राजनीति

‘एक देश, एक चुनाव’ का रास्ता साफ? सरकार ने लोकसभा में पेश किया संविधान संशोधन विधेयक

विपक्ष का विरोध, 269 वोटों से विधेयक पेश; जेपीसी के पास भेजने को तैयार सरकार

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अर्चिस मोहन   
Last Updated- December 17, 2024 | 11:02 PM IST

विपक्षी सांसदों के भारी विरोध के बीच सरकार ने मंगलवार को एक देश, एक चुनाव से संबंधित संविधान संशोधन विधेयक समेत दो विधेयक लोक सभा में पेश किए। इससे देश में लोक सभा और विधान सभा चुनाव एक साथ कराने का रास्ता साफ होगा। चर्चा के दौरान विपक्षी सदस्यों ने इसे तानाशाही वाला विधेयक करार दिया जबकि कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने दावा किया कि नया कानून राज्यों की शक्तियों का हरण नहीं करेगा। उन्होंने संविधान के मूल सिद्धांतों से छेड़छाड़ के आरोपों को भी सिरे से खारिज कर दिया।

लोक सभा में सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच लगभग 90 मिनट की चर्चा और मत विभाजन के बाद केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने संविधान संशोधन (129वां) विधेयक पेश किया। कानून मंत्री ने केंद्र शासित प्रदेश संशोधन विधेयक भी पटल पर रखा, जिसमें पुदुच्चेरी, दिल्ली, जम्मू-कश्मीर में भी लोक सभा के साथ चुनाव कराने का प्रस्ताव है।

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और कानून मंत्री मेघवाल ने सदन को बताया कि सरकार व्यापक विचार-विमर्श के लिए विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के पास भेजने के लिए तैयार है। यदि यह बिल पास हो जाता है, तो वर्ष 2034 में लोक सभा और विधान सभा चुनाव एक साथ कराए जाएंगे। संविधान संशोधन विधेयक में अनुच्छेद 82 (ए) को शामिल करने और अनुच्छेद 83, 172 और 327 में संशोधन का प्रस्ताव किया है।

विधेयक के विरोध में कई विपक्षी सांसदों ने नोटिस दिए। विधेयक पेश किए जाने के पक्ष में 269 वोट, जबकि विरोध में 198 वोट पड़े। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने विधेयक पेश किए जाने का विरोध करते हुए आरोप लगाया कि यह संविधान के मूल ढांचे पर हमला है तथा देश को ‘तानाशाही’ की तरफ ले जाने वाला कदम है।

कांग्रेस सांसद शशि थरूर जैसे नेताओं ने कहा कि मत विभाजन से साफ पता चलता है कि सरकार के पास विधेयक को पास कराने के लिए जरूरी दो-तिहाई बहुमत नहीं है। विपक्षी सांसदों ने कहा कि संविधान संशोधन विधेयक पर 467 सांसदों ने मत विभाजन में हिस्सा लिया। इस प्रकार दो तिहाई का आंकड़ा 312 सांसदों का होता, लेकिन सरकार के पास 43 सांसद कम रह गए।

हालांकि लोक सभा के पूर्व महा सचिव पीडीटी आचार्य जैसे संविधान विशेषज्ञ कहते हैं कि दो तिहाई सांसदों की उपस्थिति और मतदान की आवश्यकता केवल ऐसे बिलों को पास कराने के समय पड़ती है। संसदीय नियमों में साफ है कि संविधान संशोधन विधेयक समेत किसी भी विधेयक को सामान्य तौर पर सदन में पेश करने या इसे संयुक्त संसदीय समिति को भेजने के मौके पर बहुमत के आंकड़े की जरूरत पड़ती है।

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की प्रमुख सहयोगी तेलुगू देशम पार्टी (तेदेपा) और शिवसेना ने विधेयक का समर्थन किया है। विधेयकों को पेश किए जाने से पहले हस्तक्षेप करते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सदन को बताया कि प्रधानमंत्री मोदी प्रस्तावित कानूनों को विस्तृत विचार-विमर्श के लिए संयुक्त संसदीय समिति को भेजने के पक्ष में हैं। गृह मंत्री ने कहा कि जेपीसी इन बिलों पर विस्तृत चर्चा करेगी और उसके बाद इसकी रिपोर्ट केंद्रीय कैबिनेट द्वारा स्वीकार की जाएगी। उसके बाद सदन में भी इन पर बहस होगी।

First Published : December 17, 2024 | 11:02 PM IST