विशाल बिजली उत्पादन क्षमता वाला देश नेपाल पंचेश्वर बांध के बाद भी भारत के साथ मिलकर और अधिक पन बिजली परियोजनाओं के विकास का इच्छुक है।
नेपाली प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ ने अपनी एक दिन की उत्तराखंड यात्रा के दौरान इस बात के संकेत दिए। प्रचंड ने संवाददाताओं से बताया कि ‘केवल पंचेश्वर ही क्यों, हमारे यहां काफी अधिक संभावनाएं हैं। हम भारत के साथ मिलकर और अधिक परियोजनाओं के विकास पर काम कर सकते हैं।’
इससे पहले प्रचंड ने उत्तराखंड स्थित टिहरी बांध का दौरा किया और भारत तथा नेपाल के संयुक्त प्रयास से प्रस्तावित 6,000 मेगावाट वाली पंचेश्वर बांध के बारे में अधिकारियों और अन्य लोगों से चर्चा की। प्रचंड आज हेलीकाप्टर से टिहरी पहुंचने के बाद सीधे 2,400 मेगावाट क्षमता वाले टिहरी बांध को देखने गए।
उन्होंने इस पनबिजली परियोजना के बारे में अधिकारियों से आवश्यक जानकारी भी एकत्रित की। वह बिजली संयंत्र के भीतर भी गए ओर विभिन्न गतिविधियों के बारे में भी सूचनाएं ली। प्रचंड टिहरी बांध के अंदर पावरहाउस में भी गए।
यह एशिया में सबसे ऊंचा बांध है। उन्होंने परियोजना की विभिन्न प्रणालियों को गौर से देखा और पुनर्वास के मुद्दे पर भी बात की। टिहरी की यात्रा के बाद प्रचंड देहरादून रवाना हो गए जहां उन्होंने मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी के साथ दोपहर का भोजन किया।
दोनों नेताओं ने साझा हितों के मुद्दे पर चर्चा की और पंचेश्वर बांध के मुद्दे पर संतोष जताया। इस बांध का निर्माण भारत और नेपाल द्वारा संयुक्त रूप से किया जा रहा है। माओवादी नेता ने कहा कि उनके देश भारत के साथ और अधिक पन बिजली परियोजनाओं के विकास का इच्छुक है।
करीब 30,000 करोड़ रुपये की लागत से बनने वाले पंचेश्वर बांध उत्तराखंड और नेपाल की सीमा पर महाकाली नदी पर प्रस्तावित है। इस बांध और टिहरी बांध के बीच तकनीकी पहलुओं को लेकर काफी समानता है। इस बांध के बनने पर हजारों की संख्या में विस्थापित होने वाले लोगों को दूसरी जगह बसाए जाने का भी प्रस्ताव विचाराधीन है।
नेपाल के प्रधानमंत्री का यह दौरा प्रमुख रूप से बांध के निर्माण के दौरान विस्थापित होने वाले लोगों की स्थिति की सच्चाई परखने के लिए हो रहा है क्योंकि पंचेश्वर बांध के निर्माण से भी हजारों लोगों को विस्थापित किया जाएगा। प्रचंड का उत्तराखंड दौरा पंचेश्वर बांध के निर्माण की दिशा में सकारात्मक ढंग से आगे बढ़ने की दृष्टि से अधिक अहम माना जा रहा है।
पिछले एक दशक से नेपाल से ही सटी सीमा होने तथा माओवादी गतिविधियों के सक्रिय रहने के चलते इस बांध का निर्माण अधर में लटका हुआ है। नेपाल में माओवादी नेता प्रचंड के प्रधानमंत्री बनने के बाद भारत और नेपाल के बीच इस प्रस्तावित बांध को लेकर कई दौर की वार्ता हो चुकी है।
प्रचंड ने टिहरी पहुंचकर बांध निर्माण के बाद क्षेत्र में होने वाले भौगोलिक परिवर्तन की भी जानकारी हासिल की। नेपाल में इस साल माओवादियों के सत्ता में आने के बाद से वहां के माहौल में काफी सुधार आया है। इस दौरान भारत और नेपाल के बीच बांध के सिलसिले में कई बैठकें हुई हैं और दोनों देशों ने पंचेश्वर विकास प्राधिकरण के गठन का भी फैसला किया है।
इस परियोजना से उत्पन्न होने वाली बिजली को लेकर सौदेबाजी की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। उत्तराखंड के बिजली सचिव शत्रुघ्न सिंह ने बताया, ‘हमलोग इस बांध से अधिक से अधिक फायदा उठाने की कोशिश कर रहे हैं।’ सिंह काठमांडू और नई दिल्ली में आयोजित की गए दो वार्ताओं में शामिल हुए हैं।
सिंह ने बताया, ‘जहां तक बिजली का सवाल है तो पंचेश्वर बांध से हमारे राज्य को काफी फायदा होगा।’
पंचेश्वर बांध
लागत
30,000 करोड़ रु.
क्षमता
6,000 मेगावाट
स्थान
उत्तराखंड नेपाल सीमा
नदी
महाकाली
विस्थापन
20,000 (भारत में)