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Opinion: कर राजस्व के मामले में राज्य बेहतर हालत में

सन 2022-23 में सकल कर संग्रह में करीब 13 फीसदी का इजाफा हुआ और जीडीपी में उनकी हिस्सेदारी घटकर 11.23 फीसदी हो गई।

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ए के भट्टाचार्य   
Last Updated- August 10, 2023 | 10:29 PM IST

केंद्र सरकार के कर राजस्व में जहां उल्लेखनीय धीमापन आया है, वहीं इस मामले में राज्य सरकारों का प्रदर्शन पहले से बहुत बेहतर हुआ है। बता रहे हैं ए के भट्टाचार्य

केंद्र सरकार के कर संग्रह में निरंतर मजबूत वृद्धि को लेकर जश्न के माहौल में कमी आई है और इसे समझा जा सकता है। यह महत्त्वपूर्ण है कि कमी ऐसे समय में आई है जब कर संग्रह को लेकर कई उलझाने वाले रुझान नजर आ रहे हैं जो शायद यह बताते हैं चालू वित्त वर्ष की शेष तिमाहियों के दौरान सरकार की वित्तीय हालत किस तरह की रहेगी। इसके विपरीत राज्यों के कर राजस्व में लगातार सुधार देखने को मिल रहा है और उनका व्यय मिश्रण भी बेहतर हुआ है।

सकल कर राजस्व संग्रह में 2021-22 में करीब 34 फीसदी की तेज वृद्धि

परंतु पहले केंद्रीय बैंक की कर वृद्धि दर में आई तेज गिरावट का आकलन करते हैं। केंद्र सरकार के सकल कर राजस्व संग्रह में 2021-22 में करीब 34 फीसदी की तेज वृद्धि दर्ज की गई जो तीन दशकों की उच्चतम वृद्धि थी। सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में उनकी हिस्सेदारी बढ़कर रिकॉर्ड 11.54 फीसदी के स्तर पर पहुंच गई।

परंतु अब उसमें ऐसी गिरावट नजर आ रही है जिसकी अनदेखी नहीं की जा सकती है। सन 2022-23 में सकल कर संग्रह में करीब 13 फीसदी का इजाफा हुआ और जीडीपी में उनकी हिस्सेदारी घटकर 11.23 फीसदी हो गई।

गिरावट का यह रुझान चालू वर्ष में भी जारी है। 2023-24 में सकल कर संग्रह वृद्धि को लेकर बजट में 10 फीसदी वार्षिक वृद्धि का अनुमान रखा गया था लेकिन  चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही के ताजा आंकड़े बताते हैं कि वास्तविक वृद्धि बमुश्किल करीब तीन फीसदी की है। जबकि वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) निरंतर दो अंकों में वृद्धि हासिल कर रही है। पहली तिमाही में इसमें 11 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई, हालांकि यह पिछले वर्ष की समान अवधि के 34 फीसदी से कम है। कॉर्पोरेशन कर संग्रह भी अप्रैल-जून 2023-24 में 14 फीसदी गिरा जबकि उत्पाद शुल्क में 15 फीसदी की कमी आई।

उत्पाद शुल्क संग्रह में आई कमी को समझा जा सकता है क्योंकि कच्चे तेल की कीमतों में कमी आ रही है। परंतु कॉर्पोरेशन कर संग्रह में आने वाली कमी का मामला अलग है क्योंकि यह कमी ऐसे समय में आ रही है जब करीब 1,000 सूचीबद्ध कंपनियों के नमूने ने अपने शुद्ध लाभ में 65 फीसदी इजाफा होने की बात कही। यह बात वर्ष की बाकी तिमाहियों में भारतीय उद्योग जगत के मुनाफा संबंधी पूर्वानुमान तथा राजकोष में उनके कॉर्पोरेशन कर योगदान के बारे में क्या कहती है? क्या यह बात उनके द्वारा और अधिक निवेश किए जाने के बारे में बताती है और नई विनिर्माण कंपनियों के उभार के बारे में जिन्हें कर रियायत तथा कम कर दर का लाभ दिया गया?

व्यक्तिगत आय कर संग्रह पहली तिमाही में 11 फीसदी बढ़ा

व्यक्तिगत आय कर संग्रह की बात करें तो 2023-24 की पहली तिमाही में इसमें 11 फीसदी का इजाफा हुआ लेकिन इसका अर्थ यह भी था अप्रैल-जून 2022-23 के 41 फीसदी इजाफे से तेज गिरावट। परंतु एक चकित करने वाले घटनाक्रम में अप्रैल-जून 2023 में सीमा शुल्क संग्रह में 35 फीसदी का इजाफा हुआ जबकि पिछले वर्ष की समान अवधि में इसमें 12 फीसदी की गिरावट आई थी।

सामान्य हालात में इसका अर्थ यह होना चाहिए था कि आयात पर जीएसटी में इजाफा हो लेकिर अप्रैल-जून 2023 में आयात पर जीएसटी संग्रह केवल दो फीसदी बढ़ा जबकि 2022 की समान अवधि में इसमें 25 फीसदी का इजाफा हुआ था। यह एक और पहेली है।

व्यय की बात करें तो केंद्र के समग्र व्यय रुझान में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। जैसा कि बजट में अनुमान जताया गया था, 2023-24 की पहली तिमाही में सरकार का राजस्व व्यय लगभग एक समान रहा और इसमें केवल 0.09 फीसदी का इजाफा हुआ। इसके विपरीत पूंजीगत व्यय 59 फीसदी बढ़ा। याद रहे कि बजट ने राजस्व व्यय में 1.4 फीसदी और पूंजीगत व्यय में 36 फीसदी के कहीं अधिक व्यय की उम्मीद जताई थी। स्पष्ट है कि केंद्र सरकार ने राजस्व व्यय पर लगाम लगाने और पूंजीगत व्यय को बढ़ाने का अच्छा काम किया।

कर संग्रह के 10 फीसदी की आदर्श दर से कम बढ़ने तथा पूंजीगत व्यय के बजट लक्ष्य को पार कर जाने से इस बात को लेकर गंभीर सवाल उठेंगे कि सरकार राजस्व घाटे को जीडीपी के 5.9 फीसदी के दायरे में रख सकेगी अथवा नहीं। सरकारी उपक्रमों के अतिरिक्त लाभांश और अधिशेष की बात करें तो विनिवेश प्राप्तियों में कमी इसे निरपेक्ष बना देगी।

सरकार आने वाले महीनों में और अधिक व्यय कर सकती है क्योंकि चुनाव करीब हैं। ऐसे में वित्त मंत्रालय को इस वर्ष घाटे की पूर्ति के लिए मेहनत करनी होगी। उस लक्ष्य को पूरा करने में कोई भी चूक देश के सार्वजनिक वित्त के लिए अच्छा संकेत नहीं होगी। परंतु बिना राज्यों में व्यय और राजस्व के हालात का आकलन किए किसी निष्कर्ष पर पहुंचना मुश्किल है। 2023-24 की पहली तिमाही के आधिकारिक आंकड़ों की बात करें तो केवल 22 राज्यों के आंकड़े उपलब्ध हैं जो सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के बजट आकार का 92 फीसदी हैं।  व्यय की बात करें तो ये राज्य भी केंद्र का रुझान ही दर्शाते हैं। पहली तिमाही में उनका राजस्व व्यय केवल 7 फीसदी बढ़ा जबकि उनका पूंजीगत व्यय 75 फीसदी उछल गया।

पूंजीगत व्यय में इजाफे की एक वजह  शायद यह भी रही कि केंद्र सरकार ने राज्यों को इसमें मदद की और अर्थव्यवस्था पर इसके सकारात्मक प्रभाव की अनदेखी नहीं की जा सकती है। आने वाले महीनों में में राज्यों के पूंजीगत व्यय में वृद्धि भी उतनी ही महत्त्वपूर्ण होगी जितना कि उनके राजस्व व्यय पर नजर रखना। तभी राज्यों के राजस्व घाटे को जीडीपी के 3.5 फीसदी के तय दायरे में रखा जा सकेगा।

वर्ष 2023-24 की पहली तिमाही में राज्यों का कर राजस्व संग्रह केंद्र से बेहतर तस्वीर पेश करता है। केंद्र सरकार का कर संग्रह जहां केवल तीन फीसदी बढ़ा, वहीं राज्यों ने 22 फीसदी की वृद्धि हासिल की। निश्चित तौर पर इस वृद्धि में केंद्रीय करों में 59 फीसदी के उदार इजाफे ने भी योगदान किया। परंतु केंद्रीय करों की उस मदद के अलावा भी राज्यों का अपना कर राजस्व 12 फीसदी बढ़ा।

यह बहुत आश्वस्त करने वाली बात है। अगर राज्य एकजुट होकर अधिक कर राजस्व जुटा सकें और ऐसी वृद्धि दर हासिल हो सके जो केंद्र से अधिक हो तो भारत के सार्वजनिक वित्त की कहानी काफी बेहतर और मजबूत हो जाएगी। यदि कुछ राज्य पुरानी पेंशन बहाल करने जैसे राजकोषीय दृष्टि से दिक्कतदेह विचारों को त्याग दें तो उनका आर्थिक सफर और सहज हो जाएगा।

First Published : August 10, 2023 | 10:29 PM IST