आज लोग एक क्लिक में सबकुछ आसानी से पा सकते हैं। रोजमर्रा के सामान, दवाइयां, खाना सबकुछ अब अपने मोबाइल से एक बटन दबाकर अगले 30 मिनट में आप अपने घर आसानी से मंगा सकते हैं। धीरे-धीरे अब लोग किताबें भी घर बैठे ही मंगा रहे हैं। कोरोना काल में इन चीजों का चलन काफी तेजी से बढ़ा है। बड़े-बुजुर्ग अपने स्वास्थ्य के प्रति सचेत हुए हैं और उनके बच्चे भी उन्हें बाहर भेजने से बचते हैं, इसलिए उनकी जरूरत का कोई भी सामान सीधे घर मंगवा लेते हैं। किताबों की ऑनलाइन बिक्री के कई फायदे हैं तो कई सारे नुकसान भी सामने आते हैं।
पटना पुस्तक मेला के आयोजक अमित झा बताते हैं कि ऑनलाइन किताबों की खरीद-बिक्री का चलन पिछले पांच-सात वर्षों में तेजी से बढ़ा है। इसने देशभर के किताब दुकानदारों को काफी प्रभावित किया है। हालांकि बड़े शहरों की दुकानों की चकाचौंध लोगों को आकर्षित करती है, लेकिन छोटे शहरों और कस्बाई इलाकों के दुकानदारों की आजीविका पर इसने सीधा असर डाला है। ऑनलाइन खरीद में ग्राहक को रिफंड का विकल्प मिलता है, लेकिन दुकानों में इस तरह के फायदे से ग्राहक वंचित हैं। इसका सीधा कारण है कि ऑनलाइन स्टोर पर प्रकाशक अपनी किताबों की सीधी बिक्री करता है और वह किताब वापस होने का 5-10 फीसदी मार्जिन लेकर चलता है, लेकिन दुकानों में यह इसलिए नहीं होता है क्योंकि ग्राहक अगर किताबें ले जाता है तो उसमें मुड़ने-सिकुड़ने का भय बना रहता है और फिर उसकी खरीद कोई अन्य ग्राहक नहीं करेगा और प्रकाशक भी उसे वापस नहीं लेगा।
अमित बताते हैं, ‘दुकानदारों को नयापन लाने की कोशिश करनी चाहिए, ताकि पाठक उनतक अपनी पहुंच बना सके। सभी किताबें अगर दुकानों में मिले तो भी पाठक वहां आ सकता है, लेकिन यह उतना सरल नहीं है जितना कहने में लगता है।’ तो क्या धीरे-धीरे पाठक ऑनलाइन ही किताबें खरीदने लगेंगे, पुस्तक मेला आदि का क्रेज कम हो जाएगा। इस सवाल पर अमित कहते हैं, ‘नहीं, एकदम से ऐसा नहीं होने जा रहा है। किताब दुकानों में घूम-घूम कर किताबों के खरीदने का चलन कभी खत्म नहीं हो सकता है, भले इसमें थोड़ी कमी आ सकती है।’
अमित कहते हैं, ‘किताबों की ऑनलाइन बिक्री होने से प्रकाशकों को असर नहीं पड़ता है, उनकी किताबें उतनी ही बिकती हैं जितनी दुकानों में बिकती हैं। हां यहां उन्हें मुनाफा ज्यादा मिलता होगा क्योंकि किताबों की बिक्री का एक हिस्सा उन्हें दुकानदारों को भी चुकाना पड़ता, लेकिन ऑनलाइन में ऐसा नहीं होता है। हां, लेकिन दुकानदारों के अर्थ पर इसने काफी चोट पहुंचाया है। किताबों की ऑनलाइन बिक्री से दुकानों से होने वाली खरीद काफी कम हो गई है। नए जमाने के पाठक यानी युवा वर्ग दुकानों में आकर खरीदना नहीं चाहता है। वह मोबाइल से सीधे ऑर्डर करता है और किताब एक-दो दिन में उसके घर पहुंच जाती है। इससे दुकानदारों की आय पर प्रतिकूल असर पड़ा है। पहले जहां हर दिन अगर किसी दुकानदार को किताबों की बिक्री से 1,000 रुपये की आय होती थी, तो वह अब घटकर 200-300 रुपये हो गया है।‘
हालांकि चर्चित साहित्यकार और कथाकार पद्मश्री उषा किरण खां का ऐसा मानना नहीं है। वह कहती हैं कि नए जमाने के पाठकों को अगर यही रास आ रहा है तो ठीक है। खां कहती हैं, ‘युवा वर्ग अगर ऑनलाइन किताबें मंगाकर पढ़ता है तो यह अच्छी बात है। आज लोग पढ़ना कम कर दिए हैं। अगर किसी भी कारण कोई पढ़ रहा है तो इसे प्रोत्साहित करना चाहिए।‘
कोविड के कारण उम्रदराज लोगों का घर से बाहर निकलना कम हो गया है। जिस कारण वे किताबों की दुकान नहीं जा पा रहे हैं और मोबाइल, कंप्यूटर आदि पर डिजिटल कॉपी पढ़ने में उन्हें दिक्कत आती है और उन्हें अक्षर पढ़ने के लिए आंखों पर काफी जोड़ देना पड़ता है, ऐसे में ऑनलाइन किताब मंगवाना एक अच्छा विकल्प हो सकता है। खां बताती हैं, ‘किताब एक स्थायी भाव होता है। आज सभी लोगों को अपने पास किताबें रखनी चाहिए और हर दिन एक किताब पढ़नी चाहिए। इसकी वकालत मैं करूंगी।’ 2015 में शुरू हुए ई-लर्निंग एप नॉटनल के संस्थापक नीलाभ श्रीवास्तव कहते हैं कि हमलोगों ने कई नए लेखकों को अपनी लेखनशैली के प्रदर्शन का उचित मंच दिया है। नए जमाने के लेखक हमसे जुड़कर बढ़िया कर रहे हैं।
हिंदी साहित्य के साथ-साथ अन्य भाषाई लेखकों की किताबें लोग ऑनलाइन पढ़ सकते हैं। लेखक और शिक्षाविद् ध्रुव कुमार बताते हैं कि किताबों की ऑनलाइन बिक्री समय की जरूरत है। अभी भी देश के कई ऐसे इलाके हैं जहां किताबों की बडी दुकानें नहीं हैं और वहां के पाठकों को पसंद या जरूरत की किताबों को खरीदने के लिए लंबी दूरी तय करनी होती है। ऑनलाइन किताबों की डिलिवरी होने से उन्हें राहत है। अब तो कस्बाई इलाकों तक यह ऐसी कंपनियां हैं जो पाठकों के घर तक किताबें पहुंचा देती हैं। हालांकि ऐसा भी नहीं है कि ऑनलाइन किताबों की बिक्री शुरू हो जाने के बाद दुकानों पर बिक्री एकदम खत्म हो गई है या फिर कम हो गई है।
ध्रुव कहते हैं, ‘देश की अधिसंख्य आबादी अब भी किताबों की दुकानों पर जाकर किताब खरीदना पसंद करती है। 20-30 फीसदी लोग ही किताबों की ऑनलाइन खरीद करते हैं। ऑनलाइन खरीद का एक बढ़िया कारण यह है कि किताबों पर अच्छी छूट मिल जाती है, जो कई बार दुकानों पर नहीं मिल पाती है। ऑनलाइन किताबों की बिक्री होने से प्रकाशकों और लेखकों का प्रसारक्षेत्र भी बढ़ा है। बदलते समय के साथ लोगों की रुचि में भी बदलाव आया है और यह कुछ हद तक सही भी है।’ ध्रुव कहते हैं कि किताब कहीं से भी मंगवाएं लेकिन आज की युवापीढ़ी इसे पढ़े जरूर।
देश के गुमनाम स्वतंत्रता सेनानियों पर शोध कर रहे लेखक सुधीर बताते हैं कि ऑनलाइन और ऑफलाइन किताब मंगाने के फायदे-नुकसान दोनों हैं। कई ऐसे स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में आपको इंटरनेट पर जानकारी नहीं मिलेगी इसके लिए आपको अभिलेखागार का ही रुख करना पडेगा, इसलिए जिनकी जानकारी इंटरनेट पर सुलभ नहीं है उनके बारे में कोई किताब भी ऑनलाइन किताब बेचने वाली कंपनियों के पोर्टल पर नहीं मिलती हैं।
सुधीर कहते हैं कि उनकी तो कई किताब दुकानदारों से हर दिन मुलाकात होती है। वह बताते हैं कि पढ़ने वाला तबका आज भी दुकानों का ही रुख करता है। हां थोड़ी कमी आई है, लेकिन एकदम से धंधा मंदा नहीं हो गया है। सुधीर कहते हैं, ‘ऑनलाइन किताब ऑर्डर करने पर आप सिर्फ उसे ही खोजते हैं जो आपकी पसंद है और जिसे आप पढ़ना चाहते हैं और वो मिल जाती है तो आप ऑर्डर कर देते हैं। लेकिन, दुकानों में जाकर ऐसा नहीं होता है। दुकान में जब आप जाते हैं तो पसंद की किताबों के अलावा वहां मिल रहीं और किताबों पर भी आपकी नजर जाती है तो आप आकर्षित हो जाते हैं।’