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सियासी हलचल: महाराष्ट्र…..जीत, नुकसान या आगे की तैयारी

महाराष्ट्र में फरवरी 1978 में हुए विधानसभा चुनाव में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला था।

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आदिति फडणीस   
Last Updated- July 11, 2023 | 11:46 PM IST

महाराष्ट्र में कई लोगों का मानना है कि शरद पवार को बिल्कुल सही जवाब मिला है। इनमें महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री वसंतदादा पाटिल की 91 वर्षीय विधवा शालिनी ‘शालिनीताई’ पाटिल भी शामिल हैं। अब अपने ही दल राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के महज एक गुट के नेता रह गए पवार के खिलाफ उनकी शिकायत 1978 से ही रही है।

फरवरी 1978 में हुए विधानसभा चुनाव में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला था। उस समय सरकार बनाने के लिए कांग्रेस के दो गुट-पाटिल के नेतृत्व वाला गुट (69 सीट) और कांग्रेस (आई) के नेतृत्व वाला गुट (65 सीट) साथ आए थे।

रोजाना तकरार के बीच जब सरकार गिर रही थी तो पवार समानांतर कांग्रेस नाम से एक नई सरकार बनाने के लिए 38 कांग्रेस विधायकों के साथ अलग हो गए। इस प्रकार वह 38 वर्ष की उम्र में राज्य के सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री बन गए।

पवार के इस तख्तापलट और राज्यपाल सादिक अली से मुलाकात के बारे में पाटिल को विश्वास नहीं हुआ। वह केवल यही कहते रहे, ‘मगर वह तो अभी-अभी मुझसे मिले थे।’

पवार ने अपने दलबदल के लिए सब कुछ अपने पास रखने और एकतरफा निर्णय लेने संबंधी पाटिल की बढ़ती प्रवृ​त्ति को जिम्मेदार ठहराया। आज पवार के बारे में उनके सिपहसालार भी यही कहते हैं।

वह सरकार महज दो साल तक चली मगर उसने पवार को पहली बार मुख्यमंत्री बना दिया। तब से अब तक कई विश्वासघात हुए हैं। मगर राजनीतिक पंडितों का कहना है कि इस बार पवार को नुकसान उठाना पड़ रहा है। उनका कहना है कि यह एक ऐसा झटका है जिससे उबरना पवार के लिए मुश्किल होगा।

राज्य के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘पवार ने अपनी बेटी सुप्रिया सुले को पार्टी पर थोपने की कोशिश की, मगर इसकी कीमत उन्हें अपने सबसे करीबी सहयोगियों के निकलने के साथ चुकानी पड़ी है।’

उन्होंने कहा, ‘छगन भुजबल और प्रफुल्ल पटेल जैसे नेताओं का जाना एक बड़ा झटका है। जाहिर तौर पर इस घटना ने राकांपा को कमजोर कर दिया है।’ अगर अजित पवार राकांपा के अपने गुट का विलय भारतीय जनता पार्टी में करते हैं तो एक पार्टी के तौर पर राकांपा का अंत नि​श्चित है।’

कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने कहा, ‘अजित पवार राकांपा को तोड़कर सरकार में अपनी और अपने समर्थकों के लिए जगह बनाने में सफल रहे हैं। हालांकि सरकार अभी ​स्थिर है, लेकिन एकनाथ ​शिंदे गुट सरकार से बाहर होता है तो एक राज्य के तौर पर महाराष्ट्र को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। कहानी यहीं खत्म नहीं होती है।’

भाजपा सबसे बड़ी चुनौती से जूझ रही है: पृथ्वीराज चव्हाण 

चव्हाण का कहना है कि भाजपा सबसे बड़ी चुनौती से जूझ रही है। उन्होंने कहा, ‘उसके लिए साख और नैतिकता का संकट खड़ा हो गया है। भ्रष्टाचार के तमाम आरोपी नेताओं के सरकार में शामिल होने के मुद्दे पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ क्यों मौन है।’

स्थानीय नेताओं ने सरकार के सामने मौजूद व्यावहारिक चुनौतियां गिनाईं। उनका कहना है कि सरकार में पवार के भतीजे के शामिल होने से मंत्रिमंडल में विस्तार और विभागों का आवंटन करना कहीं अ​धिक कठिन हो जाएगा।

एकनाथ शिंदे और देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाली सरकार में तनाव पहले से ही बरकरार था और अब अजीत पवार के आने से तनाव बढ़ने की संभावना है। इसकी झलक जून में पूरे महाराष्ट्र में जारी किए गए विज्ञापन में दिखती है।

विज्ञापन में कहा गया था, ‘चुनाव सर्वेक्षणों के अनुसार, राज्य की 30.2 फीसदी जनता भाजपा को चाहती है जबकि 16.2 फीसदी लोग ​शिंदे के नेतृत्व वाली ​शिवसेना को पसंद करते हैं। इससे पता चलता है कि राज्य में विकास के लिए 46.4 फीसदी लोगों को सत्ताधारी गठबंधन पर भरोसा है।’ इससे दोनों खेमों के विधायकों के बीच तकरार पैदा हो गया। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले ने कहा, ‘2024 (के चुनाव) में ही निर्णय हो जाएगा कि कौन अ​धिक लोकप्रिय है।’

भाजपा ने कहीं अ​धिक तेजी दिखाते हुए इस महीने के आरंभ में संसदीय क्षेत्रों के लिए संयोजकों की घोषणा की। इससे ​शिंदे ​शिवसेना की परेशानी कहीं अधिक बढ़ गई है।

विश्लेषकों के बीच आम राय है कि हालिया घटनाक्रम के मद्देनजर सबसे कमजोर कड़ी पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस हैं जिन्हें उप-मुख्यमंत्री का पद स्वीकार करना पड़ा था। अब अजित पवार के आने से मुख्यमंत्री पद के लिए उनकी मु​श्किलें कहीं अ​धिक बढ़ जाएंगी।

चव्हाण इस बात से इनकार करते हैं कि हालिया घटनाक्रम के बाद राज्य में कांग्रेस को अधिक नुकसान होगा। उन्होंने कहा कि यदि गठबंधन बरकरार रहा तो महाविकास आघाडी को कहीं अ​धिक सीटें मिलेंगी। मगर यह भी सच है कि अजित पवार के जाने और धर्मनिरपेक्षता पर राकांपा का रुख स्पष्ट न होने के कारण अल्पसंख्यक समुदाय एक व्यावहारिक राजनीतिक विकल्प तलाशेगा। कांग्रेस को इसका फायदा मिल सकता है।

जहां तक जातिगत दांवपेच का सवाल है तो महाराष्ट्र में सबसे दमदार और राजनीतिक तौर पर मुखर मराठा समुदाय में दरार दिख सकती है। मराठा भाजपा, राकांपा और कांग्रेस तीनों को समर्थन करते हैं। मगर विश्लेषकों का मानना है कि सबसे अ​धिक तनाव का सामना दूसरी सबसे बड़ी एवं ताकतवर ग्रामीण राजनीतिक लॉबी सहकारी समितियों को करना पड़ेगा। अब उन पर कई नेताओं को समर्थन देने का दबाव होगा।

बहरहाल, राजनीतिक स्थिरता का ग​णित भले ही ​स्थिर दिख रहा हो, मगर महाराष्ट्र की राजनीति में चुपचाप हलचल जारी रहने की संभावना है। ऐसे में किसी अंतिम नतीजे की भविष्यवाणी करना कठिन है।

First Published : July 11, 2023 | 11:46 PM IST