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Business Standard EV Dialogues: भारत में EV वाहनों की मांग अपार

विशेषज्ञों का कहना है कि स्वामित्व की कुल कम लागत के साथ-साथ अधिक महत्त्वाकांक्षी वाहन निर्माता वास्तव में इस मांग को पूरा करने के लिए अहम हो सकते हैं

Last Updated- July 20, 2023 | 9:27 PM IST
Business Standard EV Dialogues: There is huge demand for EV vehicles in India
BS

वाहन क्षेत्र के विशेषज्ञों और उद्योग जगत के दिग्गजों ने मंगलवार को बिज़नेस स्टैंडर्ड ईवी डायलॉग्स में कहा कि भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) की भारी मांग की संभावनाओं को नहीं खंगाला गया है। इन विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे में वाहन निर्माताओं द्वारा महत्त्वाकांक्षी दृष्टिकोण के जरिये लागत कम करने के लिए नवाचार पर जोर देकर और वाणिज्यिक वाहनों पर ध्यान केंद्रित कर इस व्यापक मांग की दिशा में काम किया जा सकता है।

इससे अधिग्रहण की लागत के बजाय स्वामित्व की कुल लागत (TCO) के बारे में जागरूकता बढ़ाने में भी मदद मिलेगी, जो वर्तमान में पारंपरिक पेट्रोल-डीजल इंजन पर चलने वाले वाहनों के तुलनात्मक मॉडल के मुकाबले EV के लिए बहुत अधिक हो सकती है। TCO किसी विशेष संपत्ति की खरीद मूल्य के साथ परिसंपत्ति की परिचालन लागत मानी जा सकती है।

ईवी इन्फ्रा कंपनी टेक्सो चार्जजोन के प्रबंध निदेशक कार्तिकेय हरियानी ने कहा कि दोपहिया और तिपहिया वाहनों की मांग साफतौर पर दिखती है लेकिन भारी वाणिज्यिक वाहनों के लिए मांग में मजबूती है। उन्होंने कहा कि कॉरपोरेट ग्राहक जल्द ई-वाहनों को अपनाने के लिए तैयार थे अगर उनकी कीमत ‘डीजल लागत’ या इतनी ही कीमत पर डीजल संस्करण वाले वाहनों से मेल खाता हो। इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने वाली कंपनियों के शुद्ध लाभ को उनके पर्यावरण, सामाजिक और प्रशासनिक (ESG) दायित्वों को पूरा करने से बढ़ावा मिलेगा।

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फोरसी एडवाइजर्स के मुख्य कार्याधिकारी (CEO) और संस्थापक तथा नीति आयोग में ई-मोबिलिटी के पूर्व वरिष्ठ विशेषज्ञ और निदेशक रणधीर सिंह ने कहा कि सभी EV निर्माताओं की ऑर्डर बुक पूरी तरह से भर गई है जबकि विनिर्माण का कार्य अभी पूरा ही नहीं हुआ है। सिंह ने कहा, ‘हमने वाणिज्यिक वाहनों के लिए जयपुर क्षेत्र में एक सर्वेक्षण किया। इस सर्वेक्षण में हमने पाया कि अगर TCO को कम किया जाता है तब बेड़े के परिचालक को इस बात की परवाह नहीं होती है कि यह किस प्रकार का ट्रक है या इसका मालिक कौन है। अगर TCO कारगर होता है तब परिचालक 4-5 साल के लिए वाहन खरीदेंगे और इसे फिर से बेचने पर ध्यान देंगे।’

बैटरी सामग्री कंपनी एप्सिलॉन एडवांस्ड मैटेरियल्स के प्रबंध निदेशक विक्रम हांडा ने चेतावनी दी है कि कम TCO हासिल करना इतना आसान नहीं हो सकता है। उन्होंने कहा, ‘लीथियम-आयन बैटरी पैक की कीमतों के लिए आंकड़ा 100 डॉलर प्रति किलोवॉट है जिस बिंदु पर EV लेना अन्य इंजन वाहनों की तुलना में अधिक सार्थक हो सकता है। लेकिन ऐसा होने के लिए, सभी आवश्यक महत्त्वपूर्ण खनिजों की कीमतें सस्ती होनी चाहिए।’

चुनौतियां अपार

हालांकि, इस क्षेत्र को फंडिंग, असमान विकास और वाहन निर्माताओं तथा अन्य उद्योग के खिलाड़ियों के बीच मांग से जुड़े अंतर की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। ब्लूम वेंचर्स के निवेश अधिकारी अर्पित अग्रवाल ने कहा कि यह क्षेत्र कई समस्याओं का सामना कर रहा है जिन्हें जल्दी हल करने की आवश्यकता है।

उन्होंने कहा, ‘उन्नत रसायन विज्ञान सेल (ACC) प्रौद्योगिकी के लिए बहुत निवेश की आवश्यकता होती है, जिसके बदले भारत से बहुत अधिक मांग किए जाने की आवश्यकता होगी। हम उम्मीद कर रहे हैं कि प्रदर्शन से जुड़ी प्रोत्साहन (PLI) योजना अगले कुछ वर्षों में बहुत अधिक गीगाफैक्टरियों को ऑनलाइन लाने में मदद करेगी।’

उन्होंने कहा कि जब विनिर्माण की बात आती है तब यह तय करने की भी चुनौती है कि किन श्रेणी को प्राथमिकता दी जाए, चाहे वह मोटर, बैटरी प्रबंधन प्रणाली या इलेक्ट्रॉनिक घटक हों।

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हांडा ने यह तर्क दिया कि वाहन के मूल उपकरण निर्माता (OEM) उत्तरी अमेरिका और यूरोप में इन पुर्जों को खरीदने के लिए तैयार हैं लेकिन भारतीय वाहन निर्माता अब भी व्यापक तरीके से नहीं सोच रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘हमारे लिए मुख्य चुनौती यह है कि ग्राहक हमारी सामग्री लेने के लिए तैयार नहीं है। इसके अलावा ग्राहक भारत में नहीं है। हम भारत में विदेशी ग्राहकों पर केंद्रित संयंत्र बनाने की कोशिश कर रहे हैं और इसे पूरी तरह से निर्यात केंद्रित बनाना चाहते हैं।’

हांडा ने कहा कि पश्चिमी देशों के वाहन OEM अब भविष्य के 5 साल के बाजार को देखते हुए EV प्रौद्योगिकी के निर्माण में बड़ा निवेश कर रहे हैं जबकि दूसरी तरफ उनके भारतीय समकक्ष मांग के साथ-साथ PLI योजनाओं की घोषणा का इंतजार कर रहे हैं। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि कंपनी की योजना अमेरिका में 65 करोड़ डॉलर के सिंथेटिक ग्रेफाइट एनोड विनिर्माण संयंत्र स्थापित करने की है ताकि वहां के पारिस्थितिकी तंत्र का लाभ उठाने के लिए तैयार रहा जाए।

सिंथेटिक ग्रेफाइट लीथियम-आयन बैटरी ऐप्लिकेशन में अहम है और यह संयंत्र 50,000 टन सामग्री का उत्पादन करेगा जो 50 गीगावॉट घंटे (जीडब्ल्यूएच) सेल के लिए पर्याप्त हो सकता है। उन्होंने कहा, ‘आज अमेरिका 500 जीडब्ल्यूएच सेल तैयार कर रहा है ऐसे में हम अमेरिका की जरूरत का दसवां हिस्सा हैं।’ हालांकि, चर्चा में मौजूद अन्य पैनल विशेषज्ञों ने कहा कि सरकार को प्रत्यक्ष नीतिगत कार्रवाई के माध्यम से आंतरिक मांग पैदा करने की आवश्यकता है।

आगे और सुधार की दरकार

सरकार को वाहन निर्माताओं को तेजी से EV उत्पादन के लिए प्रेरित करने के लिए अनिवार्य तौर पर उद्योग से जुड़े दायित्वों का लक्ष्य लेकर चलना चाहिए। हरियानी ने कहा, ‘जब हम पूर्ववर्ती सौर और पवन ऊर्जा में तेजी के बारे में बात करते हैं, तो उनका मुख्य चालक अक्षय ऊर्जा की खरीद के उत्तरदायित्व से जुड़ा था। इस उद्योग के लिए अपने वाहनों के बेड़े के 10 प्रतिशत हिस्से को इलेक्ट्रिक वाहनों में बदलने के लिए समान अनिवार्य उत्तरदायित्व तय करने की आवश्यकता है।’
उन्होंने जोर देकर कहा कि इलेक्ट्रिक वाहनों को प्रोत्साहित करने की नीतियों को लाने से पहले अगर चार्जिंग से जुड़े अधिक प्रभावी बुनियादी ढांचे का इंतजाम किया गया होता तब इस क्षेत्र की तस्वीर मौजूदा दौर से अलग होती।

हांडा ने लंबी अवधि की परियोजनाओं के लिए पूंजी हासिल करने की चुनौतियों और इसके दायरे को बढ़ाने की चुनौतियों को भी रेखांकित किया। उन्होंने कहा, ‘आज भारतीय सेल कंपनियां 1-10 जीडब्ल्यूएच की बात कर रही हैं। वर्ष 2030 तक, भारत में ईवी और ऊर्जा भंडारण प्रणालियों (ईएसएस) के बीच लगभग 220 जीडब्ल्यूएच होना चाहिए। आगे बढ़ने के लिए काफी गुंजाइश है और कई कंपनियों को आने की जरूरत है।’

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सिंह ने कहा कि भारत को घरेलू स्तर पर तैयार की जा रही प्रौद्योगिकी को विकसित करने के लिए और अधिक परीक्षण प्रयोगशालाओं की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि इससे एसीसी से जुड़े सरकार के राष्ट्रीय कार्यक्रम के तहत सब्सिडी के लिए बोली लगाने की कोशिश कर रही कंपनियों पर दबाव पड़ता है। इसके तहत कंपनियों को दो साल में न्यूनतम 25 प्रतिशत स्थानीय मूल्य-संवर्धन और पांच साल के बाद न्यूनतम 60 प्रतिशत के साथ एसीसी विनिर्माण सुविधाएं स्थापित करने की प्रतिबद्धता दिखानी होती है।

उन्होंने कहा कि सरकार आसान तरीके से तुरंत मंजूरी देकर तथा नियामकीय निश्चितता के संदर्भ में राजकोषीय और गैर-राजकोषीय उपायों के जरिये डाउनस्ट्रीम कंपनियों के सामने दिख रही चुनौतियों को दूर करने में बड़ी भूमिका निभा सकती है। उन्होंने यह भी बताया कि फास्टर एडॉप्शन ऐंड मैन्युफैक्चरिंग ऑफ इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (फेम) योजना ने भारत के लिए अच्छा काम किया है और यह न केवल ईवी विनिर्माण को बढ़ावा देने के प्रोत्साहन के रूप में बल्कि ईवी के लिए बाजार में मांग पैदा करने के लिए एक उपकरण के रूप में भी बेहतर काम कर रहा है।

First Published - July 20, 2023 | 9:27 PM IST

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