केले की फसल को फसल बीमा में भी शामिल किया गया, लेकिन फसल बीमा कंपनियों के कड़े मानदंडों की वजह से केला उत्पादकों को लाभ मिलना बहुत मुश्किल है। केला उत्पादकों ने फसल बीमा कंपनियों की मनमानी की शिकायत मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से की। मुख्यमंत्री ने बीमा कंपनियों के अधिकारियों को तलब करने के साथ केंद्र सरकार को इस मुद्दे पर पत्र लिखकर केला उत्पादकों की समस्या पर ध्यान देने को कहा है।
केले की फसल के लिए लागू किए गए नियमों तथा मानदंडो की वजह से इसका लाभ किसानों को नही मिलता, बल्कि इसका फायदा सिर्फ बीमा कंपनियों को ही होगा। इस बात की शिकायत पर ध्यान देते हुये मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने कृषि विभाग को तत्काल संबंधित बीमा कंपनियों के अधियाकरियों के साथ बैठक आयोजित कर नियम तथा मानदंडो एवं नुकसान मुआवज़े के संदर्भ में हल निकालने के निर्देश देने के साथ-साथ केंद्र सरकार को इस मुद्दे पर ध्यान देने के लिए पत्र भी लिखने को कहा है।
कृषि उत्पादक संघ की शिकायत सुनने के बाद इनका हल निकालने के निर्देश देते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि इस योजना के संबंधित बीमा किश्त स्वीकारने का काम 31 अक्टूबर तक जारी रहेगा, इसलिए तत्काल बीमा कंपनियों के साथ बैठक आयोजित की जाए और बैठक में इस विषय पर चर्चा कर हल निकाला जाए। मुख्यमंत्री ने कहा कि विविध वजहों से फसल और फल की खेती को नुकसान होता है, लेकिन बीमा कंपनियों की ओर से किसानों को नुकसान का मुआवज़ा मिलने में बहुत दिक्कतें होती है। इसलिए अब इस विषय पर केंद्र ने स्थायी रूप से उपाय योजन करना जरूरी है।
मंत्री गुलाबराव पाटिल ने बताया कि जलगांव क्षेत्र में केले का 6,000 करोड़ रुपये का व्यवसाय है। तकरीबन डेढ़ लाख लोगों का रोजगार भी इसी पर निर्भर है। जिले के 4 तहसीलों में बड़े पैमाने पर केले का उत्पादन होता है। देश के 22 फीसदी केले का उत्पादन जलगांव में होता है। लेकिन केले के उत्पादन के लिए फसल बीमा के नियम बदलने से किसानों को नुकसान होगा और इस पर राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में यह विषय रखा गया है। कृषि मंत्री दादाजी भुसे ने कहा कि हम बीमा कंपनियों और प्रशासन से यह पता लगाने के लिए कह रहे हैं कि क्या एनडीआरएफ की तर्ज पर कुछ पैमाने में नुकसान मुआवज़ा दिया जा सकता है? कुल फसल बीमा के संदर्भ में समिति स्थापन करते हुए इस समिति में विशेषज्ञों को शामिल किए जाने और बीमा के विविध मॉडेल्स का भी अध्ययन किए जाने की जरुरत है।
कृषि सचिव एकनाथ डवले ने इस विषय की जानकारी देते हुए बताया कि केंद्र ने फसल बीमा ऐच्छिक किया है और हमारा बीमा किश्त का सहभाग और भी सीमित किया है। वर्तमान के कंपनियों की निविदा रद्द करने को लेकर केंद्र की ओर तीन बार विनती की है, लेकिन उसे मंजूरी नहीं मिली है। बीड में भी बीमा कंपनियों का प्रतिसाद नहीं मिलने से एग्रीकल्चर इन्शुरन्स कंपनी लिमिटेड को जिले का फसल बीमा स्वीकार करने को कहा गया। यह कंपनी अगले तीन सालों के लिए करारबद्ध रहेगी। साथ ही कंपनी पर अधिक भार पड़ने पर, इसकी राज्य सरकार के जरिये मदद की जाएगी, इसी तरह का करार केले की फसल को लेकर भी किया जा सकता है। बीमा कंपनियों से यह स्पष्ट जानकारी मांगी जाएगी।
