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दिव्यांगों के लिए नौकरी पाना मुश्किल

Last Updated- December 11, 2022 | 1:09 PM IST

स्नातकोत्तर डिग्रीधारक मोहम्मद असलम पीवी के पास दो निजी कंपनियों के लेखा विभाग में काम करने का अनुभव है। वह जन्म से ही दिव्यांग हैं। उनकी उम्र 27 साल है और वह इस साल की शुरुआत से ही एक अदद नौकरी तलाश रहे हैं।
वित्त वर्ष 2018 और वित्त वर्ष 2021 में प्रत्येक 10,000 कर्मचारियों में से 30-32 कर्मचारी दिव्यांग थे लेकिन वित्त वर्ष 2022 में यह आंकड़ा घटकर 29 पर आ गया जो पांच साल में सबसे कम है। यह विश्लेषण बीते तीन साल के दौरान देश की शीर्ष 100 कंपनियों से जुटाए गए आंकड़ों पर आधारित है। 
नैशनल सेंटर फॉर प्रमोशन ऑफ इम्प्लॉयमेंट फॉर डिसेबल्ड पीपल (एनसीपीईडीपी) के कार्यकारी निदेशक अरमान अली के अनुसार हाल के समय में स्थिति ज्यादा खराब हो गई है। घर से काम करने का चलन बढ़ने और तकनीक के विकास के कारण दिव्यांगता से पीड़ित व्यक्तियों के लिए कई नौकरियां लगभग खत्म हो चुकी हैं।
जैसे डेटा एंट्री की नौकरी अब नहीं रही। पहले ऐसी कई नौकरियां उपलब्ध थीं लेकिन अब ऐसी नौकरियां मेट्रो क्षेत्रों जैसे बेंगलूरु, गुरुग्राम, हैदराबाद और पुणे तक सीमित रह गई हैं। लिहाजा जो लोग इन क्षेत्रों में नहीं रहते हैं, उनके लिए इस तरह की नौकरी पाना कठिन हो गया है। इसका कारण यह है कि दिव्यांग के लिए एक जगह छोड़कर दूसरी जगह जाकर बसना बड़ी समस्या होती है।
अली के मुताबिक इस मानदंड पर निजी क्षेत्र से बेहतर काम सरकारी क्षेत्र करता है क्योंकि दिव्यांगता से पीडि़त व्यक्ति के रोजगार के लिए कानूनी प्रावधान हैं। इस नमूने में वित्त वर्ष 2022 में सरकारी कंपनियों में प्रति 10,000 श्रमबल पर ​213 दिव्यांग कर्मचारी नियुक्त हुए जबकि निजी कंपनियों में ऐसे केवल 19 लोग ही नियुक्त हो पाए। 
विभिन्न क्षेत्रों में प्रतिनिधित्व 
वित्त वर्ष 2022 में सूचना तकनीक से जुड़ी कंपनियों में प्रत्येक 10,000 पर 22 दिव्यांग कर्मचारी थे जबकि वित्त वर्ष 2019 में इनकी संख्या घटकर 17 रह गई। उपभोक्ता कंपनियों में इस अवधि के दौरान दिव्यांगों की हिस्सेदारी तेजी से बढ़कर 38 से 42 हो गई। हालांकि नमूने में निजी बैंकिंग और वित्तीय क्षेत्र में दिव्यांग व्यक्तियों की हिस्सेदारी वित्त वर्ष 19 में 10 थी जो वित्त वर्ष 2022 में घटकर 6 रह गई। यदि इसमें सार्वजनिक क्षेत्र का आंकड़ा शामिल कर लें तो आंकड़ों में थोड़ा सुधार दिखता है।  
भारतीय स्टेट बैंक की गैर-लाभकारी इकाई एसबीआई फाउंडेशन के सहायक उपाध्यक्ष अमन भैया ने कहा कि महामारी से पहले के दौर में दिव्यांगों को काम करने में खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था और वे काफी हद तक दफ्तर के कर्मचारियों पर निर्भर रहते थे। महामारी के कारण पहले से जारी उनकी चुनौतियां और बढ़ गईं। ऐसे में दुर्भाग्यवश उन्हें नौकरी पर रखना घट गया।
गैर-लाभकारी सुरक्षा ट्रस्ट के कार्यक्रम निदेशक निर्मिता नरसिम्हा ने कहा कि दफ्तर में इस्तेमाल किए जाने वाले सॉफ्टवेयर का हरेक व्यक्ति इस्तेमाल नहीं कर सकता है। लिहाजा सर्वश्रेष्ठ प्रयास करने के बावजूद कर्मचारियों को सॉफ्टेवयर इस्तेमाल करने में परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
सरकार ने हाल में एक मानक (आईएस 17802) बनाने का प्रयास किया है। इसके तहत सॉफ्टवेयर को ऐसा बनाना है कि सभी लोगों की पहुंच इस तरह हो कि दिव्यांग व्यक्ति भी नुकसान में नहीं रहें। नरसिम्हा के मुताबिक कार्यस्थल पर सभी कर्मचारियों के लिए एकसमान माहौल बनाने की दिशा में बाधाओं को दूर करने के लिए लंबा रास्ता तय करना है। उन्होंने कहा, ‘यदि आसानी से पहुंच हो जाती है तो नियोक्ता को कम काम करना पड़ेगा।’
मोहम्मद असलम पीवी एडवांस माइक्रोसॉफ्ट एक्सेल और अन्य दक्षताएं हासिल करने के लिए एसबीआई फाउंडेशन में छोटी अवधि का पाठ्यक्रम कर रहे हैं। उन्हें उम्मीद है कि जब पाठ्यक्रम पूरा हो जाएगा तो उन्हें रोजगार मिल जाएगा। 

First Published - October 26, 2022 | 8:14 PM IST

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