांच की है। बाजार नियामक ने उनके बीच हुए ऋण के लेनदेन पर भी गौर किया है।
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विदेशी नियामकों से नहीं मिली पर्याप्त जानकारी
सेबी ने कहा कि एमपीएस मामले में उसने 13 विदेशी कंपनियों (12 विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक और एक विदेशी कंपनी) की जांच की। विदेशी नियामकों से पर्याप्त जानकारी न मिलने के कारण जांच अभी पूरी नहीं हुई है।
गौरतलब है कि इन 13 विदेशी कंपनियों को अदाणी समूह की कंपनियों के सार्वजनिक साझेदार की श्रेणी में रखा गया था। मगर हिंडनबर्ग की रिपोर्ट में इनमें से कुछ को करीबी सहायक कंपनियों अथवा अदाणी समूह के चेयरमैन गौतम अदाणी के बड़े बेटे विनोद अदाणी द्वारा संचालित कंपनी बताया गया था।
बाजार नियामक का कहना है कि कुछ बाहरी एजेंसियों/ संस्थाओं से जानकारी मिलने का इंतजार किया जा रहा है। इसलिए हिंडनबर्ग रिपोर्ट के जारी होने से पहले और बाद में अदाणी समूह के शेयरों की खरीद-फरोख्त से जुड़े एक अन्य मामले की जांच पूरी नहीं हो सकी है।