महामारी के बाद दफ्तर फिर खोलने पर विचार | |
इंद्रजित गुप्ता / 03 30, 2022 | | | | |
'मैं घर से काम करने की व्यवस्था का कोई खास प्रशंसक नहीं हूं। जब लोग घर से काम करते हैं तो वह संस्थागत संस्कृति धीरे-धीरे कमजोर, और कमजोर होती चली जाएगी।'
दो सप्ताह पहले डेक्कन हेरल्ड के एक आयोजन में इन्फोसिस के संस्थापक एन आर नारायण मूर्ति ने एक मुश्किल विषय छेड़ दिया। कई लोग, विशेषतौर पर पुराने लोग उनसे पूरी तरह सहमत थे। उनका कहना था कि कोविड के मामलों में तेजी से कमी आई है। ऐसे में अगर बच्चे स्कूल जा रहे हैं तो लोग दोबारा कार्यालयों से काम करना क्यों नहीं शुरू कर सकते। ऐसी भावना प्रकट करने वाले मूर्ति इकलौते व्यक्ति नहीं हैं। निवेश बैंक गोल्डमैन सैक्स के मुख्य कार्याधिकारी डेविड सोलोमन ने भी लोअर मैनहटन में अपने 44 मंजिला मुख्यालय को दोबारा खुलवा दिया और सभी कर्मचारियों को आदेश दिया कि 1 फरवरी से वे सप्ताह में कम से कम पांच दिन कार्यालय से काम करें। फॉच्र्यून के मुताबिक उनके इस निर्देश और दो सप्ताह पहले दिए गए नोटिस के बावजूद आधे ही कर्मचारी कार्यालय पहुंचे। धीरे-धीरे यह तादाद बढ़कर 60 फीसदी हुई।
इन रुझानों से यह अहसास होता है कि दुनिया भर के सीईओ इस मामले में किस कदर अधैर्य से गुजर रहे हैं। कई कारोबारी दिग्गज दोबारा कार्यालय शुरू करने की इस नीति से पूरी तरह सहमत होंगे लेकिन वे सार्वजनिक रूप से ऐसा कहने से हिचकिचाएंगे। उन्हें डर है कि वे शायद कर्मचारियों के उस धड़े की नजर में अलग-थलग हो जाएंगे जो घर से काम करने के आदी हो गए हैं और जिन्होंने यह दिखाया है कि घर से या सुदूर जगहों से काम करने से उत्पादकता के प्रभावित होने की आशंका गलत साबित हुई है। जिन कुछ अधिकारियों ने अपने कर्मचारियों से रोज कार्यालय आने और वहीं से काम करने को कहा है उन्हें भारी चुनौतियों और यहां तक कि इस्तीफे की धमकी का भी सामना करना पड़ा है। यहां तक कि नये कर्मचारियों को अपने साथ जोडऩा भी चुनौतीपूर्ण हो गया है, बशर्ते कि कार्य स्थल से जुड़ी नीतियां लचीली न हों और अस्थायी रूप से या स्थायी रूप से घर से काम करने की सुविधा न देती हों।
यह संघर्ष जल्दी समाप्त होने वाला नहीं है। कर्मचारियों के बीच मेंं इस बात को लेकर काफी मतभेद हैं कि कौन सी बात उनके हित में है। यह एकदम स्पष्ट नहीं है कि हमें क्या करना चाहिए। ऐसे अस्पष्ट परिदृश्य में आखिर किस बात ने कुछ सीईओ को प्रेरित किया है कि वे सभी के लिए एक समान नीति अपनाएं?
इन चार मानसिकताओं पर विचार कीजिए:
विरासत पर टिके रहना: व्हार्टन के प्रोफेसर पीटर कैप्पेली ने अपनी पुस्तक 'द फ्यूचर ऑफ द ऑफिस' में कहा कि हम सभी ने काम पर एक साथ जितना समय साथ बिताया है उसे देखते हुए कार्यालयों से छुटकारा पाने और घर से काम करने पर सामाजिक दृष्टि से अलग-थलग पडऩे का सवाल उत्पन्न होता है। बहरहाल, वरिष्ठ अधिकारियों को कार्यालयों की याद आती है जहां वे एक दूसरे के केबिन में जाकर तेजी से और तत्काल निर्णय ले लिया करते थे। अब युवाओं की एक नयी पीढ़ी जो तकनीक का इस्तेमाल करने में दक्ष है वह दूरदराज इलाकों से काम करने में भी सहज है और मूर्ति जैसे लोगों की दलील को तवज्जो नहीं देती।
पीढिय़ों का यह अंतर परिवारों के भीतर भी नजर आ रहा है। मानव संसाधन विभाग के एक बड़े अधिकारी जो मीडिया में आने वाले अपने आलेखों में कार्यालयों से काम शुरू करने की हिमायत करते थे, ने मुझे बताया कि उनका बेटा जो खुद एक बड़ी वैश्विक टेक कंपनी में मानव संसाधन विभाग का अधिकारी है वह अपने पिता के बारे में मानता है कि उन्हें काम करने के तौर तरीकों में आए तकनीकी बदलाव की जानकारी नहीं हैं। उनका बेटा तथा उसका परिवार पिछले कई महीनों से गोवा में रहकर ही अपने काम कर रहे हैं और उन्हें यह खूब पसंद भी आया है।
शक्ति का साजो-सामान: पदसोपानिक व्यवस्था वाले कई कार्यालयों में नेतृत्वकर्ताओं को लगता है कि वे जूम स्क्रीन तक सीमित हो गए हैं। इसे स्वीकार कर पाना उनके लिए आसान नहीं है। अपना व्यक्तिगत केबिन न होना, बोर्ड रूम में बैठने की विशेष कुर्सी और विशिष्ट पार्किंग लॉट की अनुपस्थिति में उन्हें लगता है कि उनका दर्जा कम हुआ है। संभव है कि वे खुलकर ऐसा नहीं कहें लेकिन सभी शीर्ष अधिकारी खुद को मिली उपरोक्ततवज्जो त्यागने को राजी नहीं हैं। आखिरकार उन्होंने यह आराम पाने के लिए दशकों तक मेहनत जो की है।
विश्वास की बुनियाद की आभासी बहाली: महामारी की पहली लहर के दौरान मेरे कुछ उच्च पदस्थ मित्र मुझसे पूछा करते: हमें कैसे पता चलेगा कि दूर बैठी हमारी टीम काम कर रही है या नहीं? इसकी प्रतिक्रिया में मैं उनसे एक साधारण सा सवाल करता: आपको क्यों लगता है कि आपकी टीम के सदस्य भी आपके बारे में यही सवाल नहीं कर सकते?
यदि आपको अतीत में दूर से काम करने का कोई अनुभव नहीं है तो ऐसी अतार्किक चिंता पैदा होना आम है। कुछ कंपनियों ने तो ऐसी व्यवस्था भी बना दी जहां वे अपने कर्मचारियों पर नजर रख सकती थीं। जबकि यह निजता के नियमों का सीधा उल्लंघन है। ऐसे ही एक बड़े भारतीय समूह के साथ काम करने वाले मित्र ने एक बार कहा कि उससे मानव संसाधन विभाग के एक साथी ने पूछा कि उसके कुछ कनिष्ठ साथी आभासी बैठकों में बोलते क्यों नहीं। वह यह सोचकर चकित रह गया कि उसकी बैठकों की निगरानी की जा रही थी। कुछ अधिकारी घर से काम करने पर दो-दो नौकरियां करने की बात कहते हैं मानो कोविड के पहले ऐसा न होता रहा हो। यदि कोई कर्मचारी तीन घंटे में अपना काम कर लेता है और बाकी का समय दूसरों के लिए काम करने में लगाता है तो हमें अपने मौजूदा रोजगार मॉडल पर नए सिरे से विचार करना चाहिए।
नजर से दूर, दिमाग से दूर: एक वरिष्ठ भारतीय अधिकारी जिसे हाल ही में एक वैश्विक कंपनी के मुख्यालय में नेतृत्वकारी भूमिका सौंपी गई वह कंपनी को दूर रहकर काम करने के लिए मनाने में कामयाब रहे। परंतु कुछ ही महीनों में उन्हें अहसास हुआ कि उन्हें एक महीने में 15 दिन के लिए अमेरिका जाना होगा। पिछले वर्ष के मध्य से वह रोज कार्यालय जाते हैं और पूरे वैश्विक नेतृत्व को उनका अनुसरण करना होता है।
यह आशंका सही है कि वरिष्ठ सहयोगी जिन्हें यह बात रास नहीं आती है कि उनके कर्मचारी दूर बैठकर अपना काम कर रहे हैं, वे उन कर्मचारियों के लिए मुश्किल पैदा कर सकते हैं।
(लेखक फाउंडिंग फ्यूल के सह-संस्थापक हैं)
|