एशिया की सबसे बड़ी मलिन बस्ती धारावी की कायापलट की योजना धीमी पड़ती नजर आ रही है।
फिल्म स्लमडॉग मिलियनेयर के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बनी धारावी को फिर से विकसित करने की सरकारी योजना पर मंदी की काली परछाईं छाने लगी है।
मंदी के कारण इस परियोजना के लिए बोली लगाने वाली कंपनियां एक के बाद एक कर इससे अलग हो रही हैं। इस बस्ती में लगभग 10 लाख लोग रहते हैं। मंदी ने लोगों से नौकरी के साथ साथ अपने मकान का सपना भी छीन लिया है।
धारावी मुंबई के बिल्कुल बीच में लगभग 535 एकड़ भूमि पर फैली हुई है। इस बस्ती में लगभग 80,000 झोपड़ियां और चमड़े के उत्पाद, मिट्टी के बर्तन, मूर्तियां बनाना, बेकरी और कन्फेक्शनरी निर्माण समेत लगभग 20,000 छोटे मोटे कारोबार चल रहे हैं। इन उद्योगों में काम करने वाले लगभग 80 फीसदी लोग इसी बस्ती में रहते हैं और यहीं काम करते हैं।
हालांकि कांग्रेस और शिव सेना के प्रत्याशियों ने धारावी में रहने वाले प्रत्येक परिवार को 400 वर्ग फीट का मकान देने की घोषणा की है। हालांकि जो लोग यहां पर रहते हैं, वह अपनी इस दुर्दशा के लिए सरकार और नेताओं को ही दोषी मानते हैं।
स्क्रैप डीलर रहमान मलिक ने बताया, ‘पहले स्क्रैप कारोबारी रोजाना लगभग 70-80 टन कबाड़ का कारोबार किया करते थे। लेकिन अब दिन में 30-40 टन कबाड़ का ही कारोबार हो पाता है। जब पुनर्प्रसंस्करण इकाइयों की तरफ से ही मांग कम हो गई तो फिर हम स्क्रैप क्यों खरीदे और अगर खरीद भी लें तो हम रखेंगे कहां?’
मंदी का सबसे बुरा असर पड़ा है कूड़ा बीनने वालों पर। पहले प्लास्टिक की बोतल और मेटल का कबाड़ बेचकर इन लोगों को जहां रोजाना 200-250 रुपये की कमाई होती थी, वहीं अब उतने ही सामान के लिए उन्हें मुश्किल से 100 रुपये ही मिल पाते हैं।
मलिक ने बताया कि स्क्रैप डीलर ज्यादा माल इकट्ठा नहीं करना चाहते हैं। धारावी के चमड़ा उद्योग में लगभग 12,000 लोग काम करते हैं और इसका सालाना कारोबार लगभग 200 करोड़ रुपये का है। हालांकि निर्यात घटने के बाद से यह कारोबार भी 50 फीसदी घट गया है। धारावी के चमड़ा उद्योग में निर्यात की हिस्सेदारी 25 फीसदी है। लेकिन निर्यात घटने के कारण लगभग 40 फीसदी लोगों को काम से हाथ धोना पड़ा है।
धारावी में ही चमड़े के उत्पाद बनाने वाले रमेश कदम ने बताया, ‘जब डॉलर की कीमत 40-42 रुपये के बीच थी उस समय भी हमें काफी ऑर्डर मिल रहे थे। लेकिन अब जब डॉलर की कीमत 50 रुपये हो गई है हमें निर्यात के ऑर्डर ही नहीं मिल रहे हैं।’
धारावी बचाओ आंदोलन के तहत काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता राजू कोर्डे ने बताया, ‘अगर डेवलपर इस परियोजना से कदम पीछे खींचते हैं तो महाराष्ट्र आवासीय और क्षेत्र विकास प्राधिकरण (म्हाडा) को इस परियोजना को पूरा करना चाहिए।’
इस बारे में म्हाडा के उपाध्यक्ष और मुख्य कार्याधिकारी गौतम चटर्जी ने बताया कि जिन 19 डेवलपरों के समूह को यह परियोजना सौंपी गई थी, उनमें से सिर्फ 5 ने ही नाम वापस लिए हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि धारावी के लोगों को अच्छे घरों में रहने का मौका नहीं मिलेगा।
धारावी के विकास पर मंदी की छाया
धारावी के विकास के लिए जिन 19 डेवलपरों के समूह को परियोजना सौंपी गई थी, उनमें से 5 ने अपने नाम वापस ले लिए हैं और इसके पीछे मंदी को वजह बताया जा रहा है
