राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली एवं इसके आस-पास के क्षेत्र धुंध की चादर में लिपटी साफ हवा के लिए तरस रहे हैं। राजधानी में हवा की गुणवत्ता बेहद खराब हो गई है और इसे दर्शाने वाला सूचकांक 400 से कुछ ही कदम दूर खड़ा है।
मगर गौर करने वाली बात यह है कि प्रायः दिल्ली एवं आस-पास के इलाकों में हरेक साल इस समय धुंध एवं वायु गुणवत्ता प्रभावित करने वाला कारक किसी की जुबान पर नहीं है।
शोध एजेंसियों ने कुछ आंकड़ों का विश्लेषण किया है और बिज़नेस स्टैंडर्ड ने भी इन्हें देखा है। विश्लेषण के अनुसार पंजाब और हरियाणा में कृषि अवशेष जलाने की घटनाओं में बहुत कमी आई है।
इसके बाद अब सबका ध्यान जलवायु से जुड़े और मौसमी कारकों पर टिक गया है और अनुमान लगाया जा रहा है कि कहीं न कहीं ये कारक ही दिल्ली में वायु प्रदूषण के लिए जिम्मेदार हैं।
क्लाइमेट ट्रेंड्स ने जो आंकड़े जुटाए हैं उनके अनुसार पंजाब में 1 अक्टूबर से 5 नवंबर के बीच खेतों में पराली आदि जलाने की 14,255 घटनाएं दर्ज हुई हैं, जो पिछले साल दर्ज समान अवधि की तुलना में 47.8 प्रतिशत कम हैं।
हरियाणा में 1 अक्टूबर से 5 नवंबर के बीच 1,845 ऐसी घटनाएं सामने आईं, जो पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 38.04 प्रतिशत तक कम हैं। ये आंकड़े नासा अर्थ और सीपीसीबी द्वारा जुटाए गए हैं।
क्लाइमेंट ट्रेंडर्स ने अपने विश्लेषण में कहा कि हवाओं की दिशा पर उपलब्ध आंकड़ों के अध्ययन से पता चलता है कि पंजाब और हरियाणा से चलने वाली हवा और दिल्ली में प्रदूषण के बीच गहरा संबंध रहा है।
भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) के वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा कि पिछले कुछ दिनों में हवा की गति महज 5-6 किलोमीटर प्रति घंटा रही है और यह उत्तर-पश्चिम दिशा यानी पंजाब और हरियाणा से आ रही है। तो क्या इन हवाओं से प्रदूषण स्तर बढ़ा है, इस सवाल पर अधिकारियों का कहना है कि वे इस पर टिप्पणी करने की स्थिति में नहीं हैं क्योंकि उनका काम मौसमी एवं जलवायु से जुड़े कारकों पर नजर रखना है।
मगर मौसम का पूर्वानुमान लगाने वाली निजी संस्था स्काईमैट वेदर में उपाध्यक्ष- मौसम विज्ञान एवं जलवायु परिवर्तन- महेश पालावत ने कहा कि राष्ट्रीय राजधानी में प्रदूषण अचानक बढ़ने के पीछे मौसमी कारक ही जिम्मेदार हैं।
पालावत ने कहा, ‘हवा की गति काफी कम है जिससे धूल कण एवं अन्य प्रदूषक कम नहीं हो रहे हैं और वे धरती की सतह से काफी नजदीक बने हुए हैं। इससे लोगों को सांस लेने में परेशानी का अनुभव हो रहा है।‘
उन्होंने कहा कि अगर हवा की गति लगभग 11-15 किलोमीटर प्रति घंटा होती तो फिर ऐसी नौबत पैदा नहीं आती क्योंकि धूल कण एवं वायु को प्रदूषित करने वाले अन्य चीजें एक जगह एकत्र नहीं रह पातीं।
पालावत ने कहा, ‘प्रातः काल हवा काफी भारी होती है इसलिए प्रदूषक कुहासे के साथ मिल जाते हैं और भारी हो जाते हैं। हवा की गति कम रहने से वे धरती की सतह की तरफ बढ़ने लगते हैं जिससे आसमान धुंधला और बादल से ढका प्रतीत होता है।‘
उन्होंने कहा कि 11 नवंबर से हवा की गति बढ़कर 15-20 किलोमीटर होने की संभावना है जिससे वायु प्रदूषण से राहत मिल सकती है।
भारतीय मौसम विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि मंगलवार से हवा की दिशा बदली है और अब यह उत्तर-पश्चिम दिशा के बजाय दक्षिण-पूर्व दिशा से बह रही है।
अधिकारी ने कहा कि इसका यह मतलब भी हो सकता है कि पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने से उठने वाला धुआं दिल्ली एवं इसके आस-पास के क्षेत्रों पर बहुत असर नहीं डाल पाएगा।
मगर इससे अधिक खुश होने की वजह तो नहीं मिल रही है। इसका कारण यह है कि दीवाली के बाद पंजाब और हरियाणा में धान की कटाई शुरू हो जाएगी जिसके बाद पराली एवं अन्य कृषि अवशेष जलाने के मामले बढ़ जाएंगे।
दीवाली के बाद उत्तर प्रदेश और बिहार के कृषि श्रमिक इन दोनों राज्यों में लौट आएंगे। इन दोनों राज्यों में मॉनसून की शुरुआत में ही भारी बारिश हुई थी जिसके बाद खेतों में पानी भर गया था और फसलें बरबाद हो गई थीं। इन दोनों राज्यों में कई जिलों में धान की दोबारा बोआई हुई थी।