इस वैश्विक महामारी से जो खास बदलाव आए हैं, उनमें से एक है कृत्रिम मेधा यानी आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआई) में लोगों का बढ़ता विश्वास। इनमें करियर के विकास के संबंध में सलाह भी शामिल है। मानव संसाधन अनुसंधान और सलाहकार कंपनी-ओरेकल ऐंड वर्कप्लेस इंटेलिजेंस द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण एआईएटवर्क में यह बात सामने आई है। रिपोर्ट में पाया गया है कि वैश्विक स्तर पर 75 प्रतिशत और भारत में 91 प्रतिशत लोग रोबोट की सिफारिशों के आधार पर जीवन में बदलाव करने के इच्छुक हैं।
वैश्विक कार्यबल के 82 प्रतिशत की तुलना में 92 प्रतिशत भारतीयों का मानना है कि रोबोट उनके करियर में मानव से बेहतर सहायता कर सकते हैं। लगभग आधे उत्तरदाताओं ने कहा कि रोबोट निष्पक्ष सिफारिशें देने में बेहतर हैं, जबकि 46 प्रतिशत उत्तरदाताओं का मानना है कि रोबोट मौजूदा कौशल या लक्ष्यों के अनुरूप संसाधनों का वितरण करने में बेहतर हैं।
इसके अलावा 50 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि रोबोट करियर के बारे में प्रश्नों का तेजी से उत्तर देने में बेहतर होते हैं और 44 प्रतिशत लोगों ने कहा कि रोबोट उनके मौजूदा कौशल के अनुरूप नई नौकरियां खोजने का काम बेहतर ढंग से करते हैं।
नैशनल एचआरडी नेटवर्क के राष्ट्रीय अध्यक्ष एसवी नाथन ने कहा ‘आज एआई को हमारे निर्णय लेने में सहायता करने के तरीके के रूप में देखा जाता है। मेरा दृढ़ विश्वास है कि सभी प्रौद्योगिकी को साथ में रखने के बावजूद मानव इंटरफेस की जरूरत काफी अधिक है। एआईएटवर्क जैसे अध्ययन मसलों को बेहतर ढंग से समझने, हमारे विश्वासों को मान्यता देने और नई वास्तविकता के लिए हमारी आंखें खोलने में मदद करते हैं, जो फिलहाल का मामला है। मानवता को किसी प्रौद्योगिकी मित्र की जरूरत है।’ अध्ययन में पाया गया है कि पिछले एक साल के दौरान दुनिया भर के श्रमिकों पर महामारी का नकारात्मक असर पड़ा है। भारत और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के लोग सबसे ज्यादा जूझ रहे हैं, लेकिन साथ ही मदद के वास्ते प्रौद्योगिकी के लिए सबसे अधिक तत्पर हैं।
ओरेकल एशिया पैसिफिक में एचसीएम अनुप्रयोग रणनीति के प्रमुख शकुन खन्ना ने कहा कि कोविड-19 ने हमारे जीवन और काम की दिनचर्या को उलट-पलट कर दिया है, लेकिन इस उथल-पुथल और आघात के बीच एक उम्मीद की किरण भी है और वह है काम पर मानसिक स्वास्थ्य के मसलों की बढ़ती स्वीकृति। हमारे सर्वेक्षण के अनुसार भारत के 68 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने वर्ष 2020 के मुकाबले वर्ष 2021 में मानसिक स्वास्थ्य के साथ अधिक संघर्ष किया है।
सर्वेक्षण के अनुसार 96 प्रतिशत भारतीयों ने कहा कि वैश्विक महामारी के बाद से उनके लिए सफलता की परिभाषा बदल चुकी है और यह सफलता अब मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देते हुए (44 प्रतिशत), लोग कब और कहां काम करते हैं, इस संबंध में लचीलापन रखते हुए (49 प्रतिशत) तथा किसी सार्थक नौकरी के संग (44 प्रतिशत) कार्य-जीवन के बीच संतुलन प्राप्त करने के साथ और अधिक एकरूप हो गई है (52 प्रतिशत)। स्थिर वेतन की तुलना में इन बातों का उनकी सफलता में अधिक योगदान रहता है।
वर्ष 2022 में प्रवेश के समय व्यावसायिक विकास सर्वोच्च प्राथमिकता है, जिसमें कई लोग करियर में और अधिक अवसरों के लिए प्रमुख लाभ छोडऩे के इच्छुक हैं। इनमें छुट्टी की अवधि (52 प्रतिशत), नकद बोनस (51 प्रतिशत) और यहां तक कि अपने वेतन का एक हिस्सा तक छोडऩा (43 प्रतिशत) शामिल है। देश में 96 प्रतिशत कार्यबल अपने नियोक्ता की मदद से संतुष्ट नहीं है। खन्ना ने कहा कि रोजमर्रा की ट्रैकिंग, निदान और कर्मचारियों को उनके मसलों पर चर्चा करने की राह प्रदान करने से कर्मचारियों की भावनात्मक और मानसिक भलाई सुनिश्चित करने के लिए प्रौद्योगिकी का बुद्धिमानी से उपयोग किया जा सकता है। 13 देशों में 14,600 से अधिक कर्मचारियों, प्रबंधकों, मानव संसाधन का नेतृत्व करने वालों और सी-सूट के अधिकारियों के अध्ययन पर आधारित इस सर्वेक्षण में यह भी पाया गया कि दुनिया भर के लोगों ने खुद को निजी और पेशेवर जीवन में फंसा हुआ अनुभव किया है, लेकिन वे अपने भविष्य का नियंत्रण हासिल करने के लिए तैयार हैं।
