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मंदी पर मजदूरों का हल्ला बोल

Last Updated- December 09, 2022 | 10:32 PM IST

मौजूदा वित्तीय संकट के बीच नकदी जुटाने के तमाम प्रयास कर थक चुकी छोटी और मध्यम दर्जे की इकाइयों के लिए लघु वित्तीय समूह सहारा बन कर उभर रहे हैं।


उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर में कुछ मजदूरों ने आपस में मिलकर एक सहकारी वित्तीय समूह तैयार किया है जो ऐसे उद्योगों को कर्ज मुहैया करा रहा है। ऐसा ही एक उदाहरण रमेश का है जो एक छोटी सी होजरी इकाई चलाते हैं।

पिछले 6 महीनों से फंड जुटाने के लिए वह एक बैंक से दूसरे बैंक का चक्कर काट रहे थे। लेकिन किसी भी बैंक से उन्हें कर्ज नहीं मिला। जब उन्हें निर्माण भारती नाम के माइक्रोफाइनैंसिंग समूह के बारे में पता चला, तो उन्होंने वहां ऋण के लिए आवेदन किया।

उन्हें बगैर किसी परेशानी के ऋण मिल भी गया। छोटे और मझोले उद्योगों को ऋण देने के लिए इस संस्था की स्थापना दो महीने पहले ही की गई थी। दो महीने में ही भारती निर्माण समूह ने लगभग 170 छोटे उद्यमियों को ऋण मुहैया कराया है।

जब बैंक रमेश जैसे छोटे उद्यमियों को ऋण देने से कतरा रहे हैं, उस समय निर्माण भारती इन उद्यमियों को ऋण मुहैया कराकर सफलता की नई कहानियां लिख रही है। इसकी शुरुआत पिछले साल सितंबर में हुई थी।

कुछ कर्मचारियों ने मिलकर थोड़े-थोड़े रुपये जमा कर समूह के जरूरतमंद कर्मचारियों को ऋण मुहैया कराने के लिए इसे शुरू किया था।

निर्माण भारती से लगभग 5,000 रुपये का ऋण लेने वाली अर्चना ने बताया, ‘इस समूह का कोई अधिकारी या प्रबंधक नहीं है। समूह के सभी लोग मिलकर इसका संचालन करते हैं।’

समूह के लोगों को इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं है कि वह जाने-अनजाने नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद युसुफ के  खोजे गए रास्ते ‘माइक्रोफाइनैंस’ पर चल रहे हैं।

इस समूह के लोग इस बात से काफी खुश हैं कि अपनी इस कोशिश की वजह से वह बाजार में नकदी की कमी से अपने कारोबार को बचा रहे हैं।

रमेश ने बताया, ‘मैंने सभी बैंकों से इस बारे में बात की लेकिन सभी ने मुझे निराश किया।’ अर्चना ने बताया, ‘समूह के  कामकाज में हम सभी की बात को अहमियत दी जाती है। इससे समूह के संचालन में पारदर्शिता और भरोसा भी बना रहता है।’

समूह किस आधार पर किसी को ऋण देता है या फिर उससे ऋण वापस कैसे लिया जाता है? इस बारे में अर्चना ने कहा कि अगर कोई ऋण वापस नहीं कर पाता है तो उस नुकसान को सभी सदस्यों में बराबर बांट लिया जाता है।

उन्होंने बताया, ‘इससे ऋण चुकाने वाले सदस्य पर मनोवैज्ञानिक दबाव बना रहता है। हमारा मानना है कि अपना कामकाज शुरू करने या उसका विस्तार करने वाले हर व्यक्ति को पूंजी उपलब्ध होनी चाहिए।’

समूह नियमित तौर पर बैठकों का आयोजन करता है। इन बैठकों में ऋण लेने वाले उद्यमी आवेदन करते हैं। समूह के सभी सदस्यों से इस पर विचार करने के बाद ऋण मुहैया करा दिया जाता है।

रमेश इस बात से काफी खुश है कि उसे अब और बैंकों के चक्कर नहीं लगाने पड़ेंगे और न ही मानमाना ब्याज वसूल कर रुपये देने वाले साहूकारों के।

First Published - January 20, 2009 | 8:55 PM IST

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