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ब्राजील में आयोजित दुनिया का सबसे बड़ा वार्षिक जलवायु शिखर सम्मेलन कई कारणों से चर्चा में रहा। पंद्रह दिनों की गर्मी, मूसलाधार बारिश, शिखर सम्मेलन के स्थल पर बाढ़, एक दंगा, 70,000 प्रदर्शनकारी, जीवाश्म ईंधन के लिए एक ताबूत मार्च के साथ ब्राजील के बेलेम में जलवायु शिखर सम्मेलन में काफी असहज करने वाली बातें नजर आईं। मगर काम की चीजें लगभग गायब रहीं।
मगर कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज (COP 30) के 30वें संस्करण में जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करने के लिए ठोस योजनाओं का जिक्र नहीं हुआ। कई घंटों की माथापच्ची के बाद भी शनिवार को कॉप 30 के एजेंडा दस्तावेज में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से निपटने के लिए प्रतिबद्धता का घोर अभाव दिखा। जलवायु वैज्ञानिकों के अनुसार दुनिया में कुल कार्बन उत्सर्जन में जीवाश्म ईंधन 80 प्रतिशत तक जिम्मेदार हैं और मानव सभ्यता के लिए एक बढ़ता खतरा है। इस सम्मेलन में भारत की उस मांग को भी जगह नहीं मिल पाई कि जलवायु परिवर्तन से जुड़े उपायों के लिए विकसित देशों को सार्वजनिक रूप से 300 अरब डॉलर का इंतजाम करना चाहिए। पिछले साल बाकू में कॉप 29 में यह वादा किया गया था।
प्रति वर्ष 1.3 लाख करोड़ डॉलर रकम जुटाने की योजनाओं पर बहुत कम जानकारी उपलब्ध नहीं थी। इस एजेंडा दस्तावेज में सभी देशों को जलवायु परिवर्तन से निपटने के उपायों के लिए सार्वजनिक और निजी स्रोतों से वित्त पोषण प्रति वर्ष 2035 तक कम से कम 1.3 लाख करोड़ डॉलर प्रति वर्ष तक करने से संबंधित योजनाओं को लेकर भी कोई आश्वासन नहीं था। थिंक टैंक द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट में विशिष्ट फेलो और संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलनों में भारत के प्रमुख वार्ताकार आर आर रश्मि ने कहा, ‘दस्तावेज में ठोस बातों का घोर अभाव दिखा।’ लेकिन रश्मि ने कहा कि इससे भी ज्यादा परेशान करने वाली बात यह थी कि ‘जिम्मेदारी उठाने में सहभागिता या प्रयास साझा करने के न्यायसंगत ढांचे’ की अनदेखी की गई। यह एक मूलभूत सिद्धांत है मगर यहां भी कुछ खास नहीं हुआ।
इसका मतलब यह है कि विकसित देश, जिसका नेतृत्व अमेरिका और यूरोपीय संघ (ईयू) कर रहे हैं, ने अमीर बनने के लिए पृथ्वी के कार्बन बजट का इस्तेमाल कर लिया है जबकि उत्सर्जन के लिए वे सबसे अधिक जिम्मेदार रहे हैं। लेकिन जब धरती पर प्रदूषित हवा साफ करने की बात आती है तो उन्होंने पर्याप्त वित्तीय समर्थन देने से इनकार कर दिया जबकि भारत और चीन जैसे विकासशील देशों से भारी हिस्सा वहन करने के लिए कहा गया। क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क (सीएएन) ने कहा, ‘कॉप 30 में जो सबसे बड़ी बात दिखी वह थी सभी क्षेत्रों में वित्त के प्रावधान के लिए सहमत होने से विकसित देशों का इनकार’।
‘अनुकूलन वित्त, शमन महत्त्वाकांक्षा और जीवाश्म ईंधन से दूर संक्रमण पर प्रतिबद्धताओं को अवरुद्ध करने से समग्र परिणाम सीधे कमजोर हो गए।’ सीएए दुनिया के 130 से अधिक देशों में 1,900 से अधिक नागरिक-समाज संगठनों का एक वैश्विक नेटवर्क है। सीएएन ने कहा कि कॉप 30 को ठोस परिणाम देने पर ध्यान देना चाहिए न कि संवादों, कार्य योजनाओं और रिपोर्ट के चक्कर में पड़ना चाहिए। बाकू के विपरीत बेलेम में यह पहलू नदारद था। बाकू में अनुच्छेद 6 के रूप में संयुक्त राष्ट्र-पर्यवेक्षित वैश्विक कार्बन बाजार की नींव रखी गई थी और विकसित देशों द्वारा 2035 तक जलवायु वित्त को सालाना 300 अरब डॉलर तक तिगुना करने का वादा किया गया था।