केंद्र सरकार ने प्रमुख क्षेत्रों जैसे बंदरगाह, सड़कें, रेलवे और हवाई अड्डों में इलेक्ट्रिक वाहन (EV) चार्जिंग ढांचे को बढ़ाने की योजना बनाई है। इसमें बैटरी स्वैपिंग सुविधाएं भी शामिल होंगी। यह जानकारी एक वरिष्ठ अधिकारी ने दी है। भारी उद्योग मंत्रालय (MHI) ने बंदरगाह, जहाजरानी और जलमार्ग मंत्रालय, भारतीय हवाई अड्डा प्राधिकरण (AAI), राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) और विभिन्न राज्य सरकारों के साथ बातचीत शुरू की है। इसका मकसद EV चार्जिंग स्टेशन लगाने के लिए संभावित जगहों का पता लगाना है।
10,900 करोड़ रुपये की पीएम ई-ड्राइव योजना के तहत, सरकार ने देशभर में EV चार्जिंग स्टेशन और बैटरी स्वैपिंग सुविधाएं स्थापित करने के लिए 2,000 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं। इस पहल का लक्ष्य भारत के बढ़ते EV बाजार के लिए चार्जिंग कनेक्टिविटी को बेहतर करना और इंटरनल कम्बशन इंजन वाहनों पर निर्भरता कम करना है। भारत का लक्ष्य वित्त वर्ष 2026 तक सार्वजनिक EV चार्जिंग स्टेशनों की संख्या को 32,500 से बढ़ाकर 72,300 करना है।
दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे और कोच्चि हवाई अड्डे जैसे कुछ प्रमुख हवाई अड्डों के साथ-साथ एनएच-48 (दिल्ली-जयपुर-आगरा) और एनएच-179बी (चेन्नई-त्रिची) जैसे राष्ट्रीय राजमार्गों पर पहले से ही EV चार्जिंग ढांचा मौजूद है। अब अन्य हवाई अड्डों, राजमार्गों और बंदरगाहों को भविष्य में स्थापना के लिए चुना जा रहा है।
अधिकारी ने कहा, “हमें 14 राज्यों से सुझाव मिले हैं और एक अंतर-मंत्रालयी बैठक हो चुकी है। संबंधित मंत्रालयों से और फीडबैक मिलने के बाद हम अप्रैल तक दिशानिर्देश तय कर लेंगे।”
एमएचआई ने ट्रकों की अधिक आवाजाही वाले 20 राष्ट्रीय राजमार्गों की पहचान की है और एनएचएआई को स्वतंत्र रूप से टेंडर प्रक्रिया आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी दी है। इस योजना के तहत मंत्रालय 80 प्रतिशत लागत वहन करेगा। पहचाने गए राजमार्गों में मुंबई-पुणे और बेंगलुरु-चेन्नई जैसे व्यस्त मार्ग शामिल हैं। एनएचएआई अपने डेटा के आधार पर स्थापना की जगहें तय करेगा, जबकि एमएचआई फंडिंग का प्रबंधन करेगा। इससे जुड़ी जानकारी के लिए संबंधित मंत्रालयों और एजेंसियों के सचिवों, प्रवक्ताओं और अध्यक्षों को भेजे गए सवालों खबर के प्रकाशन तक कोई जवाब नहीं मिला।
पीएम ई-ड्राइव के तहत, केंद्र सरकार सार्वजनिक तेज EV चार्जिंग स्टेशन लगाने के लिए 80 प्रतिशत तक सब्सिडी दे रही है। विशेष मामलों में, खासकर पूर्वोत्तर, तटीय और पहाड़ी क्षेत्रों में 100 प्रतिशत फंडिंग भी संभव है। बैटरी स्वैपिंग पर अधिकारी ने कहा, “हम हवाई अड्डों, बंदरगाहों और एनएचएआई से प्रस्ताव स्वीकृत करेंगे, बशर्ते वे बिजली मंत्रालय के दिशानिर्देशों का पालन करें।”
बैटरियों की संख्या या आकार पर कोई पाबंदी नहीं होगी, लेकिन बिजली मंत्रालय के सुरक्षा मानकों का पालन जरूरी होगा। उदाहरण के लिए, अगर एएआई अपने टेंडर में बैटरी स्वैपिंग स्टेशन शामिल करता है, तो उसे बिजली क्षमता और संबंधित लागत बतानी होगी। स्वैपिंग स्टेशनों को निवेश के आधार पर एक निर्धारित सेवा स्तर देना होगा।
अधिकारी ने स्पष्ट किया, “इस सेवा स्तर को सुनिश्चित करने के लिए कंपनियों को बैटरी खरीदनी पड़ सकती हैं। यह औपचारिक शर्त नहीं होगी, लेकिन सेवा स्तर समझौते में अपटाइम, बिजली गुणवत्ता और सेवा विवरण जैसे पहलुओं को शामिल किया जाएगा। हालांकि, बैटरियों की संख्या तय नहीं की जाएगी। यह अंततः एएआई, एनएचएआई और राज्य सरकारें तय करेंगी।”
अधिकारी ने आगे कहा, “हम स्वैपिंग स्टेशनों के लिए सब्सिडी देने को तैयार हैं, क्योंकि यह पीएम ई-ड्राइव के प्रावधानों में से एक है।”
एक उद्योग विशेषज्ञ के अनुसार, कुछ कंपनियां बैटरी-एज-ए-सर्विस मॉडल अपना सकती हैं, जैसा कि गैस सिलेंडर की आपूर्ति में होता है। उन्होंने कहा, “इस मॉडल में ग्राहक अपने दोपहिया या कार के लिए बैटरी सेल खरीदेंगे और बैटरी उपयोग के लिए भुगतान करेंगे। इससे वाहन की शुरुआती कीमत काफी कम हो जाएगी, क्योंकि बैटरी कुल कीमत का 30 से 40 प्रतिशत हिस्सा होती है।”
विशेषज्ञ ने कहा, “बैटरियों का मानकीकरण जरूरी है। सवाल यह है कि कितने वाहन ऐसी बैटरियों को स्वीकार करने के लिए डिज़ाइन किए जाएंगे, क्योंकि अलग-अलग निर्माता अपने मालिकाना मॉडल पसंद कर सकते हैं। इससे कुछ कंपनियां बाहर हो सकती हैं, जिससे कुल सेवा सीमित होगी। यह जांचना जरूरी है कि स्वैपिंग समाधान से कितने वाहन संगत हैं।”