कोविड-19 महामारी की वजह से डिजिटल सेवाओं पर काफी जोर बढ़ा है और यहां तक कि पारंपरिक कारोबार और शिक्षा से जुड़े काम भी अब ऑनलाइन ही चल रहे हैं। हालांकि इसमें एक अनदेखा पहलू दस्तावेजों के सत्यापन की प्रक्रिया ही रही है जो अब तक ऑनलाइन नहीं होता था। इसके लिए दस्तावेजों के साथ खुद मौजूद होना जरूरी है।
दस्तावेजों का सत्यापन करने की तकनीक कुछ समय से मौजूद है लेकिन महामारी की वजह से इसके दायरे में विस्तार हुआ है। सरकार की डिजिटल इंडिया योजना की प्रमुख पहलों में से एक डिजिलॉकर पर ही गौर करते हैं जो नागरिकों को ऑनलाइन डिजिटल प्रारूप में जन्म प्रमाण पत्र, विश्वविद्यालय की डिग्रियां और आयकर दस्तावेजों जैसे प्रमाण पत्रों और आधिकारिक दस्तावेजों को स्टोर करने की सुविधा देता है। साल 2015-16 में शुरू किए गए डिजिलॉकर की कल्पना सभी दस्तावेजों को सुरक्षित रखने के लिए एक केंद्रीय भंडार के रूप में की गई थी जहां एक पंजीकृत उपयोगकर्ताओं की ही पहुंच होगी और उनका नियंत्रण होगा। इसका इस्तेमाल बढ़ रहा है लेकिन पिछले साल जून-अगस्त की अवधि में उपयोगकर्ताओं के पंजीकरण की संख्या 4 करोड़ से बढ़कर 4.5 करोड़ हो गई।
डिजिलॉकर का प्रबंधन करने वाले इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अंतर्गत काम करने वाले राष्ट्रीय ई-प्रशासन विभाग के अध्यक्ष और मुख्य कार्याधिकारी (सीईओ) अभिषेक सिंह कहते हैं, ‘पिछले साल, इस समय (मार्च-अप्रैल) के आसपास रोजाना हम करीब 20,000 उपयोगकर्ताओं को जोड़ रहे थे। अब, हम रोजाना लगभग 100,000 पंजीकरण करा रहे हैं। इसकी संरचना विस्तार होने के लायक है और हमें उम्मीद है कि यह सभी सरकारी प्रमाणपत्रों के लिए डिफ ॉल्ट भंडार बन जाएगा।’
सिंह कहते हैं, ‘डिजिलॉकर आपके सभी दस्तावेजों के एपीआई-स्तर के एकीकरण की अनुमति देता है। पिछले साल जब दिल्ली विश्वविद्यालय में छात्रों के दाखिले हो रहे थे उस वक्त भी छात्र अपने अंकपत्र और प्रमाण पत्र जमा करने के लिए कॉलेज नहीं आ पा रहे थे। इसलिए हमने एपीआई-स्तरीय सत्यापन पर जोर दिया। इस बार दिल्ली विश्वविद्यालय में बिना कोई दस्तावेज जमा किए ही करीब एक लाख छात्रों का नामांकन हुआ।’
एपीआई या ऐप्लिकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस एक सॉफ्टवेयर उत्पाद और दूसरे उत्पाद के बीच डेटा हस्तांतरण में मदद करता है। सरकार की एक खुली एपीआई नीति है जिसका मकसद डेटा मालिकों और अंतर तथा अंतर-सरकारी एजेंसियों के बीच डेटा के सक्षम साझेदारी को बढ़ावा देना है।
कर्नाटक पुलिस द्वारा सिपाहियों की भर्ती के लिए कक्षा 10 और 12 के प्रमाण पत्रों का सत्यापन करने के लिए डिजिलॉकर का भी इस्तेमाल किया गया है। लाखों आवेदनों की वजह से प्रत्यक्ष तौर पर प्रमाण पत्रों का सत्यापन करने में छह महीने या उससे अधिक का समय लग जाता। सिंह कहते हैं, ‘डिजिलॉकर के जरिये प्रमाणपत्रों का डिजिटल सत्यापन किया गया और इससे पुलिस विभाग की भर्ती प्रक्रिया में सात से आठ महीने बच गए।’ विभागों के बीच डेटा के तेजी से हस्तांतरण होने का एक स्पष्ट फ ायदा यह मिलता है कि समय की बचत होती है लेकिन एक सक्षम एपीआई लागत भी कम कर देता है।
इस साल फरवरी में भारतीय बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण ने सभी बीमा कंपनियों को डिजिलॉकर के जरिये डिजिटल बीमा पॉलिसी जारी करने की सलाह दी थी। अकादमिक पुरस्कारों के ऑनलाइन स्टोरहाउस नैशनल एकेडमिक डिपॉजिटरी (एनएडी) ने भी डिजिलॉकर को इन पुरस्कारों का भंडार बनाया है। पिछले साल शुरू किया गया राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन भी डिजिलॉकर का इस्तेमाल करता है। सिंह का मानना है कि इन पहलों की मदद से डिजिलॉकर इस साल के अंत तक 8 करोड़ पंजीकृत उपयोगकर्ताओं तक अपनी पहुंच बना सकता है। इंटरनेट ऐंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया की 2019 की एक रिपोर्ट के मुताबिक डिजिलॉकर को व्यापक रूप से अपनाने की राह में कुछ चुनौतियों का जिक्र किया गया है। इनमें क्लाउड में संग्रहीत दस्तावेजों पर कम भरोसा, देश भर में इंटरनेट की उपलब्धता की गुणवत्ता और अपर्याप्त डिजिटल साक्षरता जैसी समस्या भी शामिल है। महामारी की वजह से लॉकडाउन लगाने की जरूरत पड़ी और इसी वजह से सरकार ने डिजिलॉकर बनाने पर जोर दिया जो दस्तावेजों को स्टोर करने का एक सामान्य तरीका है और साथ ही इंटरनेट डेटा कनेक्शन की बेहतर उपलब्धता की वजह से इन चुनौतियों में से कुछ सुधार हुआ है।
दस्तावेजों पर डिजिटल हस्ताक्षर
दस्तावेजों पर डिजिटल हस्ताक्षर का चलन भी पिछले साल से ही प्रभावी हुआ है। एडोबी के अनुसंधान में हाल ही में पता चला कि युवाओं की वजह से डिजिटल दस्तावेज के इस्तेमाल और ई-हस्ताक्षर में वृद्धि हुई है। साल 2020 में सभी उम्र वर्ग में यह वृद्धि देखी गई और महामारी के मद्देनजर पहली बार कई ई-हस्ताक्षर भी किए गए।
एडोबी डिजिटल इनसाइट्स ने करीब 4,000 ग्राहकों का सर्वेक्षण किया जिनमें एशिया प्रशांत क्षेत्र के 1,000 से अधिक उपभोक्ताओं का सर्वेक्षण भी शामिल था कि उन्होंने कोविड-19 की शुरुआत के बाद ई-हस्ताक्षरों का इस्तेमाल किस तरह किया। एशिया प्रशांत क्षेत्र के करीब 76 फीसदी जवाब देने वालों ने कहा कि उन्होंने 2019 की तुलना में 2020 के आखिरी छह महीनों में अधिक दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए। साल 2000 के बाद पैदा हुए किशोरों और युवाओं (61 फीसदी) में इसकी दर सबसे ज्यादा थी। करीब 53 फीसदी लोगों ने कहा कि उन्होंने पिछले साल पहली बार ई-हस्ताक्षर किए क्योंकि उनके पास अतीत में कोई विकल्प नहीं था।
भारत में जवाब देने वाले उन लोगों की तादाद का अनुपात (62 फीसदी) सबसे अधिक था जिन्होंने 2020 में पहली बार ई-हस्ताक्षर किए थे। बीमा पॉलिसी और स्वास्थ्य देखभाल पंजीकरण ई-हस्ताक्षरित होने वाले सबसे आम दस्तावेजों में शामिल थे। एडोबी इंडिया के डिजिटल मीडिया के निदेशक गिरीश बालचंद्रन ने एक बयान में कहा, ‘वैश्विक महामारी ने उत्पादक होने के अर्थ को ही बदल दिया है। कागज से डिजिटल की ओर बढऩे की प्रक्रिया तब शुरू हो गई थी जब 30 साल पहले पीडीएफ की शुरुआत की गई थी और साल 2020 एक महत्त्वपूर्ण पड़ाव था। डिजिटल दस्तावेज अब व्यापार उत्पादकता की मुद्रा बन गए हैं और यह अब एक अहम केंद्र है कि कारोबार, सरकारें और उपभोक्ता कैसे संवाद, सहयोग और लेन-देन करते हैं। इससे भविष्य की अर्थव्यवस्था के लिए एजेंडा भी स्थापित होता है।’
इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षरों पर एडोबी और ट्राइलीगल के श्वेत पत्र के अनुसार, भारतीय कानून डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षरों को मान्यता देता है। डिजिटल हस्ताक्षर ‘एसिमेट्रिक क्रिप्टो-सिस्टम और हैश फंक्शन’ द्वारा तैयार किए जाते हैं। इसके तहत डिजिटल तरीके से हस्ताक्षर करने वाले व्यक्ति को यूएसबी टोकन में स्टोर कर डिजिटल आईडी जारी की जाती है जिसका इस्तेमाल किसी दस्तावेज पर हस्ताक्षर करने के लिए निजी पिन के साथ किया जाता है। सामान्य तौर पर यह माना जाता है कि डिजिटल हस्ताक्षर से ज्यादा छेड़छाड़ नहीं की जा सकती है। सिंह के मुताबिक ई-हस्ताक्षर की 98 फीसदी क्षमता होती है।
तथ्य
साल 2015-16 में शुरू किए गए डिजिलॉकर की कल्पना सभी दस्तावेजों को सुरक्षित रखने के लिए एक केंद्रीय भंडार के रूप में की गई थी जहां एक पंजीकृत उपयोगकर्ताओं की ही पहुंच होगी और उनका नियंत्रण होगा
कर्नाटक पुलिस द्वारा सिपाहियों की भर्ती के लिए कक्षा 10 और 12 के प्रमाण पत्रों का सत्यापन करने के लिए डिजिलॉकर का भी इस्तेमाल किया गया
इस साल फरवरी में भारतीय बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण ने सभी बीमा कंपनियों को डिजिलॉकर के जरिये डिजिटल बीमा पॉलिसी जारी करने की सलाह दी थी
अकादमिक पुरस्कारों के ऑनलाइन स्टोरहाउस नैशनल एकेडमिक डिपॉजिटरी ने भी डिजिलॉकर को इन पुरस्कारों का भंडार बनाया है
पिछले साल शुरू किया गया राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन भी डिजिलॉकर का इस्तेमाल करता है
डिजिलॉकर इस साल के अंत तक 8 करोड़ पंजीकृत उपयोगकर्ताओं तक अपनी पहुंच बना सकता है
महामारी की वजह से लॉकडाउन लगाने की जरूरत पड़ी और इसी वजह से सरकार ने डिजिलॉकर बनाने पर जोर दिया जो दस्तावेजों को स्टोर करने का एक सामान्य तरीका है