आगरा का ढलाई उद्योग देश के सबसे पुराने उद्योगों में से एक है। शताब्दियों पहले यह उद्योग मुगलों के लिए तोप के गोले बनाने को लेकर स्थापित हुआ था।
आज आगरा का यह उद्योग दूसरे राज्यों में ढलाई केन्द्रों से मिल रही प्रतिस्पर्धा के कारण संकट का सामना कर रहा है। दूसरे राज्यों में खुले नए ढ़लाई केन्द्र नई तकनीकों का प्रयोग कर रहे है। इसके साथ ही साथ कच्चे और स्क्रैप लोहे के मूल्यों में हुई वृद्धि ने भी इस उद्योग के लिए नई चुनौतियों को खड़ा कर दिया है।
आगरा आयरन फांउडर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष अमर मित्तल ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि पिछले छह महीनों के भीतर स्क्रै प धातु के दामों में पचास फीसदी का इजाफा हुआ है। लेकिन इसके परिणाम स्वरुप ढ़लाई केन्द्र निर्मित माल के दामों को नहीं बढा सकते क्योंकि इन केन्द्रों में तैयार माल को पहले से तयशुदा समझौते के आधार पर बेचा जाता है।
मित्तल ने बताया कि पिछले छह महीनों में स्क्रैप लोहे का मूल्य 18 रुपये प्रति किलो से बढ़कर 25 रुपये प्रति किलो हो गया है। इसके अलावा कच्चे लोहे का मूल्य भी 22 रुपये प्रति किलो से बढ़कर 30 रुपये प्रति किलो हो गया है। लोहे के दामों में हुई इस वृद्धि ने उत्पादन लागत को 50 फीसदी बढ़ा दिया है। यही कारण है कि आगरा में ढलाई केन्द्रों ने अपने उत्पादन क ो 25 से 30 फीसदी घटा दिया है।
ऐसा करने से भी इन ढलाई केन्द्रों की समस्या कम नहीं हुई है। इसके अतिरिक्त इन केन्द्रों ने गैस आथॉरिटी ऑफ इंडिया से निम्तम गैस खपत गांरटी समझौते पर हस्ताक्षर भी किये है। एक ओर सरकार इस उद्योग के समस्याओं को दूर करने के लिए सार्थक कदम नहीं उठा रही है वहीं दूसरी ओर स्टील कंपनियों ने स्टील के दामों को भी 2,000 रुपये प्रति टन से बढ़ाकर 5000 रुपये प्रति टन कर दिया है।
सूत्रों का कहना है कि स्टील कंपनियों द्वारा दामों को 10 से 20 फीसदी कम करने पर भी इस उद्योग की समस्याएं दूर नहीं होगी। घरेलू बाजार में स्टील के बढ़ते दामों को स्थिर रखने के लिए जरुरी है कि कुछ दिनों तक लौह अयस्क के निर्यात को रोका रखा जाए।