कोरोना संकट और लंबे लॉकडाउन के बाद अब भी चले आ रहे प्रतिबंधों के चलते लखनवी मांसाहारी दुकानों का जायका फीका पड़ चुका है। ढाई महीने से भी ज्यादा चले लॉकडाउन और बाद में भी काफी समय तक चिकन और मटन की बिक्री पर जारी रहे प्रतिबंधों के चलते राजधानी लखनऊ ही नहीं प्रदेश के कई बड़े शहरों में भी रेस्टोरेंट के धंधे को तगड़ा झटका लगा है। बीते एक महीने से उत्तर प्रदेश में सप्प्ताहांत पर दो दिन के लॉकडाउन ने तो रेस्टोरेंटों का दिवाला निकालने की हालत पैदा कर दी है।
मांसाहारी रेस्टोरेंटों को कच्चा माल खासकर चिकन और मटन पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा कीमतों पर मिल रहा है तो लखनवी जायके का स्वाद लेने वालों की तादाद घटकर एक चौथाई भी नहीं रह गई है। अकेले राजधानी में बड़े पैमाने पर मांसाहारी व्यजनों के रेस्टोरेंट बंद हो गए हैं और जो चल भी रहे हैं वो पहले के मुकाबले बहुत कम आइटम तैयार कर रहे हैं। लखनऊ में अमीनाबाद से ठीक पहले मशहूर नवाबीन रेस्टोरेंट तो लॉकडाउन के बाद से अब तक नहीं खुला है, वहीं गोमतीनगर के रोटी बोटी नाम के फूड कॉर्नर ने तो हमेशा के लिए शटर गिरा दिए हैं। चौक, लखनऊ में कभी ऑल सीजन्स के नाम से नॉनवेज रेस्टोरेंट चलाने वाली इमाम अली ने अब आइसक्रीम, कुल्फी का कारोबार शुरु कर दिया है तो कैंट रोड पर उदयगंज में अनस बिरयानी कॉर्नर ने हमेशा के लिए इस धंधे से किनारा कर दूध का पार्लर खोल दिया है।
लखनऊ ही नहीं दुनिया भर में मशहूर दस्तरख्वान रेस्टोरेंट की चेन के मालिक फैसल बताते हैं कि 19 मार्च को राजधानी में गायिका कनिका कपूर को कोरोना पॉजिटिव पाए जाने के बाद से धंधा बंद किया था जो जून में खोला है। राजधानी में ही आधा दर्जन रेस्टोरेंट चलाने वाले फैसल कहते हैं कि बस किसी तरह अपने स्टाफ और खुद को व्यस्त रखने के लिए काम चला रहे हैं। फैसल के मुताबिक पहले तो ढाई महीने का लॉकडाउन रहा फिर चिकन मटन मिलने में दिक्कतें पेश आईं और अब रेस्टोरेंट खुले हैं तो ग्राहक न के बराबर आ रहे हैं। अनलॉक में रेस्टोरेंट खोला भी है तो मेन्यू पहले से घटकर आधा रह गया है। उनका कहना है कि आज बस पांच-छह आइटम, वो भी खासी कम मात्रा में तैयार किए जा रहे हैं।
लॉकडाउन के दौरान उत्तर प्रदेश के ज्यादातर पोल्ट्री फार्म वालों ने चूजे पालना बंद कर दिया जिसके चलते तालाबंदी खुलने के बाद चिकन मिलने में दिक्कतें आने लगीं। फैसल का कहना है कि शुरुआती दिनों में लखनवी मांसाहारी व्यंजन बेचने वालों को कर्नाटक, महाराष्ट्र से आने वाले फ्रोजन चिकन से काम चलाना पड़ा जो न केवल बेस्वाद था बल्कि मंहगा भी पड़ा रहा था। हालांकि उनका कहना है कि अब फिर से पोल्ट्री फॉर्म सप्लाई देने लगे हैं पर मांग ही नहीं है। मटन के मामले में हालात और भी खराब है क्योंकि गांवों से सप्लाई बुरी तरह से बाधित हुई है।
सलाम चिकन्स के मालिक इम्तियाज का कहना है कि राजधानी में 3,000 से ज्यादा पंजीकृत नॉनवेज रेस्टोरेंट हैं जिनमें से अब आधे से भी कम खुले हैं। इसके अलावा सड़कों के किनारे या फुटपाथ पर दुकान लगाने वालों में से तो 75 फीसदी गायब हो चुके हैं। उनका कहना है कि पहले जहां हर रोज 10-12 करोड़ रुपये का धंधा था वहीं अब ये घटकर कुछ लाख में ही रह गया है।
प्रदेश में नॉनवेज की दुकानों का धंधा ठंडा पडऩे के बाद यहां काम करने वालों को भी बेरोजगार होना पड़ा है। बहुत सी दुकानों पर काम करने प्रवासी कामगार अभी अपने घरों से नहीं लौटे हैं। दस्तरख्वान के फैसल का कहना है कि इन रेस्टोरेंट के ज्यादातर कारीगर बंगाल से आते हैं जो लॉकडाउन में अपने गांव चले गए। अभी तक नियमित ट्रेन वगैरह न चलने से इनका आना हो नहीं पाया है। सलाम चिकन्स के मालिक का कहना है कि किसी तरह कारीगरों को तो घर से वेतन देकर रोके हुए हैं पर वेटरों व अन्य काम करने वालों की छुट्टी हो गई है। इम्तियाज का कहना है कि लखनऊ में ही कम से कम 50,000 से ज्यादा लोग इस धंधे से जुड़े हैं और अब उनमें से आधे बेकार हो गए हैं।
फैसल बताते हैं कि कोरोना संकट से पहले उनके पास या अन्य बड़े रेस्टोरेंटों के पास कैटरिंग का काम बड़ी तादाद में आता था पर बीते बीचे पांच महीनों से वो भी बंद हो गया है।
