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जब पानी ही नहीं तो पान हो कैसे

Last Updated- December 06, 2022 | 11:00 PM IST

पान की कहानी में कई रंग भरे हैं। बांग्ला पान की लाली तो मगही का झट से धुल जाने वाला दिलकश अंदाज।


लेकिन, महोबा पहुंचते ही सारे रंग फीके पड़ जाते हैं। महोबा उत्तर प्रदेश का एक जिला है और बुंदेलखंड इलाके में आता है, जहां पिछले पांच वर्षों से सूखा पड़ा हुआ है। महोबा उत्तर भारत में सबसे अधिक लोकप्रिय सांची (बनारसी) पान की पैदावार के लिए पूरे देश में प्रसिद्ध है लेकिन सूखे की मार से यहां पान की खेती पूरी तरह से बर्बाद हो चुकी है।


महोबा के अवर जिलाधिकारी नरसिंह नारायण लाल ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि ‘बीते साल आंधी और ओला पड़ने से पान की फसल को नुकसान पहुंचा था। प्रशासन की ओर से किसानों की हर संभव मदद की जा रही है।’ खेती के लिए पानी का प्रबंध करने के बारे में पूछने पर उन्होंने बताया कि ‘किसान अपने लिए पानी का प्रबंध खुद कर लेते हैं और सूखे से फसल के प्रभावित होने की कोई खबर नहीं है।’


दूसरी ओर महोबा के पान कारोबारी संतोष चौरसिया ने बताया कि पानी की कमी से पान में फंफूद लग जाती है और पूरी की पूरी फसल खराब हो रही है। इलाके के ज्यादातर किसानों ने पान की खेती ही छोड़ दी है। अब महोबा से दिल्ली का रुख करते हैं। बनारसी पान के शौकीन विभूति नारायण चतुर्वेदी बताते हैं कि बीते दिनों पान की कीमत तेजी से बढ़ी है।


दिल्ली में सामान्य तौर से एक पान की कीमत 4 रुपये से लेकर 20 रुपये तक है। लेकिन कुछ विशेष दुकानों पर 500 रुपये तक के पान मिल जाएंगे। इतनी कीमत देने के बावजूद इस बात की गारंटी नहीं है कि पान अच्छा मिलेगा। पनवाड़ी आजकल कत्थे की जगह गैंबियर का इस्तेमाल करने लगे हैं और ज्यादातर तंबाकू में तेजाब मिला हुआ है, जिससे कैंसर हो सकता है।


पान रिटेल श्रृंखला यामू पंचायत के रितेश कुमार ने बताया कि दिल्ली के सदर बाजार में स्थित पान मंडी में 100 से अधिक पान पत्ते की दुकाने हैं जहां हर रोज 50 से अधिक किस्म के पान आते हैं। पान की डोली की कीमत 6 रुपये से लेकर 500 रुपये तक है। एक डोली में 200 पान के पत्ते होते हैं। पान व्यवसाय असंगठित है और इससे छोटे-छोटे कारोबारी जुड़े हुए हैं स्तर पर किया जाता है, इसलिए कुल कारोबार के बारे में कोई ठोस आंकड़े नहीं मिलते हैं।


उन्होंने बताया कि बीते दिनों पान की कीमतों में तेजी से बढ़ोतरी हुई है लेकिन इससे भी बड़ी समस्या अच्छी गुणवत्ता वाले पत्तों का न मिल पाना है। देश में बांग्ला, बनारसी, मगही, देशी, हैदराबादी और अफसाना पान की प्रमुख किस्में हैं जबकि पान की खपत के मामले में लखनऊ का जवाब नहीं है।


ताम्बूलम् समर्पयामि:
चरक संहिता में कहा गया है कि ‘ताम्बूलं मुखशुद्धिनं’। आयुर्वेद के मुताबिक पान चबाने के बाद पहली पीक (रस) शरीर के लिए हानिकारक है। दूसरी पीक को भी थूक देना चाहिए, जबकि तीसरी पीक को अमृत के समान बताया गया है।


पान बस लबों की शान है, वैसे तो बवाले जान है। भई, ये अफसोस की बात है कि लोग-बाग पान खाकर गंदगी फैलाते हैं। – अशोक चक्रधर, मशहूर हास्य कवि

First Published - May 12, 2008 | 10:14 PM IST

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