भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) स्थिर मुद्रा और क्रिप्टोकरेंसी से जुड़े भारी जोखिम को देखते हुए उनके प्रति सतर्क रुख अपना रहा है लेकिन यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस (यूपीआई) या डिजिटल ऋण जैसे डिजिटल नवाचारों के मामले में उसने अनुकूल और सहायक रुख अपनाया है। आरबीआई के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने गुरुवार को जोर कहा कि केंद्रीय बैंक तंत्र में आवश्यक सुरक्षा उपाय सुनिश्चित करने के प्रति सचेत है।
दिल्ली स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स में वीकेआरवी राव मेमोरियल व्याख्यान देते हुए मल्होत्रा ने नियम-आधारित विनियमन से सिद्धांत-आधारित विनियमन की ओर बदलाव के बारे में बात करते हुए कहा, ‘इस संबंध में दुविधा यह है कि कितने नवाचार की अनुमति दी जाए जबकि इसके जोखिम पूरी तरह से समझ में नहीं आते हैं।’
आरबीआई के गवर्नर ने कहा कि केंद्रीय बैंक उभरते जोखिमों और बदलती परिस्थितियों के प्रति सजग रहते हुए लगातार अनुकूल रहने की कोशिश में है। उन्होंने कहा, ‘हम तंत्र की स्थिरता की रक्षा करने के अपने नियामकीय उद्देश्य के प्रति सचेत रहते हुए नवाचार को प्रोत्साहित कर रहे हैं। हम आवश्यक सुरक्षा उपायों को बनाए रखते हुए नियमों को यथासंभव सरल बनाने की कोशिश कर रहे हैं।’
उन्होंने कहा कि क्रिप्टोकरेंसी पर अंतिम फैसला सरकार को लेना है। अर्थव्यवस्था की वृद्धि की गति को देखते हुए अब यह कुछ समय की बात है जब भारत के कई बैंक दुनिया के शीर्ष 100 बैंकों में शामिल होंगे। रुपये के मूल्यह्रास के बारे में मल्होत्रा ने कहा कि आरबीआई रुपये के किसी भी स्तर को लक्षित नहीं करता है और यह बाजारों को तय करना है। उन्होंने कहा कि हालिया मूल्यह्रास अमरीका द्वारा लगाए गए अतिरिक्त दंडात्मक शुल्कों के कारण है, जिससे व्यापार घाटे के बढ़ने की आशंका पैदा हो गई है।
उन्होंने कहा, ‘हमें पूरा विश्वास है कि आगे एक अच्छा व्यापार समझौता होगा और इससे हमारे चालू खाते का दबाव भी कम होना चाहिए।’ आरबीआई के गवर्नर ने कहा कि बैंक जमाओं से पूंजी का हस्तांतरण दूसरे वित्तीय बाजारों, म्युचुअल फंड, इक्विटी आदि की ओर जाना स्वाभाविक है क्योंकि देश प्रगति करता है। उन्होंने कहा कि उधार देने के मामले में भी, कई कंपनियां और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां बैंक ऋण से कॉरपोरेट और बाजार-आधारित ऋण की ओर बढ़ रही हैं। केवल देनदारी पक्ष में ही नहीं बल्कि परिसंपत्ति पक्ष में भी यह बदलाव हो रहा है। अहम बात यह है कि यह संतुलित रहना चाहिए।