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कैसे गिराई जाएंगी कंक्रीट की भीमकाय मीनारें?

Last Updated- December 11, 2022 | 5:40 PM IST

उत्तर प्रदेश के नोएडा में सुपरटेक के ट्विन टावर गिराने की तारीख चूंकि नजदीक आ रही है, इसलिए कंपनी को अपनी तैयारी को अंतिम रूप देने का मुश्किल काम सौंपा गया है। उच्चतम न्यायालय द्वारा निर्धारित अंतिम समय सीमा के अनुसार निर्माण के नियमों के उल्लंघन में दोषी पाए जाने की वजह से इन 40 मंजिला टावरों को 28 अगस्त तक एडिफिस इंजीनियरिंग द्वारा विस्फोट करके गिराया जाना है।
फर्म में साझेदार उत्कर्ष मेहता कहते हैं कि गिराने की विधि, चाहे वह मैनुअल हो, मशीनों के जरिये हो या विस्फोट से, अन्य कारकों के अलावा स्थल की स्थिति और अन्य इमारतों से उस संरचना की निकटता को ध्यान में रखते हुए निर्धारित की जाती है। वह कहते हैं ट्विन टावरों के मामले में जो लगभग 103 मीटर ऊंचे हैं, मैनुअल तरीके से गिराने में लंबा समय लग जाता, इसलिए हमने विस्फोट को चुना है।
उनका कहना है कि ऐसा हर मामले में अपनी चुनौतियां होती हैं। मेहता ने बताया ‘इन ट्विन टावर के मामले में हमारे सामने दो बड़ी चुनौतियां थीं – एक टावर की आवासीय इमारत से निकटता और एक टावर के नीचे से जा रही गैस पाइपलाइन।’
यह सुनिश्चित करने के लिए कि इमारतें एक ही बार में ताश के पत्तों की तरह ढह जाएं, फर्म ने अनुक्रम और रूपरेखा की योजना जानने के लिए दक्षिण अफ्रीका की जेट डिमोलिशंस के साथ गठजोड़ किया है, ताकि यह पक्का किया जा सके यह संरचना आसपास की इमारतों और पाइपलाइन से दूर ही गिरे।
जयपुर स्थित एक डिमोलिशन फर्म एक्सीक्यूडे के निदेशक आनंद शर्मा कहते हैं कि विस्फोट का मूल सिद्धांत विस्फोटकों का इस्तेमाल करते हुए संरचना के महत्त्वपूर्ण आधार को तोड़ना होता है।
वह बताते हैं ‘हम महत्त्वपूर्ण आलंबन वाले स्थानों पर विस्फोटक लगाते हैं। योजना यह होती है कि जब विस्फोट हो, कंक्रीट हटा दिया जाए और चूंकि स्टील अकेले ही संरचना का भार का सहन नहीं कर सकता, इसलिए वह गिरने लगता है।’
अपने करियर के दौरान शर्मा कई विध्वंस का काम कर चुके हैं, जिनमें से कई विस्फोटकों के जरिये किए गए थे। इनमें 100 मीटर से कम ऊंचाई वाले कूलिंग टावर और चिमनियां भी शामिल हैं।
मई में अपनी आखिरी परियोजना में उन्हें गुजरात के जाफराबाद में अल्ट्राटेक सीमेंट हाउसिंग कॉलोनी में स्थित पानी का एक टैंक ढहाना पड़ा। 20-25 मीटर दूर स्थित आवासीय क्वार्टर और मुश्किल से सात मीटर की दूरी पर स्थिति एक अस्पताल की वजह से न केवल मलबा, बल्कि आवाज को भी रोकना महत्त्वपूर्ण बात थी। शर्मा कहते हैं ‘आवाज रोकने के लिए हम विस्फोटक में कुछ खास रसायनों के अलावा विस्फोट करने वाले फ्यूज के इस्तेमाल से बचने की कोशिश करते हैं।’
आवाज के अलावा मलबा उड़ना भी एक अन्य ऐसा खतरा होता है, जिस पर विध्वंस की तैयारी करते समय ध्यान रखा जाता है। आम तौर पर संरचना के चारों ओर सुरक्षात्मक घेरों और आसपास के क्षेत्रों से लोगों को निकालकर जोखिम को कम किया जाता है।
सुपरटेक टावरों के मामले में एडिफिस सुरक्षा के कई घेरों का इस्तेमाल करेगी।
मेहता बताते हैं ‘विस्फोट किए जाने वाले हरेक खंभे को तार की जाली की चार परतों तथा जियोटेक्सटाइल कपड़े की चार परतों से ढका जा रहा है। यह ऐसा विशेष कपड़ा होता है, जो लचकदार होता है और मलबे को स्रोत तक ही रोके रखता है।’
इसके अलावा प्रत्येक मंजिल को पर्दे से बंद कर दिया जाएगा, जो विभिन्न मोटाई वाला जियोटेक्सटाइल कपड़ा होता। यह सुरक्षा की प्रारंभिक परतों से बाहर आने वाले मलबे को रोकता है। सुरक्षा की चौथी परत में आसपास की इमारतों को जियोटेक्सटाइल कपड़े से ढका जाएगा। इसके अलावा यह सुनिश्चित करने के लिए कि विस्फोट और विध्वंस से होने वाला कंपन आसपास की संरचनाओं में न फैलें, टावरों के भूतल में इम्पैक्ट कुशन  बनाए जा रहे हैं और उन्हें थामने के लिए चारों ओर खाई खोदी जा रही है।
मेहता बताते हैं कि विस्फोट की रूपरेखा से यह सुनिश्चित होगा कि जमीन पर कोई तत्काल प्रभाव न पड़े। हम इसे वाटरफाल विस्फोट कहते हैं। यह एक बार में नहीं ढहेगा, बल्कि शुरुआती बिंदु से इमारत के अंतिम बिंदु तक किसी लहर की तरह होगा, हालांकि यह आम आदमी को यह नहीं दिखाई देगा। दोनों टावरों के एक साथ नीचे आने वाली इस पूरी प्रक्रिया में केवल सात से आठ सेकंड का ही वक्त लगेगा।
इस बीच आसपास की इमारतों में रहने वालों को कुछ घंटों के लिए निकाला जाएगा। मेहता कहते हैं कि हमने 250 मीटर का दायरा बनाया है, जहां किसी भी प्राणी को आधे दिन के लिए नहीं रहने दिया जाएगा।
सुपरटेक परियोजना से पहले एडिफिस इंजीनियरिंग देश में कई विध्वंसों की अगुआई कर चुकी है। जनवरी 2020 में केरल के कोच्चि में माराडू फ्लैटों का विध्वंस सबसे अलग है। एडिफिस इंजीनियरिंग ने जेट डिमोलिशन के साथ मिलकर उन चार इमारतों में से तीन को ढहाने का काम संभाला था, जिन्होंने तटीय विनियमन क्षेत्र के नियमों को तोड़ा था। इन इमारतों की ऊंचाई तकरीबन 65 मीटर थी।
विध्वंस के मामले में पहले वाली चीजों का अनुसरण नहीं किया जा सकता है। गिराने की रूपरेखा कई बातों पर निर्भर करती है, जिसमें संरचना की ऊंचाई और निर्माण से लेकर उसके चारों ओर की बनावट तक शामिल होती है।

First Published - July 11, 2022 | 11:14 PM IST

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