वित्त मंत्रालय के राजस्व विभाग ने विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसईजेड) के लिए प्रस्तावित परिवर्धित कानून को लेकर चिंता जताई है। इसके तहत इन केंद्रों में इकाइयां स्थापित करने वाली कंपनियों को प्रत्यक्ष कर में कुछ छूट की पेशकश की गई है। इस मामले से जुड़े सूत्रों ने यह जानकारी दी है।
वाणिज्य विभाग के नए मसौदा विकास (उद्यम और सेवाएं) केंद्र (देश) विधेयक, 2022 के तहत प्रस्ताव किया गया है कि इन केंद्रों में स्थापित सभी नई इकाइयों के लिए आयकर अधिनियम की धारा 115बीएबी के तहत 15 प्रतिशत रियायती कॉर्पोरेट कर दरों का प्रावधान होगा। रियायती कर की दर कुछ शर्तों के साथ पुरानी इकाइयों पर भी लागू होगी।
उपरोक्त उल्लिखित एक व्यक्ति ने कहा, ‘मंत्रालय इन विकास केंद्रों में इकाइयां स्थापित करने वाली कंपनियों को किसी तरह के कर छूट की पेशकश किए जाने के खिलाफ है। उसे इससे राजस्व के नुकसान का डर है।’सिर्फ विकास केंद्रों में इस तरह की छूट दिए जाने से अन्य विभागों के सामने ऐसी स्थिति खड़ी हो सकती है कि वे भी राहत दें और इससे सभी कंपनियों को छूट देने को लेकर बहस छिड़ सकती है।
इस सिलसिले में वित्त मंत्रालय को भेजे गए ई-मेल का कोई उत्तर नहीं मिल सका। वाणिज्य मंत्रालय द्वारा रियायती कर की दर का प्रस्ताव कोई नई पहल नहीं है, जिस पर केंद्र सरकार विचार कर रही है। इसके पीछे विचार यह है कि भारत के घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा दिया जा सके।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 3 साल पहले घोषणा की थी कि कोई भी नई घरेलू कंपनी अगर विनिर्माण में नया निवेश करती है तो उसके पास आयकर अधिनियम की धारा 115 बीएबी के तहत 15 प्रतिशत कर भुगतान का विकल्प होगा। बहरहाल उसके बाद उन्हें इस प्रोत्साहन के अलावा किसी अन्य योजना का लाभ लेने की छूट नहीं होगी। इस तरह की कंपनियों को मार्च 2024 के पहले उत्पादन शुरू करना होगा। वाणिज्य विभाग चाहता है कि इसे देश विधेयक के तहत कुछ और वर्षों 2032 तक के लिए बढ़ाया जाए।
वाणिज्य व राजस्व विभागों के बीच इन प्रमुख कर प्रावधानों को लेकर आम राय न होने की वजह से इस अहम देश विधेयक को संसद के दोनों सदनों में पारित कराने में देरी हो सकती है। नए कानून की घोषणा वित्त मंत्री सीतारमण ने फरवरी में पेश केंद्रीय बजट में की थी।
एक अन्य अधिकारी ने कहा, ‘वाणिज्य एवं वित्त मंत्रालयों के बीच इस मसले पर कुछ दौर की चर्चा हुई है। इसके बावजूद मतभेद बना हुआ है। वित्त मंत्रालय इस पर लिखित प्रतिक्रिया वाणिज्य मंत्रालय को एक सप्ताह पहले दी थी।