सेबी तथा अन्य बाजार नियामक संस्थाओं की निर्णय लेने की व्यवस्था में निरंतरता की जरूरत है जिससे सुनिश्चित किया जा सके कि वित्तीय बाजार सही काम करें। बता रहे हैं एम एस साहू और सुमित अग्रवाल
चॉइस इक्विटी ब्रोकिंग प्राइवेट लिमिटेड बनाम मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज ऑफ इंडिया लिमिटेड के मामले में प्रतिभूति अपील पंचाट (एसएटी) ने बाजार अधोसंरचना संस्थान (एमआईआई) के एक फैसले को 6 नवंबर को पलट दिया जिसमें उसने एक कारोबारी सदस्य पर जुर्माना लगाया था।
एसएटी ने कहा कि वह आदेश प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का सीधा उल्लंघन था क्योंकि उसे बिना कारण बताओ नोटिस या सुनवाई का अवसर दिए आदेश दे दिया गया था। उसने एमआईआई को निर्देश दिया कि वह अपने सदस्यों के खिलाफ दंड की कार्रवाई के लिए एक प्रक्रिया आरंभ करे।
इसमें एमआईआई के लिए एक सबक है। उन सभी की निर्णय प्रक्रिया में कहीं न कहीं सुधार की गुंजाइश है। एमआईआई संस्थान हैं। उनकी तीन श्रेणियां हैं: एक्सचेंज (शेयर, कमोडिटी और मुद्रा), क्लियरिंग कॉर्पोरेशन और डिपॉजिटरी। वे बाजार को बुनियादी ढांचा मुहैया कराती हैं।
लाइसेंसशुदा उपयोगकर्ताओं के एक समूह की पहुंच एमआईआई के बुनियादी ढांचे तक होती है ताकि वे लेनदेन में निवेशकों की मदद कर सकें। कारोबारी सदस्य निवेशकों के लिए प्रतिभूतियों का कारोबार करते हैं और इसके लिए वे एक एक्सचेंज का इस्तेमाल करते हैं।
डिपॉजिटरी प्रतिभागी निवेशकों की प्रतिभूतियों के स्वामित्व का रिकॉर्ड रखती हैं और इसके लिए डिपॉजिटरी की अधोसंरचना का इस्तेमाल किया जाता है। क्लियरिंग सदस्य निवेशकों के कारोबार का निपटान करते हैं और इस काम में क्लियरिंग कॉर्पोरेशन के बुनियादी ढांचे का इस्तेमाल किया जाता है।
वहीं इश्यूअर निवेशकों को प्रतिभूतियां जारी करते हैं। इसके लिए एक्सचेंजों और डिपॉजिटरी के बुनियादी ढांचे का इस्तेमाल किया जाता है। एमआईआई इन उपयोगकर्ताओं के आचरण का नियमन करके निवेशकों और बाजार के हितों की रक्षा करते हैं।
इन एमआईआई में से स्टॉक एक्सचेंज तो सदियों से मौजूद हैं। लंबे समय से उन्होंने विशेष तौर पर प्रतिभूति बाजार और उनके उपयोगकर्ताओं का नियमन किया है। हाल के दशकों में उनका वर्चस्व कम हो गया क्योंकि उनकी वाणिज्यिक आकांक्षाओं और नियामकीय आदेश के बीच विवाद की स्थिति बनने लगी। इसके साथ ही सांविधिक नियामक भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) भी नए क्षेत्रों की तलाश कर रहा है।
एमआईआई अब प्रमुख नियामक हैं। वे प्रमुख नियामक सेबी के विस्तार के रूप में काम करते हैं। नियामकीय भाषा में उन्हें सेबी का प्रतिनिधि माना जाता है जबकि संविधान के अनुच्छेद 12 के अधीन कानून उन्हें ‘राज्य’ मानता है। सेबी और एमआईआई दोनों की जवाबदेहियां एक समान हैं। मिसाल के तौर पर प्रतिभूतियों में निवेशकों के हितों का बचाव करना और प्रतिभूति बाजार का विकास तथा नियमन।
समय के साथ सेबी ने कई बेहतरीन संचालन व्यवहारों को अपना लिया। उसने अक्सर ऐसा स्वेच्छा से किया। उसने लोकतांत्रिक होने के क्रम में दशकों पहले नियम निर्माण के लिए स्वेच्छा से सार्वजनिक मशविरे की प्रक्रिया अपना ली थी। हालांकि कानून अंशधारकों के अधिकारों का उल्लंघन करने की उनकी क्षमता को देखते हुए शक्तियों के प्रयोग की कई उत्कृष्ट प्रथाओं को अनिवार्य करता है।
उदाहरण के लिए केवल संचालन बोर्ड ही अर्द्ध विधायी शक्तियों का इस्तेमाल कर सकता है। सेबी द्वारा शक्तियों के प्रयोग के लिए अनिवार्य ऐसी प्रथाएं एमआईआई पर भी लागू होनी चाहिए जब वे समान शक्तियों का प्रयोग करते हैं।
सन 1990 के दशक के आरंभ की चर्चाओं को याद कीजिए जो सेबी को मौद्रिक जुर्माना लगाने का अधिकार देने के संबंध में हो रही थीं क्योंकि अन्य विकल्प कारगर नहीं थे। उस समय यह सोचा ही नहीं जा सकता था कि सरकार के बाहर किसी एजेंसी को जुर्माना लगाने का अधिकार दिया जा सकता है।
नियामकीय संचालन के क्षेत्र के अग्रणी लोगों के कुछ प्रयासों की बदौलत यह कुछ शर्तो के अधीन तैयार हुआ: (क) कानून में कई उल्लंघनों और संबंधित मौद्रिक जुर्मानों का उल्लेख है (ख) एक निर्णय प्रक्रिया के माध्यम से जुर्माने की राशि का निर्धारण, जुर्माने की राशि भारतीय समेकित निधि में जाती है (ग) एक अपील फोरम संबंधित निर्णय के खिलाफ अपीलों पर विचार करता है और (घ) विस्तृत निर्णय प्रक्रिया के लिए सांविधिक नियम। समय के साथ इस व्यवस्था का विभिन्न नियामकीय कानूनों में अनुकरण किया गया।
वर्ष 2023 की बात करें तो सेबी और एमआईआई दोनों के पास पारंपरिक निर्णय लेने के अधिकार हैं और वे कई तरह के जुर्माने लगा सकते हैं। जुर्माना शब्द में निवेशकों के हितों की रक्षा के लिए दिए गए निर्देश शामिल हैं। ये निर्देश एसएटी द्वारा 15 दिसंबर को एडलवाइस कस्टोडियल सर्विसेज लिमिटेड बनाम एनएसई क्लियरिंग लिमिटेडएवं अन्य के मामले में दोहराए गए थे।
इसमें मौद्रिक जुर्माना, यूजर के अधिकारों का निलंबन, निकासी या उन्हें समाप्त करना और पुनर्गठन के आदेश तक सभी शामिल हैं। एमआईआई हर वर्ष तकरीबन 10,000 उपयोगकर्ताओं या सूचीबद्ध कंपनियों के खिलाफ प्रक्रिया शुरू करता है जिसके अंत में कई तरह के निर्देश और जुर्माने सामने आते हैं। उनमें से सभी निर्णय प्रक्रिया या प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के अनुसार नहीं होते।
निर्णय प्राय: किसी व्यक्ति की निंदा करने या उसकी आजीविका छीनने वाले हो सकते हैं। ऐसे में दुनिया भर में विधिक ढांचा इस प्रकार तैयार होना चाहिए कि सही निष्कर्ष निकलें। सेबी और एमआईआई के निर्णय समान लक्ष्यों को लेकर होते हैं और उनके परिणाम भी एक जैसे होते हैं तथा वे सरकार की शाखाएं हैं इसलिए ऐसी कोई वजह नहीं है कि ऐसे निर्णय के लिए विधिक प्रावधान नहीं होने चाहिए।
एमआईआई द्वारा मजबूत निर्णय के लिए जरूरी है:
(क) संबद्ध मौद्रिक जुर्मानों के साथ उल्लंघनों की एक सूची, उन उल्लंघनों को निर्देशित करना जो उपयोगकर्ता की पहुंच को निलंबित करना या रद्द करना या किसी जारीकर्ता के व्यापार/डीलिस्टिंग को निलंबित करना आवश्यक बनाते हैं।
(ख) एक निर्णय अधिकार जो अक्सर कोई वरिष्ठ अधिकारी होता है या अधिकारियों का पैनल होता है (एमआईआई का बोर्ड नहीं) तथा जो न्यायिक निर्णय में प्रशिक्षित हों और निर्णय संबंधी खोज प्रक्रिया से जुड़े न हों
(ग) जुर्माना वसूलने तथा भारतीय समेकित निधि में जमा करने की व्यवस्था (घ) उल्लंघनों के निस्तारण के लिए एक संस्था और (च) एक बाहरी अपीलीय प्राधिकार (एमआईआई का निदेशक मंडल नहीं) जो निर्णय संबंधी आदेशों से पीड़ितों की अपील पर विचार कर सके।
सेबी नियमन में व्यवस्था होनी चाहिए:
(क) कारण बताओ नोटिस जारी करने की जिसमें तथ्यों की जांच के बाद कथित गलत आचरण का ब्योरा हो जो कि एक उल्लंघन है और उल्लंघन स्थापित होने के बाद प्रस्तावित दिशा
(ख) एमआईआई के अधिकार वाली सभी प्रासंगिक सामग्रियों की आपूर्ति जो या तो आरोपों को स्थापित करे या उन्हें सीमित करे
(ग) आरोपित को यह अवसर कि वह लिखित रूप से या अधिकारी के समक्ष आरोपों का खंडन कर सके (घ) नोटिस को कम करने और आनुपातिकता के सिद्धांत पर विचार करते हुए कारण बताओ नोटिस का उचित आदेश द्वारा निपटान करना
(च) प्रत्येक निर्णय का सार्वजनिक रूप से प्रसार मसलन सेबी या एसएटी के आदेशों का (छ) प्राधिकारियों और पक्षकारों द्वारा कारण बताओ नोटिस के निस्तारण तथा विभिन्न कामों के लिए समय सीमा। एमआईआई को लंबित सांविधिक प्रावधानों के बीच अपने आंतरिक नियमन में स्वेच्छा से न्यायिक अनुशासन लाना चाहिए।
वे जुर्मानों के निपटान के लिए एक विशेष एजेंसी के इस्तेमाल पर भी विचार कर सकते हैं। इससे इसे लेकर भरोसा बढ़ेगा और एमआईआई की संस्थागत वैधता बढ़ेगी।
(लेखक क्रमश: राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय दिल्ली के विशिष्ट प्राध्यापक और रेगस्ट्रीट लॉ एडवाइजर्स के पार्टनर हैं )