बैंकों से ऋण नहीं मिलने के कारण पश्चिम बंगाल का बुनकर समुदाय एक बार फिर से महाजनों के शिकंजे में फंस गया है। राज्य के बैंक इन बुनकरों को ऋण नहीं दे रहे हैं।
राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) के फोकस पेपर 2009-10 के मुताबिक राज्य में लगभग 2,210 पंजीकृत हैंडलूम बुनकरों की सहकारी समिति हैं। लेकिन फिलहाल इनमें से सिर्फ 500 ही काम कर रही हैं।
सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त हैंडलूम समिति भी कार्यशील पूंजी का इंतजाम करने के लिए महाजनों के सामने हाथ फैला रही हैं जो इनसे 30 फीसदी की दर से ब्याज वसूल रहे हैं।
राज्य के वर्द्धमान जिले में बसाकपाड़ा तांगेल तांतुबे समाबे समिति के जी सी बसाक ने बताया, ‘हम ऋण लेने के लिए बैंक की जरूरी शर्तों को पूरा नहीं कर सकते हैं, इसीलिए बैंकों ने हमें ऋण देना ही बंद कर दिया है। घरेलू बाजार में हैंडलूम उत्पादों की मांग होने के बावजूद हमारा उत्पादन लगातार घट रहा है, ऐसे में भी महाजन अपनी मनचाही दर पर ऋण देते हैं।’
हैंडलूम सोसाइटी के लिए पूंजी का मुख्य स्रोत केंद्रीय जिला सहकारी बैंक (डीसीसीबी) होते थे। हालांकि डीसीसीबी की वित्तीय हालत भी अच्छी नहीं है। इसीलिए हैंडलूमों को दी जा रही आर्थिक सहायता भी रूक गई है। पहले डीसीसीबी प्राथमिक बुनकर समितियों को आर्थिक सहायता देने के लिए नाबार्ड से मदद मिलती थी। लेकिन अब डीसीसीबी को यह सुविधा नहीं मिलती है।
पश्चिम बंगाल राज्य सहकारी बैंक के एक अनुमान के अनुसार हैंडलूम क्षेत्र पर सहकारी बैंकों का लगभग 75 करोड़ रुपये बकाया है। पश्चिम बंगाल राज्य सहकारी बैंक के चेयरमैन समीर घोष ने बताया, ‘हम नादिया और वर्द्धमान में मौजूद कुछ हैंडलूम समितियों को आर्थिक सहायता मुहैया करा रहे हैं। लेकिन इनमें से ज्यादातर इकाइयां अब काम नहीं कर रही हैं। इस उद्योग में डिफॉल्टरों की संख्या भी बढ़ रही है।’
नाबार्ड की रिपोर्ट के अनुसार सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त हैंडलूमों के अलावा राज्य में लगभग 3,50,994 हैंडलूम हैं। इनमें 6 लाख से भी ज्यादा लोग काम करते हैं।