जीवन बीमा पॉलिसी (life insurance policies) से संबंधित टैक्स नियमों को लेकर ज्यादातर लोगों को यह लगता है कि उन्हें इसकी पूरी जानकारी है। लेकिन ऐसा नहीं है। कुछ नियम ऐसे भी हैं जिनकी जानकारी अमूमन कम ही लोगों को होती है।आज बात करते हैं ऐसे ही नियमों की:प्रीमियम (premium) पर डिडक्शन के नियमअपना/पति-पत्नी और अपने बच्चों की जीवन बीमा पॉलिसी के लिए किए गए प्रीमियम के भुगतान पर 80C के तहत एक वित्त वर्ष में निवेश के अन्य विकल्पों सहित अधिकतम 1,50,000 रुपए तक डिडक्शन (deductions) का फायदा मिलता है। अधिकांश लोगों को यह लगता है कि यह फायदा पूरी प्रीमियम राशि पर मिलता है। लेकिन हर मामले में ऐसा नहीं है। इसको लेकर कुछ शर्तें निर्धारित की गई हैं: * अगर कोई पॉलिसी 1 अप्रैल 2012 या उसके बाद जारी की गई है तो प्रीमियम की सालाना राशि सम एश्योर्ड (sum assured) राशि का 10 फीसदी से ज्यादा नहीं होना चाहिए। यानी उदाहरण के लिए अगर सम एश्योर्ड 5 लाख रुपए है तो प्रीमियम की सालाना राशि 50 हजार रुपए से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। अगर फिर भी अगर आप इस पॉलिसी पर प्रीमियम 11 हजार रुपए देते हैं तब भी डिडक्शन का फायदा 10 हजार रुपए तक की राशि पर ही मिलेगा। * 1 अप्रैल 2003 से 31 मार्च 2012 तक के बीच जारी की गईं पॉलिसियों के लिए प्रीमियम की राशि सम एश्योर्ड राशि का 20 फीसदी तक हो सकती है। यानी 20 फीसदी तक की राशि पर डिडक्शन का फायदा मिलेगा। * 31 मार्च 2003 से पहले जारी की गई पॉलिसी को लेकर कोई लिमिट नहीं है। यानी कितना भी प्रीमियम हो, पूरे पर डिडक्शन का फायदा मिलेगा। * अगर इंश्योर्ड व्यक्ति 80U में उल्लेखित डिसेबिलिटी का शिकार हो या वह 80DDB में उल्लेखित बीमारी से ग्रस्त हो तो 1 अप्रैल 2013 के बाद जारी की गई पॉलिसी के लिए सम एश्योर्ड राशि के अधिकतम 15 फीसदी तक प्रीमियम पर 80C के तहत टैक्स में छूट ली जा सकती है। इससे पहले इस तरह का कोई प्रावधान नहीं था। मैच्योरिटी बेनिफिट को लेकर टैक्स के नियम ज्यादातर लोग यही समझते हैं कि पॉलिसी की निर्धारित अवधि पूरी होने के बाद मैच्योरिटी की जो राशि (सम एश्योर्ड + बोनस) पॉलिसी धारक को मिलती है उस पर कोई टैक्स नहीं लगता। लेकिन ऐसी बात नहीं है। इनकम टैक्स एक्ट, 1961, के सेक्शन 10 (10D) के मुताबिक अगर पॉलिसी टर्म के दौरान किसी भी वित्त वर्ष में बीमाधारक (policy holder) अगर उन शर्तों को पूरा न करता हो जो 80C के तहत डिडक्शन का फायदा लेने के लिए प्रीमियम और सम एश्योर्ड के अनुपात को लेकर तय किए गए हैं, तो पूरी मैच्योरिटी की राशि बीमाधारक के इनकम में जोड़ दी जाएगी और बीमाधारक को टैक्स स्लैब के हिसाब से टैक्स चुकाना होगा। लेकिन नॉमिनी (nominee) को मिलने वाला डेथ बेनिफिट हमेशा टैक्स-फ्री होता है। साथ ही सेक्शन 10 (10D) के तहत मिलने वाले टैक्स बेनिफिट को लेकर कोई ऊपरी लिमिट (अधिकतम सीमा) का प्रावधान नहीं है। मैच्योरिटी पर TDS सेक्शन 194DA में हुए बदलाव के मुताबिक (सितंबर 2019 से प्रभावी) अगर आपको मैच्योरिटी की राशि (सम एश्योर्ड + बोनस) पर टैक्स में छूट नहीं मिलती है तो 1 लाख रुपए से ज्यादा की मैच्योरिटी की राशि पर बीमा कंपनी 5 फीसदी TDS काट लेगी, जबकि 1 सितंबर 2019 से पहले 1 फीसदी TDS का ही प्रावधान था। यानी TDS बढ़ा दिया गया है। लेकिन यहीं पर थोड़ी-सी राहत भी दी गई है। यह राहत इस तरह से दी गई है कि 5 फीसदी TDS पूरी मैच्योरिटी की राशि पर नहीं कटेगा, बल्कि मैच्योरिटी की राशि में से पूरी प्रीमियम की राशि को घटाने के बाद बची हुई राशि पर लगेगा। हालांकि अगर पॉलिसी टर्म के दौरान इंश्योर्ड व्यक्ति की मौत हो जाती है तो नॉमिनी को मिलनेवाली मैच्योरिटी तो टैक्स-फ्री है ही, साथ ही TDS भी नहीं कटता है। सलाह आप जब भी कोई पॉलिसी लें तो यह सुनिश्चित कर लें कि किसी भी साल प्रीमियम की राशि सम एश्योर्ड की राशि के 10 फीसदी से ज्यादा न हो। अगर प्रीमियम की राशि सम एश्योर्ड की राशि के 10 फीसदी से ज्यादा नहीं होती है तो आपको तीन फायदे एक साथ मिलेंगे। एक, 80C के तहत टैक्स डिडक्शन का पूरा फायदा मिलेगा। दो, मैच्योरिटी राशि के भुगतान के समय कोई टैक्स नहीं चुकाना होगा। और तीसरा, आपको मिलने वाली मैच्योरिटी की राशि पर कोई टीडीएस भी नहीं कटेगा। सिंगल प्रीमियम पॉलिसी में प्रीमियम के सम एश्योर्ड के 10 फीसदी से ज्यादा होने की संभावना होती है। इसलिए इसे लेने से पहले सजग रहें।
