सरकार ने कर चोरी पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से मूल्य संवर्धित कर (वैट) व्यवस्था का दामन थामा था लेकिन सरकार की यह पहल कोरी साबित हो रही है।
हमेशा की तरह व्यापारियों व एजेंटों का एक वर्ग अपने मुनाफे को बढ़ाने और कर चोरी को अंजाम देने के लिए नकली विवरण जारी कर रहा है। हालांकि इस पूरे प्रकरण में बाजार का ‘राजा’ यानी उपभोक्ता अपने आपको ठगा हुआ महसूस कर रहा है।
उपभोक्ता उत्पीड़न और कर चोरी के एक ताजे मामले में शहर के एक अग्रणी ऑटोमोबाइल एजेंसी आरएनजी मोटर्स पर उपभोक्ता को फर्जी चालान जारी करने का आरोप लगाया गया है। दिवाली के अवसर पर डीलर से दोपहिया बजाज गाड़ी की खरीदारी करने वाले अभयानंद शुक्ला ने बताया, ‘गाड़ी की खरीदारी के लिए मैंने 48,100 रुपये का वास्तविक भुगतान किया लेकिन एजेंसी ने कुल 46,042 रुपये का ही बिल जारी किया था।’
इस वक्त शुक्ला परेशानियों से जूझ रहे हैं। शुक्ला ने अपनी गाड़ी के लिए बैंक से फाइनैंस करवाया था लेकिन अब बैंक अधिकारी दस्तावेजी सबूत के अभाव में पूरी राशि देने को तैयार नहीं हैं। शुक्ला ने बताया, ‘मैं एजेंसी डीलरों और बैंक के बीच फंस गया हूं। अब मुझे अपने जेब से पैसे लगाना पड़ रहा क्योंकि बैंक ऋण वितरण को रद्द करने की धमकी दे रहा है।’
एजेंसी के मालिक अमित गर्ग ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि किसी भी उत्पाद के लिए एजेंसी वाहन पंजीकरण और बीमा प्रीमियम राशि भुगतान के साथ बिल जारी नहीं कर सकती है और यही वजह है कि वास्तविक भुगतान बिल भुगतान से अधिक है। हालांकि दूसरी ओर एजेंसी के प्रतिनिधि ने अभयानंद शुक्ला को अतिरिक्त राशि वापस करने और एक नई बिल जारी करने का आश्वासन दिया है।
कानपुर संभागीय आयुक्त (व्यापार कर) जे पी आर्य ने आश्वासन दिया है कि अगर पर्याप्त सबूत पाए गए तो दोषी व्यापारियों के खिलाफ आश्वयक कार्रवाई की जाएगी। क्षेत्रीय परिवहन अधिकारी (आरटीओ) निर्मल प्रसाद ने कहा कि आरोपों को सत्यापित करने के लिए उन्होंने एजेंसी प्रतिनिधि को समन भेजा है।
शहर के एक चाटर्ड एकाउंटेंट (सीए) डी एस मिश्रा ने बताया कि नकली चलानों की वजह से मोटरसाइकिल की बिक्री में कमी आती है और ऐसा इसलिए भी है क्योंकि नकली चालानों के बढ़ते मामले को देखते हुए बैंकों ने अपनी ऋण वितरण प्रक्रियों को और कड़े कर दिए हैं।
शहर के कई व्यापारी राजस्व विभाग के दिशा निर्देशों का प्राय: उल्लंघन करते हैं। व्यापारियों से कहा जाता है कि वे बिल विवरण के साथ व्यापारी पहचान संख्या (टिन) भी जारी करें लेकिन वे ऐसा नहीं करते हैं। हालांकि अधिकांश उपभोक्ताओं को इसके बारे में पता भी नहीं होता है।
लखनऊ स्थित भारतीय राष्ट्रीय उपभोक्ता फोरम (आईएनसीएफ) के अध्यक्ष अरुण मिश्रा ने बताया, ‘लोगों को इसका एहसास तभी होता है जब वे फाइनैंस या उसके बाद सर्विस व मरम्मत के लिए परेशानियों का सामना करते हैं।’