भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने मंगलवार को तीन अन्य वाणिज्यिक बैंकों को प्रॉम्प्ट करेक्टिव ऐक्शन (पीसीए) ढांचे से बाहर कर दिया। यानी इन बैंकों को ऋण देने और अन्य बैंकिंग सेवाएं बहाल करने का अवसर मिल गया। इन तीन बैंकों में से इलाहाबाद बैंक और कॉर्पोरेशन बैंक सरकारी जबकि धनलक्ष्मी बैंक एक छोटा निजी बैंक है। आरबीआई ने अपने वक्तव्य में कहा है कि वित्तीय निगरानी बोर्ड (बीएफएस) ने 26 फरवरी को पीसीए के अधीन आने वाले बैंकों के प्रदर्शन के आकलन संबंधी समीक्षा बैठक के बाद यह निर्णय लिया। बीएफएस ने पाया कि सरकार ने 21 फरवरी को पीसीए के ढांचे में आने वाले बैंकों समेत कई बैंकों में नई पूंजी डाली। निश्चित तौर पर दो सरकारी बैंक, जिन्हें पीसीए के ढांचे से बाहर किया गया, वे सरकार द्वारा पुनर्पूंजीकरण के सबसे बड़े लाभार्थी बनकर उभरे। इलाहाबाद बैंक और कॉर्पोरेशन बैंक को क्रमश: 6,896 करोड़ रुपये और 9,086 करोड़ रुपये की नई पूंजी प्रदान गई। इससे इन बैंकों के पूंजीगत फंड में इजाफा हुआ है और उनके ऋण नुकसान की प्रॉविजनिंग में सुधार हुआ और पीसीए मानकों का अनुपालन सुनिश्चित हुआ। उम्मीद के मुताबिक ही नैशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) में तीन बैंकों के शेयर सुबह के शुरुआती कारोबार में 10 फीसदी तक उछले। इस महीने के आरंभ में आरबीआई ने तीन अन्य सरकारी बैंकों बैंक ऑफ इंडिया, बैंक ऑफ महाराष्ट्र और ओरियंटल बैंक ऑफ कॉमर्स को पीसीए ढांचे से बाहर कर दिया था और केवल पांच बैंक ही इसमें शेष रह गए थे। यह एक स्वागतयोग्य बात है और उम्मीद की जानी चाहिए कि शेष बैंक भी जल्दी ही अपने मूलभूत काम को अंजाम देने की स्थिति में आ जाएंगे। मूलभूत काम यानी कारोबारियों को ऋण देना और इस तरह देश में आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देना। वित्त मंत्रालय को उम्मीद है कि अगले छह से आठ महीनों में तीन से चार और बैंक आरबीआई की कमजोर बैंकों की सूची से बाहर हो जाएंगे। यह उम्मीद इसलिए की जा रही है क्योंकि उनकी वित्तीय स्थिति में सुधार हो रहा है, पूंजी का स्तर सुधर रहा है और फंसा हुआ कर्ज कम हो रहा है। सच तो यह है कि ये कमजोर बैंक प्राथमिक तौर पर पीसीए मानकों से पार पाने में इसलिए कामयाब रहे हैं क्योंकि सरकार ने इनमें बड़े पैमाने पर पूंजी डालने का निर्णय लिया। गत सप्ताह वित्त मंत्रालय ने घोषणा की कि इस वित्त वर्ष में 12 सरकारी बैंकों में 48,239 करोड़ रुपये की नई पूंजी डाली जाएगी ताकि ये नियामकीय पूंजी आवश्यकताओं का ध्यान रख सकें और अपनी वृद्घि योजनाओं को धन मुहैया करा सकें। इस फंडिंग के साथ 1.06 लाख करोड़ रुपये की कुल डाली जाने वाली पूंजी में से 1,00,958 करोड़ रुपये की राशि बैंकों में आ गई। सवाल यह है कि क्या बैंकों को पीसीए से बाहर लाने भर से उनकी बेहतर वृद्घि सुनिश्चित हो जाएगी। ऐसा इसलिए क्योंकि नई पूंजी का एक बड़ा हिस्सा फंसे हुए कर्ज के निपटान में जाएगा और वृद्घि के लिए इस्तेमाल होने वाली पूंजी कम ही रह जाएगी। बैंकों को नए सिरे से ऋण देने की शुरुआत करने के पहले बाजार से धनराशि जुटानी होगी या फिर उनको इस उम्मीद में बजट की प्रतीक्षा करनी होगी कि सरकार शायद और अधिक पूंजी डाले। सरकारी बैंकों के संचालन ढांचे में भी आमूलचूल बदलाव की आवश्यकता है। अगर सरकार इस पर ध्यान केंद्रित करती है तो बेहतर होगा। मजबूत जोखिम प्रबंधन ढांचे के अलावा जरूरत यह भी है कि एक ऐसी व्यवस्था लागू की जाए जहां उच्च पदों पर नियुक्तियां समय पर हों और बैंकों के बोर्ड पेशेवर और जवाबदेह हों।
