भूकंप के बाद तुर्की में पुनर्निर्माण कार्य से इस्पात मांग में तेजी आने की संभावना है, जिससे भारत समेत वैश्विक तौर पर इस्पात निर्माताओं के लिए अवसर पैदा हो रहे हैं।
वर्ष 2021 में, तुर्की का कच्चा इस्पात उत्पादन 4 करोड़ टन के पार पहुंच गया था। इसमें से 2.2 करोड़ टन का निर्यात किया गया, जिससे वह विश्व इस्पात क्षेत्र में एक प्रमुख देश बन गया।
तुर्की में भूकंप से हुई तबाही का दोहरा प्रभाव देखा जा सकता है। जहां एक तरफ इस देश को व्यापार प्रवाह प्रभावित हुआ है, वहीं देश के पुनर्निर्माण में बड़े पैमाने पर इस्पात की जरूरत होगी।
एक प्रमुख इस्पात कंपनी ने कहा कि तुर्की में भूकंप से इस्पात आपूर्ति प्रभावित हुई है।
उसका कहना है, ‘इस्पात उत्पादन से जुड़े कई क्षेत्र प्रभावित हुए हैं। आपूर्ति-मांग के बीच अंतर पैदा हुआ है जिससे कीमतों में उतार-चढ़ाव दर्ज किया जा रहा है।’
इस्पात उत्पादक कंपनी ने कहा, ‘जहां तक देश के पुनर्निर्माण का सवाल है, भारतीय इस्पात उद्योग इस्पात आपूर्ति का पूरक हो सकता है।’
आर्सेलरमित्तल, निप्पॉन स्टील इंडिया (एएम/एनएस इंडिया) के मुख्य विपणन अधिकारी रंजन धार ने कहा, ‘भूकंप के बाद तुर्की सरकार की पुनर्निर्माण योजना से वैश्विक तौर पर मांग बढ़ेगी, संभवत: 2023 की दूसरी छमाही से इसमें इजाफा देखने को मिलेगा। अक्सर भारत करीब 5-7 प्रतिशत निर्यात करता है और कभी कभी यह आंकड़ा 10 प्रतिशत भी हो जाता है। तुर्की और भारत के बीच पहले से ही मजबूत इस्पात व्यापार रहा है। जहां तक तुर्की के पुनर्निर्माण के लिए इस्पात आपूर्ति का सवाल है, भारत पसंदीदा भागीदारों में से एक बना रहेगा।’
श्याम मेटालिक्स के उपाध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक बृज भूषण अग्रवाल का कहना है कि तुर्की में इन्फ्रास्ट्रक्चर काफी हद तक प्रभावित हुआ है। अग्रवाल ने कहा, ‘तुर्की का यूरोपीय संघ के साथ मुक्त व्यापार समझौता है, लेकिन आपूर्ति श्रृंखला में समस्याएं पैदा हुई हैं। तुर्की मिलों ने देश के पुनर्निर्माण पर ध्यान केंद्रित किया है।’
उन्होंने कहा, ‘ज्यादातर मांग पश्चिमी देशों से हासिल होगी, क्योंकि भूराजनीतिक समस्याएं कम हुई हैं। भारत को बेहद दमदार भूमिका निभानी होगी।’
2021 में, यूरोपीय संघ तुर्की इस्पात के लिए प्रमुख स्थान था और देश से कुल निर्यात में उसका योगदान करीब 31 प्रतिशत था।
हालांकि तुर्की के पुनर्निर्माण से लॉन्ग श्रेणी के इस्पात उत्पादों की मांग नहीं बढ़ सकेगी, क्योंकि इनका इस्तेमाल (शुल्क हटाए बगैर) मुख्य तौर पर निर्माण क्षेत्र में होता है।
इंडियन स्टील एसोसिएशन के महासचिव आलोक सहाय ने कहा कि तुर्की का पुनर्निर्माण बेहद जरूरी है। हालांकि उनका मानना है कि कुछ कच्चे माल पर ऊंचे आयात शुल्क की वजह से भारत के लिए यह ज्यादा अच्छा अवसर नहीं है।
उनका कहना है, ‘यह शायद उन देशों के लिए अच्छा अवसर हो सकता है जिन्होंने रियायती आयात शुल्क (जैसे ब्रिटेन और यूरोपीय संघ आदि) के साथ तुर्की के संग एफटीए कर रखा है।’
एसऐंडपी ग्लोबल मार्केट इंटेलीजेंस में सहायक निदेशक (मूल्य निर्धारण एवं खरीदारी) आशिमा त्यागी का भी कहना है कि भारतीय मिलों के लिए तुर्की को सरिया का सफलतापूर्वक निर्यात कई कारकों पर निर्भर करेगा, जिनमें तुर्की सरकार द्वारा सरिया और अन्य धातु पर आयात शुल्क हटाना, कीमतों को प्रतिस्पर्धी बनाना मुख्य रूप से शामिल हैं।