उत्तर प्रदेश के खेत लगातार कम पैदावार
देश में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में उत्तर प्रदेश की महत्वपूर्ण हिस्सेदारी को देखते हुए भी इस क्षेत्र में सुधार जरूरी हो जाता है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में जिंसों की कीमतों में आने वाले उतार
–चढ़ावों से बचने के लिए भी कृषि पैदावार में बढ़ोतरी जरूरी है। उल्लेखनीय है कि राज्य में 90 प्रतिशत से अधिक किसान छोटे किसान है और उन्हें संस्थागत ऋण हासिल करने के बारे में मामूली सी जानकारी भी है।राज्य सरकार अधिक से अधिक मंडी परिषद के गठन पर जोर दे रही है। उत्तर प्रदेश के कृषि उत्पादन आयुक्त
(एपीसी) अनीस अंसारी ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि हम अमरूद, आंवला, आम और मेथी जैसी विभिन्न फसलों और कृषि उत्पादों के लिए डेडीकेटेड मंडी बनाने पर जोर दे रहे हैं।सरकार ने
23 अगस्त, 2007 को उत्तर प्रदेश में रिलायंस फ्रेश के स्टोरों को बंद करने का आदेश जारी किया था। सरकार का कहना था कि कृषि खुदरा कारोबार में बड़ी कंपनियों के आने से राज्य में कानून व्यवस्था की स्थिति बिगड़ सकती है। दीगर बात है कि किसान, उपभोक्ता और उद्योग का एक बड़ा हिस्सा रिटेल फार्मेट के पक्ष में है। यहां से कृषि क्षेत्र की सूरत बदलने की उमीद भी है। अब उत्तर प्रदेश बागवानी सहकारी विपणन परिसंघ (एचओएफईडी) 14 कृषि रिटेल आउटलेट खोलने जा रहा है।राज्य के आर्थिक विकास में कृषि और संबंधित उद्योगों की महत्वपूर्ण हिस्सेदारी है। संबंधित उद्योगों में मछली पालन
, पशु पालन, डेयरी और बागवानी शामिल है। कृषि रकबे के लिहाज से उत्तर प्रदेश ऊपरी पायदान पर है लेकिन यदि प्रति एकड़ उपज की बात करें तो राज्य काफी पीछे है। धान, गेहूं, दलहन और तिलहन जैसी उपजों की पैदावार में पिछले एक दशक के दौरान अधिक बढ़ोतरी देखने को नहीं मिली है। वर्ष 2004-05 में धान का उत्पादन (96 लाख टन) 1994-95 की पैदावार (97.9 लाख टन) के मुकाबले कम था। इसके अलावा दलहन जैसी फसलों की उपज घटी है।पंजाब और हरियाणा के विपरीत उत्तर प्रदेश में मशीनीकरण की र
तार कम है। कम उत्पादकता की प्रमुख वजह खेती के छोटे–छोटे रकबों को बताया जाता है। राज्य में 75 प्रतिशत से अधिक खेतों का आकार एक हेक्टेयर से भी कम है। उत्तर प्रदेश में करीब आधे किसानों ने कृषि या शादी जैसी दूसरी जरुरतों के लिए कर्ज ले रखा है। कृषि क्षेत्र में निवेश के घटने, सकल पूंजी सृजन में कमी और कुल योजना व्यय में कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी घटने से हालात और भी जटिल हो गए हैं। राज्य के योजना विभाग के आंकड़ों के मुताबिक पिछले एक दशक से कृषि क्षेत्र में लगातार गिरावट का रुख देखने को मिला है।