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तुर्किये पर भारत की Diplomatic Surgical Strike, Turkey नहीं जाएगा संसदीय प्रतिनिधिमंडल

'एर्दोआन स्वयं को खलीफा और सुल्तान देखना चाहते हैं, जिसमें उन्होंने दुनिया भर के मुसलमानों का समर्थन लेने की कोशिश की है।'

Last Updated- May 18, 2025 | 11:27 PM IST
Turkey

भारत ने मंगलवार को कहा था कि उसने 22 अप्रैल को पहलगाम हमले के बाद ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान को तुर्किये के राजनयिक समर्थन और रक्षा सहायता मुहैया कराने का संज्ञान लिया है। इसलिए इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि तुर्किये उन 32 देशों में शामिल नहीं है, जहां पहलगाम हमले और उसके बाद चलाए गए ऑपरेशन सिंदूर के बारे में अपना पक्ष रखने और पाकिस्तान की करतूतों को उजागर करने के लिए राजनयिक पहल के तहत सांसदों, पूर्व केंद्रीय मंत्रियों और राजनयिकों के सात प्रतिनिधिमंडल जाएंगे। ये दौरे अगले सप्ताह शुरू होंगे।

कुछ लोग इस बात को लेकर आश्चर्य जता रहे हैं कि 2024 में 330,000 भारतीय पर्यटकों के तुर्किये जाने समेत हाल के वर्षों में मजबूत व्यापारिक एवं वाणिज्यिक संबंधों के बावजूद पिछले कुछ हफ्तों में दोनों देशों के रिश्तों में तेजी से गिरावट क्यों आई है। लेकिन भारत और तुर्किये के संबंधों पर नजर रखने वाले लोग कहते हैं कि यह कोई नई बात नहीं है। दो दशक पहले खासकर जब से रेचेप तैयप एर्दोआन ने तुर्किये की सत्ता संभाली थी, उसके बाद से ही दोनों देशों के संबंधों में रूखापन आने लगा था। एर्दोआन 2003 से 2014 तक प्रधानमंत्री रहे और उसके बाद से वह राष्ट्रपति के रूप में सत्ता के शीर्ष पर बने हुए हैं।

वह 2003 के बाद से कम से कम 10 बार पाकिस्तान का दौरा कर चुके हैं। पड़ोसी देश में उनकी सबसे हालिया यात्रा फरवरी में हुई थी। इस दौरान वह जी20 शिखर सम्मेलन में शामिल हुए और 2008, 2017 और सितंबर 2023 में भारत का दौरा किया।

अंकारा में 2018 से 2020 तक भारत के राजदूत के रूप में काम करने वाले पूर्व राजनयिक संजय भट्टाचार्य के अनुसार तुर्किये और पाकिस्तान के बीच कई दशकों से घनिष्ठ संबंध हैं, लेकिन एर्दोआन के कार्यकाल के दौरान इनमें और गाढ़ापन आया है। भट्टाचार्य के अनुसार, ‘एर्दोआन स्वयं को खलीफा और सुल्तान देखना चाहते हैं, जिसमें उन्होंने दुनिया भर के मुसलमानों का समर्थन लेने की कोशिश की है।’ भट्टाचार्य कहते हैं, ‘यह देखते हुए कि इस्लाम के जन्मस्थल अरब क्षेत्र में उनकी महत्त्वाकांक्षा को अधिक समर्थन नहीं मिला है, उन्होंने मध्य, दक्षिण, दक्षिण-पूर्व एशिया तथा अफ्रीका में समर्थन जुटाने के प्रयास किए हैं। इसमें पाकिस्तान उसका बड़ा सहयोगी रहा है।’

सैन्य संचालन के महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल राजीव घई, वायु संचालन के महानिदेशक एयर मार्शल एके भारती और नौसेना संचालन के महानिदेशक वाइस एडमिरल एएन प्रमोद ने 12 मई को आयोजित संवाददाता सम्मेलन में तुर्की निर्मित बाइकर वाईआईएचए-III कामिकेज़ ड्रोन के मलबे का दृश्य प्रमाण प्रस्तुत किया था। इसे पाकिस्तान ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत के खिलाफ इस्तेमाल किया था, जिसे सेना ने निष्क्रिय कर ढेर कर दिया था।

मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, पहलगाम आतंकी हमले के बाद तुर्की का एक युद्धपोत और एक सी-130 हरक्यूलिस सैन्य परिवहन विमान भी पाकिस्तान आया था। संभवत: इनमें हथियार थे। स्वीडन स्थित थिंक टैंक स्टॉकहोम इंटरनैशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के विश्लेषण से पता चलता है कि 2015 से 19 और 2020 से 24 के बीच तुर्किये के वैश्विक हथियार निर्यात में 103 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। लंदन स्थित इंटरनैशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्ट्रैटजिक स्टडीज के अनुसार, 2020 तक तुर्किये, चीन के बाद पाकिस्तान का दूसरा सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्ता रहा। भट्टाचार्य के अनुसार, पाकिस्तान और तुर्किये के संबंधों में प्रगाढ़ता का यह एक और पहलू है।

भट्टाचार्य कहते हैं, ‘तीसरा कारक उसकी अर्थव्यवस्था है, जो अतीत में काफी मजबूत थी, लेकिन हाल के समय में लड़खड़ा रही है। इस सबके बीच उसकी सैन्य औद्योगिक स्थिति का तत्त्व भी है, जिसने वास्तव में अच्छा प्रदर्शन किया है और पाकिस्तान उसके हथियारों को मजबूत निर्यात बाजार उपलब्ध कराता है। कुल मिलाकर तुर्किये की महत्त्वाकांक्षाओं की उड़ान में पाकिस्तान केवल एक प्यादा भर है।

दशकों से तुर्किये और भारत के संबंध भी प्रगाढ़ रहे हैं। जवाहरलाल नेहरू, राजीव गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक ने उस देश की राजकीय यात्राएं की हैं।

तुर्किये में सीएस  झा और कंवल सिब्बल जैसे राजनयिक रहे, जो बाद में विदेश सचिव तक बने। इसके अलावा केआर नारायणन तो देश के राष्ट्रपति भी हुए। भारतीय विदेश सेवा अधिकारी नारायणन की बेटी चित्रा नारायणन ने भी वहां सेवाएं दीं। दिलचस्प यह है कि विदेश मंत्रालय की वेबसाइट पर भारत-तुर्किये के बीच विदेश संबंधों पर मौजूद संक्षिप्त जानकारी में हालिया तनाव झलकता है।

इस वेबसाइट पर दिसंबर 2014 तक की संक्षिप्त जानकारी में दोनों देशों के बीच गहरे ऐतिहासिक संबंधों का विवरण दिया गया है। इसमें 1481-82 के दौरान ऑटोमन सुल्तानों और उपमहाद्वीप के मुस्लिम शासकों के बीच राजनयिक मिशनों के पहले आदान-प्रदान का जिक्र है। इसमें कहा गया है कि भारत और तुर्किये के बीच गहरे सांस्कृतिक संबंध रहे हैं। तुर्किये की भाषा, संस्कृति, सभ्यता, कला एवं वास्तुकला, वेशभूषा और व्यंजन आदि का भारत पर काफी प्रभाव था। संक्षिप्त जानकारी में मौलाना जलालुद्दीन रूमी के सूफी दर्शन की भारतीय उपमहाद्वीप में प्रतिध्वनि का उल्लेख किया गया है, जिसकी अपनी सूफीवाद और भक्ति आंदोलन की परंपराएं थीं। यही नहीं, हिंदुस्तानी और टर्किश भाषाओं में 9,000 से अधिक शब्द समान हैं।

विदेश जाने वाले सांसदों के प्रतिनिधिमंडल में शामिल एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने भी कहा कि तुर्किये को पाकिस्तान का समर्थन करने के अपने रुख पर पुनर्विचार करना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘हमें तुर्किये को बताना चाहिए कि उसके नैशनल बैंक और इस बैंक में शुरुआती जमाकर्ता भारत के ही लोग थे। हमें तुर्किये को यह भी याद दिलाना चाहिए कि भारत में 20 करोड़ से अधिक मुसलमान रहते हैं। पाकिस्तान की तुलना में यह संख्या बहुत अधिक हैं।’

बयान में कहा गया है कि भारत-तुर्किये के बीच हालिया घनिष्ठ संपर्क 1912 में बाल्कन युद्ध के दौरान दिखा जब प्रसिद्ध भारतीय स्वतंत्रता सेनानी डॉ. एमए अंसारी के नेतृत्व में वहां चिकित्सा मिशन भेजा गया। भारत ने 1920 के दशक में तुर्किये के स्वतंत्रता संग्राम और उसके गणराज्य बनने का भी खुला समर्थन किया। संक्षिप्त जानकारी में खिलाफत आंदोलन का भी उल्लेख है, जिसमें कहा गया है कि महात्मा गांधी ने खुद प्रथम विश्व युद्ध के अंत में तुर्किये पर किए गए अन्याय के खिलाफ अपना रुख स्पष्ट रूप से जाहिर किया था।

हालांकि, संबंध प्रगाढ़ करने के भारत के कदमों के प्रति उसका रवैया उदासीन ही रहा। हिंद महासागर क्षेत्र में रक्षा सहयोग बढ़ाने के उसके प्रयासों को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सका, जिसमें उसका 2017 में सोमालिया में अपना सबसे बड़ा विदेशी बेस स्थापित करना, 2024 में मालदीव को बाइकर टीबी2 ड्रोन बेचना और 2000 से पाकिस्तानी नौसेना के साथ नियमित संयुक्त नौसैनिक अभ्यास करना शामिल है।

इसी साल फरवरी में एर्दोआन ने कहा था कि ‘उनका देश पहले की तरह ही अपने कश्मीरी भाइयों के साथ एकजुटता से खड़ा है।’ उस समय भारत ने उनकी टिप्पणियों को ‘अस्वीकार्य’ करार दिया और नई दिल्ली में तुर्किये के राजदूत को तलब कर विरोध दर्ज कराया। तुर्किये ने पाकिस्तान की नौसेना को आधुनिक बनाने में भी मदद की है।

दूसरी ओर, भारत ग्रीस के करीब गया है। इसका पता सांसदों के प्रतिनिधिमंडल के एथेंस को भी पड़ाव के तौर पर चुनने से पता चलता है। ग्रीस समर्थित साइप्रस गणराज्य का भी भारत समर्थन करता है, जबकि प्रस्तावित भारत-पश्चिम एशिया-यूरोप इकनॉमिक कॉरिडोर तुर्किये को बायपास कर गुजरता है, स्वयं को एशिया और यूरोप के बीच का पुल मानता है। एर्दोआन ने इस कॉरिडोर की आलोचना की है।

दिसंबर 2024 के विदेश मंत्रालय के अनुमानों के अनुसार, तुर्किये में अनुमानित 3,000 भारतीय नागरिक रहते हैं, जिनमें से 1,850 इस्तांबुल में हैं और मुख्य रूप से वाणिज्यिक संगठनों, बैंकों, कंप्यूटर फर्मों और विश्वविद्यालयों में काम कर रहे हैं। यही नहीं, वहां लगभग 400 भारतीय छात्र भी पढ़ रहे हैं। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान का साथ देने के कारण भारत में व्यापारी जहां वहां के मार्बल से लेकर सेब तक के आयात का बहिष्कार कर रहे हैं, वहीं भारतीय पर्यटकों और फिल्म निर्माताओं से भी वहां नहीं जाने की अपील की जा रही है। यही नहीं, वहां की सेलेबी ग्राउंड हैंडलिंग इंडिया प्राइवेट लिमिटेड का सुरक्षा लाइसेंस भारत सरकार ने समाप्त कर दिया है। 

First Published - May 18, 2025 | 11:26 PM IST

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