केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर विभाग ने 50,000 नए मामलों को छांटा है जिनकी चालू वित्त वर्ष में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) ऑडिटिंग की जाएगी। यह कर अनुपालन तथा कर आधार को बढ़ाने के प्रयास का हिस्सा है। केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर एवं सीमा शुल्क बोर्ड (सीबीआईसी) के चेयरमैन विवेक जौहरी ने बिज़नेस स्टैंडर्ड के साथ बातचीत में ये बातें कहीं।
सीबीआईसी प्रमुख ने कहा, ‘केंद्रीय स्तर पर वित्त वर्ष 2021 और वित्त वर्ष 2022 से संबंधित करीब 30,000 जीएसटी मामलों (वित्त वर्ष 2022-23 में) की जांच की गई है। इसमें हमने करीब 17,000 करोड़ रुपये की कर चोरी का पता लगाया है और अभी तक ऐसे मामलों में 18 फीसदी यानी 3,060 करोड़ रुपये की वसूली की जा चुकी है।’
वसूली का आंकड़ा और बढ़ सकता है क्योंकि कुछ मामलों का निपटान चालू वित्त वर्ष में होने की उम्मीद है। वित्त वर्ष 2024 के लिए प्राधिकरण ने जोखिम के आधार पर 50,000 मामलों की जांच करने का लक्ष्य रखा है। जौहरी ने स्पष्ट किया कि यह पिछले वित्त वर्ष के शेष मामलों से इतर होंगे।
जीएसटी जांच या विभागीय जांच घोषित बिक्री, भुगतान किए गए कर, दावा किए गए रिफंड और इनपुट टैक्स क्रेडिट की सत्यता को जांचने के लिए किया जाता है, जिसका पता कर रिटर्न और कारोबार के अन्य रिकॉर्ड की जांच से पता चलता है। विभिन्न दस्तावेजों में किसी तरह की विसंगति होने पर यह कर वंचना को लेकर आगाह करता है।
2017 में जीएसटी के लागू होने के बाद कारोबारों को इसे अपनाने के लिए दी गई मोहलत के बाद वित्त वर्ष 2023 से जीएसटी की विभागीय जांच में तेजी आई है। 15 मई को द्विमासिक विशेष अभियान शुरू करने के बारे में जौहरी ने कहा कि इसका उद्देश्य करदाताओं की सही संख्या का पता लगाना है।
उन्होंने कहा, ‘हमने 30,000 मामलों को भौतिक सत्यापन के लिए छांटा है, जिनमें से अभी तक 35 फीसदी या 10,000 मामलों में कथित तौर पर फर्जी पंजीकरण जारी कर गलत तरीके से इनपुट टैक्स क्रेडिट का दावा करने से जुड़े थे। विभाग ने इस अभियान के जरिये अभी तक करीब 7,000 करोड़ रुपये फर्जी आईटीसी का दावा करने के का पता लगाया है।’
उन्होंने कहा, ‘राज्यों के साथ मिलकर यह कदम उठाने का मकसद उन करदाताओं की पहचान करनी है जो अपने व्यवहार और अन्य गतिविधियों के कारण संदेहास्पद लगते हैं। सबसे पहले हमें उन करदाताओं की एक सूची तैयार करनी होगी जो अधिक जोखिम वाले हो सकते हैं।
इसके बाद इन करदाताओं की प्रत्यक्ष रूप से पहचान की जाएगी ताकि यह पता लगाया जा सके कि वे कहीं न कहीं से कारोबार कर रहे हैं और मौजूद हैं। राज्यों के द्वारा इनकी पहचान के लिए हमने कुछ नियम-कायदे तय कर रखे हैं।
किसी इकाई की मौजूदगी का पता नहीं होने की स्थिति में हम उसका पंजीयन रद्द करने और यहां तक कि इनपुट टैक्स क्रेडिट रोकने पर विचार कर रहे हैं।’ जौहरी ने कहा कि विभाग आईटीसी के उपयोगकर्ताओं और उन प्राप्तकर्ताओं की पहचान करने में सक्षम हैं जो टैक्स क्रेडिट के वास्तविक लाभार्थी हैं। उन्होंने कहा कि इसी के आधार पर कदम उठाए जा रहे हैं।