Business Standard Manthan 2024: फाइनैंशियल टाइम्स, लंदन के मुख्य आर्थिक टिप्पणीकार मार्टिन वुल्फ ने उन कारकों के बारे में गहनता से प्रकाश डाला जो देशों के लोकतंत्र में उतार-चढ़ाव को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। ‘बिज़नेस स्टैंडर्ड मंथन’ कार्यक्रम के दौरान, बिज़नेस स्टैंडर्ड के संपादक शैलेश डोभाल के साथ बातचीत में वुल्फ ने फरवरी 2023 में जारी अपनी पुस्तक ‘द क्राइसिस ऑफ डेमोक्रेटिक कैपिटलिज्म’ के मुख्य बिंदुओं पर चर्चा की।
इस अवसर पर दर्शकों को संबोधित करते हुए वुल्फ ने कहा ‘यदि लोग अच्छा जीवन स्तर हासिल नहीं कर सकते तो एक शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक व्यवस्था बनाए रखना कठिन हो जाता है।’ वुल्फ ने उस वक्त अपनी पुस्तक लिखनी शुरू की थी जब डॉनल्ड ट्रंप ने 2016 में अमेरिका में राष्ट्रपति की कमान संभाली थी।
अरस्तू का जिक्र करते हुए वुल्फ ने एक लोकतंत्र में मजबूत, संतुष्ट मध्य वर्ग के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने स्पष्ट किया कि अरस्तू के अनुसार, किसी देश में सर्वश्रेष्ठ भागीदारी मध्य वर्ग के जरिये संचालित होती है, जो दीर्घावधि में एक स्थिर लोकतंत्र बनाए रखने के लिए जरूरी है। पुस्तक लिखने के लिए वुल्फ की प्रेरणा एक व्यक्तिगत ऐतिहासिक अनुभव से उत्पन्न हुई, जब नरसंहार के दौरान उनके कई रिश्तेदार मारे गए थे।
उन्होंने 20वीं सदी के शुरू में मुद्रास्फीति के चरम पर पहुंचने समेत आर्थिक विफलता का भी जिक्र किया। इस आर्थिक संकट से यूरोप में नकारात्मक प्रभाव देखा गया। लोकतांत्रिक मंदी की घटना पर चर्चा करते हुए वुल्फ ने उदार लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों का जिक्र किया, जिनमें व्यक्तिगत नागरिक अधिकार, कानून का शासन और चुनाव परिणामों के लिए सम्मान शामिल हैं।
उन्होंने 2021 के राष्ट्रपति चुनाव से पहले और बाद ट्रंप द्वारा राजनीतिक व्यवस्था के खिलाफ उठाए गए कदमों का उदाहरण देते हुए राष्ट्र प्रमुखों द्वारा चुनावों को बाधित करने के प्रयासों की आलोचना की। वुल्फ ने लोकतांत्रिक मानकों के नुकसान और अपनी पार्टी के अंदर ट्रंप की वफादारी पर चिंता जताई, क्योंकि इसके जरिये वे संभावित रूप से सत्ता में अपनी वापसी का मार्ग प्रशस्त कर रहे थे। दुनियाभर में राजनीतिक स्वायत्तता में आई कमी पर वुल्फ ने उदार लोकतंत्र के भविष्य पर सवाल उठाए।
वुल्फ ने लोकतांत्रिक पूंजीवाद की उत्पत्ति का जिक्र करते हुए ऐतिहासिक संदर्भ से इसके उद्भव पर प्रकाश डाला, जहां सत्ता मुख्य रूप से समाज के सबसे धनी वर्गों के पास थी। उन्होंने यह ध्यान में रखते हुए उदार अर्थव्यवस्था और लोकतांत्रिक राजनीति के बीच संबंध पर प्रकाश डाला कि बाजार पूंजीवाद और लोकतंत्र वंशानुगत स्थिति को अस्वीकार करते हैं और नागरिक सशक्तीकरण की वकालत करते हैं।
वुल्फ ने ऊंची आय वाले लोकतंत्रों की राह में आने वाली चुनौतियों पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने कमजोर गतिशीलता की आशंका, हैसियत या दर्जे से संबंधित चिंता और बढ़ती असमानता को ऐसे कारकों के तौर पर गिनाया जो कामकाजी वर्ग में असंतोष को बढ़ावा देते हैं।