गोवा की सुबह की शांति में खलल कौओं के झुंड और गिलहरियों की आवाज के साथ-साथ साइकिल के हॉर्न की गड़गड़ाहट से पड़ती है। ये साइकिल सवार अपने सामान को बेंत के बास्केट में अखबारों या प्लास्टिक में लपेटकर, सावधानी से रखकर ले जाते हैं और ये गोवा में रहने वालों लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी का अहम हिस्सा हैं। ये अमूमन पाव बेचने वाले लोग होते हैं।
पाव को गोवा के सभी व्यंजनों के साथ खाया जाता है लेकिन पाव बनाना और बेचना बेहद कठिन काम है। इसे बनाने वाले परिवार इसे ताजा बेक करने के लिए सुबह जल्दी उठते हैं और अमूमन पुरुष ही इसे बेचने के लिए साइकिल पर निकलते हैं। इन गुजरते वर्षों के दौरान इस काम के लिए स्थानीय लड़कों को ढूंढना मुश्किल हो रहा है ऐसे में कई बेकरी ने प्रवासी लोगों को काम पर रखना शुरू कर दिया है।
जावेद पटना के रहने वाले हैं। वह गोवा के विभिन्न हिस्सों में रह चुके हैं। करीब 20 साल पहले ही वह गोवा घर से भाग कर आए थे जब वह बेहद कम उम्र के थे। वह गोवा के स्थानीय लहजे में बड़ी सहजता से बात कर लेते हैं हालांकि उनकी बोली में बिहारी पुट कभी-कभी सामने आ जाता है। उन्हें गोवा की राजनीति और यहां के समाज की अच्छी समझ है।
वह कहते हैं, ‘गोवा के लोग बेहद दोस्ताना रवैया रखने वाले लोग हैं। भले ही कई लोग हमें ‘भारतीय’ कहते हैं लेकिन मैं खुद को गोवावासी ही मानता हूं। मैं पाव बेचता हूं और मुझे यहां के सारे स्थानीय व्यंजन बनाने आते हैं। मैं यहां के रीति-रिवाजों को भी अच्छी तरह समझता हूं। एक बार जब मैं ठीक-ठाक बचत कर लूंगा तब मैं जमीन का एक छोटा प्लॉट खरीदूंगा और फिर मैं भी गोवावासी बन जाऊंगा।’ उनका कहना है कि भूमिपुत्र ‘विधेयक’ उन्हें ‘धरती पुत्र’ बनने में मदद करेगा।
गोवा ‘भूमिपुत्र अधिकारिणी विधेयक, 2021’ का विरोध करने वाले नेताओं को इसी बात का डर सता रहा है कि सरकारी या अन्य जमीन पर अतिक्रमण करके राज्य में जमीन हथियाने वाले गैर-गोवावासी अपने दावे को और पुख्ता करने में सक्षम होंगे और गोवा की मूल आबादी में जो भिन्नता पहले ही आ चुकी है उसमें और भी बदलाव दिखने लगेगा। हालांकि इस लिहाज से न तो जावेद और न ही विपक्ष पूरी तरह से सही है।
भूमिपुत्र अधिकारिणी विधेयक की चर्चा जुलाई 2021 में शुरू हुई जब इसे राज्य की 40 सदस्यीय विधानसभा में विपक्ष के 12 सदस्यों के वॉकआउट के बीच गोवा विधानसभा में पेश कर पारित कराने की कोशिश की गई। हालांकि, सोशल मीडिया पर विधानसभा के अंदर और बाहर के हंगामे की तस्वीरों के कारण, विधेयक को कभी राज्यपाल के पास नहीं भेजा गया और न ही इसे अधिसूचित नहीं किया गया।
यह विरोध तब तक जारी रहा जब तक कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रमोद सावंत के नेतृत्व वाली सरकार ने 10 अगस्त, 2023 को विधानसभा के अंतिम दिन इसे वापस नहीं ले लिया और इसने कानून की मूल भावना को बरकरार रखते हुए नए रूप में वापस लाने का वादा करते हुए कहा कि ‘इसे, ‘मूल गोयनकर’ (मूल गोवावासी) के सम्मान के साथ जीने में सक्षम करने लायक बनाया जाएगा।’
जिस विधेयक को अब वापस ले लिया गया है उसके मुताबिक 1 अप्रैल, 2019 की तारीख तक राज्य में 30 साल या उससे अधिक समय से रहने वाले किसी भी व्यक्ति को भूमिपुत्र माना जाएगा और स्वामित्व स्पष्ट नहीं होने पर वे अपने ‘छोटे आवास इकाई’ के मालिक बनने के हकदार होंगे।
विधेयक के उद्देश्यों और कारणों का जिक्र करते हुए बताया गया है कि यह ‘एक छोटी आवास इकाई’ पर कब्जे वाले निवासी को मालिकाना हक देने की व्यवस्था करता है ताकि वह गरिमा और आत्म-सम्मान के साथ रह सकें और अपने जीवन के अधिकार का इस्तेमाल कर सके।’ ‘छोटी आवास इकाई’ का अर्थ है 250 वर्ग मीटर जमीन पर बना घर जो सरकारी जमीन, निजी स्वामित्व वाली जमीन या समुदाय की जमीन हो सकती है।
डिप्टी कलेक्टर की अध्यक्षता वाली एक समिति और शहरी योजना विभाग, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभागों के अधिकारियों और संबंधित तालुकों के ममलतदारों को दावे की जांच करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। समिति 30 दिनों के भीतर इन जमीनों पर आपत्ति दर्ज करने के लिए निमंत्रण देगी जिसमें भूस्वामी के साथ-साथ स्थानीय निकाय भी शामिल हो सकते हैं जो ‘भूमिपुत्र’ को मालिकाना हक देने पर निर्णय लेंगे।
हालांकि पूरे विवाद की जड़ यही है। विपक्षी सदस्यों ने गोवा में बाहरी लोगों के आने का विरोध करते हुए कहा कि यह विधेयक आगामी विधानसभा चुनावों से पहले गोवा में पंजीकृत प्रवासी मतदाताओं को लुभाने की कवायद से ज्यादा कुछ नहीं है, भले ही इन प्रवासियों ने राज्य की सरकारी भूमि पर अतिक्रमण किया हो।
कांग्रेस लीगल सेल के अध्यक्ष कार्लोस फेरेरा कहते हैं, ‘भूमिपुत्र की परिभाषा से ही इसका मूल भाव खत्म हो रहा है और यह गोवा राज्य और गोवा में रहने वाले हर ईमानदार नागरिक पर हमला है।
इस परिभाषा के अनुसार, कोई भूमिपुत्र पिछले 30 वर्षों से गोवा में कहीं भी रहा हो लेकिन 1 अप्रैल, 2019 से पहले अतिक्रमण करके ही सही, इसके एक अवैध घर का निर्माण होना चाहिए। इसका अर्थ यह है कि अतिक्रमण करने वाला व्यक्ति जो 30 साल या उससे अधिक समय से यहां नहीं रहा हो, उसे भी भूमिपुत्र के योग्य मान लिया जाएगा।’
विपक्ष के विरोध से बेपरवाह सरकार ने 10 अगस्त को विधेयक वापस ले लिया, लेकिन इसका एक दूसरा संस्करण लाने का वादा किया है जिसे इस बार भूमि अधिकारिणी विधेयक, 2023 कहा जा रहा है। इस विधेयक को लगभग दो महीने बाद होने वाले विधानसभा के आगामी सत्र में पेश किया जाएगा।
नए प्रावधानों के बारे में बताते हुए बाबुश नाम से जाने जाने वाले, राजस्व मंत्री अतनासियो मॉनसेरेट ने गोवा विधानसभा को बताया, ‘हम भूमि रिकॉर्ड के साथ आधार संख्या को जोड़ने की योजना बना रहे हैं। इस कदम का मकसद यह है कि संपत्ति के अधिकारों में बदलाव करते वक्त पंजीकृत मालिक को एक अधिसूचना दी जाए। सरकार का यह भी इरादा है कि निपटान एवं भूमि रिकॉर्ड निदेशालय ऑनलाइन संपत्ति पंजीकरण का प्रबंधन करे और इसे बढ़ावा दिया जाए।’
यह अद्यतन पंजी लोगों को जमीन की खरीद-फरोख्त करने से पहले संपत्ति के स्वामित्व को सत्यापित करने और अन्य जरूरी जानकारी देने में मददगार होगा। हालांकि, विपक्ष विधेयक का पूरा विवरण देखना चाहता है और इसने जोर देकर कहा है कि विधेयक पारित होने से पहले इस पर बातचीत की जानी चाहिए।
हालांकि अंदरूनी तौर पर भाजपा को प्रवासियों की चिंता है। 2011 की जनगणना के आंकड़ों से पता चलता है कि गोवा की आबादी 14.5 लाख है जिनमें से लगभग 18.5 प्रतिशत लोग देश के विभिन्न राज्यों के प्रवासी नागरिक हैं। यहां जावेद की तरह कई और लोग वे सारे काम करते हैं जो गोवा के मूल निवासी नहीं करना चाहते हैं।