विवादों में घिरे रहे प्रवर्तन निदेशालय (ED) के निदेशक संजय कुमार मिश्रा (Sanjay Kumar Mishra) तमाम किंतु-परंतु के बाद अंततः 15 सितंबर को अपने पद से सेवानिवृत्त हो जाएंगे। इससे पहले शीर्ष अदालत ने मिश्रा को लगातार दो बार कार्यकाल विस्तार दिए जाने को इसी मामले में दिए गए अपने पिछले आदेश का उल्लंघन बताया था।
सरकार ने शर्मा का कार्यकाल नवंबर 2023 तक बढ़ा दिया था मगर न्यायालय 31 जुलाई के बाद ईडी प्रमुख को सेवा विस्तार दिए जाने के लिए तैयार नहीं था। इसके बाद सरकार ने मिश्रा का कार्यकाल 15 अक्टूबर तक बढ़ाए जाने की अनुमति मांगी थी, मगर न्यायालय ने अब स्पष्ट कर दिया है कि शर्मा अधिक से अधिक 15 सितंबर तक ही अपने पद पर बने रहेंगे।
ऐसा शायद ही पहले कभी हुआ है जब शीर्ष न्यायालय ने किसी लोक सेवक को पद से हटने के लिए कहा हो। न्यायालय ने कहा कि अगर मिश्रा अपने पद पर बने रहेंगे तो इससे न्यायालय के आदेश की अवमानना होगी। इस तरह, ईडी के वर्तमान निदेशक से जुड़े प्रकरण का 15 सितंबर को पटाक्षेप हो जाएगा।
सरकार के हस्तक्षेप के बाद मिश्रा ईडी निदेशक के पद पर बने रहे हैं। न्यायालय के पिछले आदेश के बाद गृह मंत्री अमित शाह ने सोशल मीडिया ट्विटर पर कहा था, ‘ईडी मामले में माननीय उच्चतम न्यायालय के आदेश पर जो लोग खुश हो रहे हैं वे दरअसल विभिन्न कारणों से वास्तविकता से दूर हैं।
संसद में पारित केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) अधिनियम में संशोधन को बहाल रखा गया है। जो लोग भ्रष्ट हैं उनके खिलाफ कार्रवाई करने के ईडी के अधिकारों में कोई बदलाव नहीं आया है। ईडी एक ऐसा संस्थान है जिस पर किसी एक व्यक्ति के जाने से कोई फर्क नहीं पड़ता है। यह बात मायने नहीं रखती कि ईडी निदेशक कौन हैं। जो भी इस पद पर आसीन होगा वह तरक्की को लेकर नकारात्मक और भ्रष्ट मानसिकता रखने वाले लोगों पर पैनी नजर रखेगा।’
शाह के तर्क पर कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने केवल एक प्रश्न पूछा कि जब यह बात मायने नहीं रखती कि ईडी निदेशक कौन हैं तो सरकार ने मिश्रा को तीन बार सेवा विस्तार क्यों दिया?
मिश्रा की नियुक्ति ईडी निदेशक के पद पर 19 नवंबर, 2018 को दो वर्षों के लिए हुई थी। इसके बाद सरकार ने 13 नवंबर, 2020 को एक आदेश जारी कर मिश्रा के नियुक्ति पत्र में संशोधन कर उसे पिछली तारीख से प्रभावी बनाते हुए दो वर्षों के कार्यकाल को तीन वर्षों में बदल दिया।
जब मिश्रा सेवानिवृत्त होने वाले थे तो सरकार एक अध्यादेश लेकर आई और इसे संसद में पारित करा दिया। इस अध्यादेश ने सीवीसी अधिनियम और दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान अधिनियम में संशोधन कर लोक हित में ईडी प्रमुखों और केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) के निदेशकों के कार्यकाल पांच साल के लिए बढ़ा दिया। यह सेवा विस्तार एक बार एक वर्ष के लिए लागू होगा।
भारतीय पुलिस सेवा के साथ पिछले 40 वर्षों से जुड़े यशोवर्धन आजाद ने हाल में बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘सरकार के इस कदम ने महत्त्वपूर्ण जांच एजेंसियों के प्रमुखों का दर्जा रोजाना मजदूरी करने वाले लोगों के बराबर कर दिया है। इससे एजेंसियों की स्वायत्तता एवं स्वतंत्रता दोनों पर असर हुआ है। यह अध्यादेश संसद सत्र से ठीक पहले लाया गया, इसलिए इसका मकसद जांच एजेंसियों के कार्यों में चुस्ती-फुर्ती के लिए नहीं बल्कि कुछ खास लोगों को ध्यान में रखकर लाया गया।’
अध्यादेश शीतकालीन सत्र से पहले 14 नवंबर, 2021 को लाया गया था। जिस हड़बड़ी में यह लाया गया वह बिल्कुल साफ दिख रही थी। मिश्रा का सेवा विस्तार 17 नवंबर, 2021 को समाप्त हो रहा था। मगर सेवा विस्तार के खिलाफ गैर-लाभकारी संस्था कॉमन कॉज की याचिका अदालत में पहले आ गई थी। कॉमन कॉज का पक्ष रखने वाले वकील दुष्यंत दवे ने कहा कि सेवानिवृत्ति उम्र के बाद मिश्रा को सेवा विस्तार इसलिए दिया गया क्योंकि वह सरकार के ‘खास’ थे।
सोलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सरकार के कदम का बचाव यह कहते हुए किया था कि नियुक्ति समिति ने प्रत्येक उम्मीदवारों के पिछले 10 वर्षों के प्रदर्शन का आकलन किया। पिछले 10 वर्षों के प्रदर्शन के आकलन के आधार पर मिश्रा सबसे उपयुक्त उम्मीदवार दिख रहे थे। एक तय पद्धति के तहत होने वाली प्रक्रिया किसी के मन मुताबिक नहीं बल्कि तथ्यों के आधार पर काम करती है।
दोनों वकीलों के तर्क सुनने के बाद न्यायाधीश एल एन राव ने कहा था, ‘अगर मिश्रा वाकई श्रेष्ठ उम्मीदवार हैं तो भी ये सारे मामले समाप्त होने तक वह अपने पद पर बने नहीं रह सकते। राव ने कहा कि वह अच्छा काम कर रहे हैं तो इसमें किसी को आपत्ति नहीं है मगर प्रश्न यह है कि क्या उन्हें सेवा विस्तार दिया जा सकता है।’
मिश्रा 1981 बैच के आईआरएस के अधिकारी
मिश्रा 1981 बैच के भारतीय राजस्व सेवा (आईआरएस) के अधिकारी हैं। उन्हें वित्तीय मामलों का विशेषज्ञ समझा जाता है। वह दिल्ली में प्रमुख आयकर आयुक्त रह चुके हैं और तीन महीनों के लिए ईडी के मुख्य विशेष निदेशक (प्रिंसिपल स्पेशल डाइरेक्टर) के पद पर नियुक्त होने के बाद वह ईडी के अंतरिम प्रमुख भी बनाए गए। बाद में उन्हें अतिरिक्त सचिव के पद पर प्रोन्नत कर दिया गया।
मूल रूप से उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले मिश्रा ने व्यक्तिगत रूप से कई बड़े मामलों में ईडी जांच पर नजर रखी है। इनमें शरद पवार के भतीजे अजित पवार के खिलाफ धन शोधन, एक अवैध खनन मामले में उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के खिलाफ आरोप, विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम के तहत आईएनएक्स मीडिया के खिलाफ कथित विदेशी मुद्रा कानूनों का उल्लंघन, हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के खिलाफ पंचकूला में अवैध जायदाद के स्थानांतरण और कांग्रेस नेताओं सोनिया गांधी एवं राहुल गांधी के खिलाफ एसोसिएट जर्नल से जुड़े मामले कई बड़े मामले रहे हैं।
ईडी ने पिछले चार वर्षों में कर्नाटक कांग्रेस प्रमुख डी के शिवकुमार, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, महाराष्ट्र के पूर्व गृह मंत्री अनिल देशमुख, जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती और नैशनल कॉन्फ्रेंस के नेता फारूक अब्दुल्ला के खिलाफ मामले दर्ज किए हैं।