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महामारी की मार से बचने के लिए पुस्तकालय हो रहे डिजिटल

Last Updated- December 14, 2022 | 8:19 PM IST

कोलकाता के राष्ट्रीय पुस्तकालय ने लगभग आठ महीने बाद 23 नवंबर से पाठकों को अपने यहां आने की अनुमति देना शुरू कर दिया है। हालांकि फिलहाल पाठकों की संख्या सीमित ही है। मुख्य पठन कक्ष में 400 की क्षमता है लेकिन अभी अधिकतम 40 पाठकों को ही बैठने की अनुमति दी जा रही है। इसके लिए भी ऑनलाइन पंजीकरण आवश्यक है। पिछले कुछ समय से वरिष्ठ नागरिकों द्वारा दबाव बनाए जाने के बाद अंतत: पुस्तकालय ने पाठकों को आने का निर्णय लिया। देश की वित्तीय राजधानी मुंबई की 216 साल पुरानी लाइब्रेरी एशियाटिक सोसाइटी अभी भी सदस्यों या आम पाठकों के लिए बंद है। 2,50,000 से अधिक पुस्तकों के संग्रहालय वाले पुस्तकालय में काम करने वाले कर्मचारियों के साथ मार्च में स्टॉक टेकिंग अभ्यास शुरू हुआ था। हालांकि तभी एक सदस्य को खांसी की शिकायत हुई और एशियाटिक सोसाइटी की अध्यक्ष विस्पी बालपोरिया ने कुछ दिन के लिए पुस्तकालय बंद करने का निर्णय लिया, क्योंकि उन्होंने एक वायरस के विस्तार की खबरें सुनी थीं।  
उन्होंने बताया, ‘मैं उस समय इससे अनजान थी। एक हफ्ते बाद पूरे देश में लॉकडाउन लग गया और उसके बाद कोई भी पुस्तकालय नहीं जा सका।’
कुछ महीने पहले तक पुस्तकालय के पूरी तरह बंद रहने के चलते यहां काम करने वाले लगभग 30 कर्मचारियों को पूर्ण वेतन का भुगतान नहीं किया जा सका, क्योंकि पुस्तकालय को मिलने वाली अनुदान राशि घट गई थी। अधिकांश कर्मचारी आने-जाने के लिए लोकल ट्रेन पर निर्भर थे और अब वे वैकल्पिक साधन ढूंढ रहे हैं।
पाठक अभी भी पढ़ाई के लिए शांत जगह की तलाश कर रहे हैं, जो केवल एक सार्वजनिक पुस्तकालय ही उपलब्ध करा सकता है। दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी के लिए यह बिल्कुल सही है, जहां हजारों छात्रों का आना जारी है। यह दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी के लिए विशेष रूप से सच है, जहां हजारों छात्र पढऩे के लिए आ रहे हैं। दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी के उप निदेशक (प्रशासन) महेश कुमार अरोड़ा कहते हैं कि कॉलेज के छात्र और प्रतियोगी परीक्षाओं के इच्छुक लोग लगातार पूछते रहते हैं कि ये सुविधाएं दोबारा कब शुरू होंगी।  
हमारे जीवन के प्रत्येक क्षेत्र को प्रभावित करने वाली महामारी ने पुस्तकालयों को भी नहीं बख्शा है। अब ये संस्थान खुद को मजबूत करने के लिए मुश्किलों का सामना कर रहे हैं।
26 लाख पुस्तकों के साथ देश में सर्वाधिक किताबों वाली नैशनल लाइब्रेरी पाठकों के लिए ‘मक्का’ है। पुस्तकों के रैक की कुल लंबाई लगभग 30 किलोमीटर है। लेकिन यहां तक कि विशाल पुस्तकालय को पाठकों की अनुमति देते समय सामाजिक दूरियों के मानदंडों को भी ध्यान में रखना पड़ता है। लाइब्रेरी में ओएसडी के.के. कोचुकोशी को उम्मीद है कि पाठकों की संख्या में तेजी आएगी। संस्थान में चल रहे डिजिटलीकरण कार्य की मदद से जो लोग पुस्तकालय में नहीं आ पा रहे हैं, वे कम से कम कुछ पुस्तकों को ऑनलाइन पढ़ सकते हैं।  
संस्थान में अभी तक तीन चरणों में 1,974 दुर्लभ पुस्तकों सहित 21,000 पुस्तकों को डिजिटल स्वरूप दिया जा चुका है। लॉकडाउन समाप्त होने के बाद शुरू हुए चौथे चरण में 61 पुस्तकों का डिजिटलीकरण किया गया है।
उधार ली गई पुस्तकों की भौतिक प्रतियां लौटाई जाने के बाद 72 घंटे के लिए क्वारंटीन रखा जाता है। कोचुकोशी बताते हैं, ‘आप किताबों के पृष्ठों पर स्प्रे नहीं कर सकते क्योंकि इससे वे क्षतिग्रस्त हो सकते हैं।’
बालपोरिया का कहना है कि चूंकि महाराष्ट्र सबसे बुरी तरह प्रभावित राज्यों में से एक है, इसलिए एशियाई लाइब्रेरी में लोगों को आने की अनुमति देने की कोई तत्काल योजना नहीं है। हालांकि उन्हें उम्मीद है कि आने वाले साल में ये सेवाएं दोबारा शुरू हो जाएंगी।
मुख्यत: शोधकर्ताओं को आकर्षित करने वाले इस पुस्तकालय में लगभग 3,000 सदस्य हैं, और यहां हर साल कई छात्रों का नामांकन भी करता है। यहां एक अनुसंधान भी मौजूद है।
पुस्तकालय एक वेब पोर्टल के माध्यम से लॉकडाउन के बाद से पाठकों की सेवा कर रहा है। ग्रंथ संजीवनी नामक इस पोर्टल को लाइब्रेरी ने पहले ही विकसित कर लिया था। पोर्टल में डिजिटलीकृत सामग्री शामिल है, जिसमें 19 वीं शताब्दी के शुरुआती दिनों में समाचार पत्रों के पुस्तकालय संग्रह भी शामिल हैं। पुस्तकालय को संस्कृति मंत्रालय से अनुदान मिलता है। हालांकि पांच साल पहले महाराष्ट्र सरकार द्वारा 5 करोड़ रुपये के कोष की पेशकश के बाद डिजिटलीकरण का पहला चरण शुरू किया गया था।
बालपोरिया कहती हैं, ‘हम कॉपीराइट वाली किताबों का डिजिटलीकरण नहीं कर सकते। डिजिटलीकरण बेहतर कदम है क्योंकि इससे पुरानी किताबों को बेहतर तरीके से सहेजा जा सकेगा। समाचार पत्रों को भी डिजिटल मोड में साझा किया जा रहा है, क्योंकि वे कॉपीराइट के तहत नहीं आते हैं।’
लॉकडाउन के बाद सोसाइटी की उप-समिति, मुंबई अनुसंधान केंद्र, आभासी कार्यक्रमों एवं योजनाबद्ध व्याख्यान श्रृंखला आयोजित करा रही है, जहां विदेश के दर्शक भी शामिल हो रहे हैं।
आम तौर पर, सभी कार्यक्रम 120-सीट वाले दरबार हॉल में आयोजित किए जाते हैं। सोसाइटी की सदस्यता पाने के उत्सुक लोग इन कार्यक्रमों के माध्यम से संस्थान से तेजी से जुड़ रहे हैं।
दिल्ली स्थित नेहरू मेमोरियल म्यूजियम ऐंड लाइब्रेरी (एनएमएमएल) ने अगस्त से आगंतुकों के लिए अपने दरवाजे खोल दिए हैं, और धीरे-धीरे पढऩे के समय को 4-6 घंटे से बढ़ाकर आठ (9 बजे से शाम 5 बजे) कर दिया है। एनएमएमएल में लाइब्रेरियन एवं सूचना अधिकारी अजित कुमार का कहना है कि शुरू में पुस्तकालय आने वालों से लिखित आश्वासन लिया जाता था कि उन्हें कोरोना के संक्रमण नहीं है। लाइब्रेरी आने वाले लोगों को एक दिन पहले ऑनलाइन पंजीकरण कराना था।
हालांकि, तकनीकी बाधाओं का सामना करने के बाद संस्थान ने पहले आओ-पहले पाओ के आधार पर पाठकों को समायोजित करने का निर्णय लिया। पुस्तकालय की क्षमता 150 है और इस समय केवल 20 पाठकों को ही आने की अनुमति दी जा रही है।
लॉकडाउन के पहले चरण के बाद पुस्तकालय कर्मचारी अप्रैल के अंत में वापस आ गए। एनएमएमएल ने पाठकों के अनुरोध पर शोध सामग्री (पत्रिकाओं एवं पुस्तकों के विशेष खंड) की स्कैन की हुई प्रतियां उपलब्ध कराईं।
पुस्तकालय में 2,50,000 से अधिक तस्वीरें उपलब्ध हैं जिनमें से लगभग 80,000 को डिजिटल रूप दिया जा चुका है। इनके अलावा, पुस्तकालय के सदस्य जेस्ट्रो जैसी डिजिटल लाइब्रेरी की पत्रिकाओं एवं अभिलेखीय डेटाबेस तक भी पहुंच बना सकते हैं।
संस्कृति मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त संस्थान, एनएमएमएल वार्षिक, द्विमासिक और साप्ताहिक आधार पर सदस्यता प्रदान करता है। इसके 10,000-15,000 सदस्य हैं।
पाठकों द्वारा पुस्तकें उपयोग करने के बाद उन्हें 48 घंटों के लिए एक अलग रैक में रख दिया जाता है।  
दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी में महामारी से पहले रोजाना लगभग 10,000 पाठक आते थे। यह लाइब्रेरी संस्कृति मंत्रालय के अधीन आती है और राष्ट्रीय राजधानी में इसकी 34 शाखाएं हैं। पुस्तकालय को केवल पुस्तकें जारी करने एवं वापस लेने के लिए मई माह में दोबारा खोल दिया गया था, लेकिन अभी भी पाठकों की संख्या मुश्किल से 400-500 तक पहुंच पाती है।
लॉकडाउन के दौरान, लाइब्रेरी ने पुस्तकों को ऑनलाइन पढऩे के लिए आभासी लिंक प्रदान करना शुरू कर दिया। लाइब्रेरी की सभी शाखाओं में कुल 15 लाख पुस्तकों का संग्रह है। कुमार कहते हैं, ‘कुछ पुस्तकें डिजिटल रूप में उपलब्ध हैं। अब डेलनेट (डेवलपिंग लाइब्रेरी नेटवर्क), केंद्रीय सचिवालय पुस्तकालय और राष्ट्रीय पुस्तकालय जैसे साझेदार पुस्तकालयों की मदद से हम अपने पाठकों को उनके ऑनलाइन लिंक उपलब्ध करा रहे हैं, जिससे वे अधिक से अधिक पुस्तकें पढ़ सकें।’

First Published - December 11, 2020 | 11:48 PM IST

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