महत्त्वपूर्ण बदलाव | साप्ताहिक मंथन | | टी. एन. नाइनन / February 26, 2021 | | | | |
चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग के मुताबिक उनके देश ने गरीबी का पूरी तरह खात्मा कर दिया है। इस बयान को चाहे जैसे देखा जाए लेकिन यह बहुत महत्त्वपूर्ण है। दुनिया के सबसे गरीब समाजों में से एक रहा और भारत के साथ दुनिया के अधिकांश गरीबों वाला चीन अब प्रति व्यक्ति आय के ऐसे स्तर पर (क्रय शक्ति समता के अनुसार) पहुंच गया है जो वैश्विक औसत के करीब है। चीन का दावा है कि उसने 85 करोड़ लोगों को गरीबी से उबारा।
चीन के तमाम आंकड़ों की तरह इसे लेकर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। चीन मानक के रूप में विश्व बैंक द्वारा बताए गए गरीबी के स्तर के आय संबंधी बुनियादी आंकड़ों को अपनाता है जबकि उसे मध्य आय वाले देशों द्वारा प्रयोग में लाए जाने वाले उच्च आंकड़ों का इस्तेमाल करना चाहिए। परंतु उस हिसाब से भी देखा जाए तो चीन में गरीबी का आंकड़ा प्रति 20 लोगों में से एक ही निकलता है। भारत की बात करें तो उच्च स्तर के आंकड़ों के मुताबिक आधी आबादी गरीब निकलेगी जबकि निचले स्तर पर भी आबादी का 10 प्रतिशत गरीब है। भारत यह दावा जरूर कर सकता है कि वह दुनिया के सर्वाधिक गरीब लोगों वाला देश नहीं रह गया है। यह दर्जा अब नाइजीरिया को मिल गया है जबकि कॉन्गो दूसरे स्थान पर आ सकता है। यकीनन अगर कोविड (जिसने भारत में गरीबों की संख्या बढ़ाई) नहीं आया होता तो शायद हम भी संयुक्त राष्ट्र के 2030 के पहले गरीब उन्मूलन के लक्ष्य के करीब पहुंच चुके होते।
जैसा कि बार-बार कहा जाता रहा है करीब 40 वर्ष पहले भारत और चीन दोनों विकास और आय के समान स्तर पर थे। अब चीन की प्रति व्यक्ति आय (पीपीपी डॉलर में) भारत की प्रति व्यक्ति आय का 2.7 गुना है। यदि बाजार विनिमय दर पर सांकेतिक डॉलर का इस्तेमाल किया जाए तो भी यह दोगुने से अधिक ठहरता है। यह अंतर बढऩे लगा था लेकिन बाद में भारत चीन को पीछे छोड़कर विश्व की सबसे तेज विकसित होती अर्थव्यवस्था बन गया। लेकिन परंतु महामारी के आगमन के ऐन पहले वह दोबारा पिछड़ गया जबकि चीन की वृद्घि जारी रही। विभिन्न मानकों पर चीन भारत से 10 से 15 वर्ष आगे है। भारत की प्रति व्यक्ति आय आज जिस स्तर पर है, चीन 15 वर्ष पहले वहां था। इसी तरह मानव विकास सूचकांक (आय, स्वास्थ्य और शिक्षा समेत) पर भी वह हमसे 15 वर्ष आगे है। इससे कहीं अधिक जटिल, संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्य पर भारत चीन के मौजूदा स्तर से एक दशक पीछे है।
चीन के साथ ऐसी तुलना भारत समेत किसी भी अन्य देश को उसके साये में धकेल देगी। परंतु भारत यकीनन तरक्की कर रहा है। मानव विकास सूचकांक पर उसकी निरंतर सुधरती स्थिति इसका उदाहरण है। इसके अतिरिक्त ताजा आर्थिक समीक्षा ने एक बुनियादी आवश्यकता सूचकांक (इसमें जलापूर्ति, बिजली, सफाई, आवास आदि शामिल हैं) के आधार पर भी यही कहा है कि हाल के वर्षों में हालात में काफी सुधार हुआ है। अन्य मानक या तो कम सकारात्मक तस्वीर पेश करते हैं या फिर आंकड़ों के अभाव में उनको मापना मुश्किल है। सन 2017-18 के व्यक्तिगत खपत सर्वेक्षण के आंकड़ों की विश्वसनीयता पर सवाल उठाते हुए उन्हें रोक दिया गया लेकिन किसी प्रकार आंकड़े बाहर आ गए और वे छह साल पहले की तुलना में भारी गिरावट दर्शाते हैं। गरीबों की गणना के ताजा आंकड़े करीब एक दशक पुराने हैं। रोजगार के विश्वसनीय आंकड़ों को जुटाना भी मुश्किल था। हालांकि बाद में सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकनॉमी (सीएमआईई) ने नियमित आंकड़े जारी करने शुरू कर दिए। सीएमआईई के आंकड़े बताते हैं कि महामारी के पहले ही देश में रोजगार दर घटने लगी थी। भारत की बात करें तो केवल गतिहीनता की यह उभरती तस्वीर ही चिंता का विषय नहीं है बल्कि समस्या यह है कि हम उन देशों को भी पीछे नहीं छोड़ पा रहे हैं जो वृद्घि और विकास में चीन के आसपास भी नहीं हैं। सतत विकास लक्ष्यों में भारत 2018 में 112वें स्थान पर था लेकिन अगले वर्ष वह फिसलकर 117वें स्थान पर आ गया। वहीं बांग्लादेश, नेपाल और म्यांमार जैसे पड़ोसी तथा कंबोडिया जैसे देश या तो भारत से आगे निकल गए हैं या उनमें सुधार हो रहा है।
निश्चित तौर पर भारत का प्रदर्शन उनसे बेहतर होना चाहिए। ठीक वैसे ही जैसे उसने गरीबी के क्षेत्र में नाइजीरिया और कॉन्गो को पीछे छोड़ा। दो तिमाही की आर्थिक गिरावट के बाद वृद्घि की वापसी से देश ने राहत की सांस ली है और अगले वर्ष तेज वृद्घि की आशा है। ऐसे में हमें इस विषय पर भी विचार करना होगा।
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