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अमेरिका-भारत शुल्क समझौता जल्द पूरा हो

दोनों देशों के बीच शुल्कों को लेकर अंतरिम समझौता भविष्य में होने वाले समझौते के लिए मजबूत जमीन तैयार करेगा। बता रहे हैं मार्क लिंसकट और अनुष्का शाह

Last Updated- June 10, 2025 | 5:20 PM IST
India US Trade Deal

एक सीमित व्यापार समझौता करने के लिए भी अमेरिका और भारत के पास अब अधिक समय शेष नहीं रह गया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने शुल्कों पर 90 दिनों की जो अस्थायी रोक लगाई थी उसकी समय सीमा 9 जुलाई को समाप्त हो रही है। 10 अप्रैल को राष्ट्रपति ट्रंप ने दो तरह के शुल्कों का ऐलान किया था। उन्होंने सबसे पहले अमेरिका आने वाली सभी वस्तुओं पर 10 फीसदी का बुनियादी शुल्क लगाने की घोषणा की और उसके बाद भारतीय वस्तुओं पर निशाना साधते हुए उन पर 16 फीसदी का अतिरिक्त शुल्क लगाने का भी ऐलान किया। हालांकि, अमेरिका ने आपसी बातचीत का एक अवसर देने के लिए इन शुल्कों पर अस्थायी तौर पर रोक लगा दी। अब इसकी समय सीमा अब समाप्त होने वाली है।

भारत और अमेरिका के बीच बातचीत लगातार चल रही है। अमेरिका बातचीत में शुल्कों को हथियार बना रहा है तो भारत काफी लचीलापन दिखा रहा है। यह वार्ता इस मायने में असाधारण कही जा सकती है कि अमेरिका की चिंता दूर करने के लिए भारत किस हद तक कदम उठा सकता है। भारत ने अमेरिका के सामने एक साहसिक प्रस्ताव रखा है जिसके तहत अमेरिका से आयातित विभिन्न गैर-कृषि वस्तुओं पर शुल्क घटाकर लगभग शून्य करने की बात कही गई है। यह पेशकश केवल अमेरिका को ही की गई है न कि विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के सभी साझेदार देशों को। पूर्ण मुक्त व्यापार समझौते की जद से बाहर शुल्कों में इतनी बड़ी कटौती यदा-कदा ही देखी गई है, खासकर भारत जैसे देश की तरफ से जो परंपरागत रूप से ऊंचे व्यापार शुल्क लगाने के लिए जाना जाता है।

भारत ने आखिर इतना उदार प्रस्ताव क्यों दिया? इसका कारण यह है कि दूसरा कोई ठोस विकल्प नजर नहीं आ रहा है। बिना किसी अंतरिम समझौते के भारत से अमेरिका को होने वाले निर्यात पर 26 फीसदी शुल्क का खतरा बरकरार रहेगा। अमेरिका भारत का सबसे बड़ा निर्यात बाजार है इसलिए मौजूदा शुल्क विवाद का कोई समाधान नहीं निकलने की स्थिति में लाखों भारतीय नौकरियां खतरे में आ सकती हैं। शुल्क बढ़ने की सूरत में भारतीय विनिर्माताओं को लागत बर्दाश्त करनी होगी या फिर कीमतें बढ़ानी होंगी। कीमतें बढ़ने से उनकी प्रतिस्पर्द्धी क्षमता कम हो जाएगी और मांग भी प्रभावित होगी।

भारत ने अपना पक्ष स्पष्ट कर दिया है कि वह अपने निर्यात को नए शुल्कों की चोट से बचाना चाहता है। भारत, अमेरिका से इसे लेकर ठोस आश्वासन चाहता है कि वह 16 फीसदी का जवाबी शुल्क नहीं लगाएगा और आदर्श रूप में 10 फीसदी शुल्क से भी छूट देगा। अमेरिकी वस्तुओं के लिए भारत लगभग शुल्क मुक्त पहुंच का प्रस्ताव रख रहा है और वह बदले में ऐसा ही चाहता है।

ब्रिटेन-अमेरिका शुल्क समझौता

अमेरिका और भारत के बीच अंतरिम व्यापार सौदे पर जारी बातचीत के मध्य अमेरिका-ब्रिटेन समझौता एक खाका पेश कर रहा है साथ ही कुछ जोखिमों से भी आगाह कर रहा है। कुछ सप्ताह पहले ब्रिटेन ने दबाव में ट्रंप प्रशासन के साथ एक समझौता कर लिया था।

ब्रिटेन ने तेजी से कदम उठाया और शुल्कों से आंशिक राहत हासिल कर ली। लेकिन ब्रिटेन को 10 फीसदी सार्वभौम शुल्क से छूट नहीं मिली।
मगर भारत का मामला दो कारणों से अलग है। पहली बात तो यह कि भारत कई वस्तुओं पर लगभग शून्य शुल्क की पेशकश कर रहा है और गैर-शुल्क बाधाओं में भी कमी का वादा कर रहा है। दूसरी बात यह कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एकतरफा सौदा नहीं कर सकते। अमेरिकी शुल्कों के साथ भारत का बाजार खोलने से स्थानीय स्तर पर कड़ा विरोध हो सकता है। भविष्य में जो भी होगा उससे न केवल द्विपक्षीय व्यापार की दिशा तय होगी बल्कि आने वाले कई वर्षों तक अमेरिका-भारत की आर्थिक कूटनीति का लहजा भी बदल जाएगा। यहां तीन स्थितियां बनती दिखाई दे रही हैं।

पहली स्थिति

भारत को 16 फीसदी जवाबी शुल्क से राहत मिल सकती है। इस सूरत में अमेरिका 16 फीसदी शुल्क हटा देगा मगर 10 फीसदी का बुनियादी शुल्क बरकरार रखेगा। भारत के लिए यह तब बड़े नुकसान की बात नहीं होगी खासकर तब जब एशिया के दूसरे देश जैसे वियतनाम अमेरिका से ऐसी ही राहत पाने में नाकाम रहे हैं। हालांकि, भारत की वस्तुएं 10 फीसदी महंगी हो जाएंगी, जिससे कीमतों के प्रति संवेदनशील क्षेत्रों को नुकसान पहुंचेगा। भारत द्वारा शुल्कों में भारी भरकम कटौती से अमेरिकी निर्यातकों के लिए भारतीय बाजारों तक पहुंच आसान हो जाएगी। मगर भारत के समक्ष परिस्थितियां थोड़ी पेचीदा हैं। अमेरिकी शुल्कों के साथ अपना बाजार खोलना भारत के लिए कठिन सौदा हो सकता है। इससे व्यापार युद्ध की स्थिति तो टल जाएगी मगर घरेलू मोर्चे पर इसकी राजनीतिक कीमत चुकानी पड़ सकती है।

दूसरी स्थिति

अमेरिका भारत पर 16 फीसदी और 10 फीसदी दोनों ही शुल्क हटा सकता है। यह स्थिति भारत के लिए आदर्श होगी और अमेरिका की तरफ से इसे एक दोस्ताना व्यवहार माना जाएगा। अगर अमेरिका भारत पर दोनों शुल्क हटा देता है तो यह बड़ी बात होगी क्योंकि ब्रिटेन को भी ऐसी रियायत नहीं दी गई है। अमेरिका में भारतीय वस्तुओं पर न के बराबर शुल्क की स्थिति पहले की तरह जारी रहेगी और अमेरिकी वस्तुओं की भी भारतीय बाजारों तक पहुंच काफी बढ़ जाएगी। यह स्थिति दोनों ही देशों के लिए फायदेमंद होगी।

इससे संदेश जाएगा कि अमेरिका अपने एक प्रमुख साझेदार देश के लिए वैश्विक शुल्क नीति में बदलाव कर सकता है। भारत भी इसके बाद अपना रवैया उदार बनाने के लिए तैयार रहेगा। अगर दोनों देशों के नेताओं ने राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखाई तो यह अंतरिम समझौता वृहद द्विपक्षीय व्यापार समझौते (बीटीए) की जमीन तैयार कर सकता है।

तीसरी स्थिति

भारत भी अमेरिका की तर्ज पर 10 फीसदी शुल्क लगा सकता है मगर यह कदम जवाबी माना जाएगा। अमेरिका भारत पर 16 फीसदी शुल्क हटा देगा मगर 10 फीसदी शुल्क बरकरार रखेगा। भारतीय निर्यात 10 फीसदी अधिक महंगा हो जाएगा जिससे उसकी लाभ कमाने की क्षमता और कमजोर हो जाएगी। भारत शून्य शुल्क के प्रस्ताव से पीछे हट सकता है और अमेरिकी वस्तुओं पर 10 फीसदी जवाबी शुल्क लगा सकता है। राजनीतिक तौर पर यह अधिक स्वीकार्य स्थिति होगी। भारत इससे अमेरिका के सामने जरूरत से अधिक झुकता हुआ प्रतीत नहीं होगा और बातचीत के दरवाजे भी खुले रहेंगे। हालांकि, अमेरिकी निर्यातकों के लिए भारतीय बाजार में पहुंचने का मौका निकल जाएगा। अगर ऐसा होता है तो भारत को वार्ता के अगले चरण में 10 फीसदी शुल्क हटाने से जुड़ी बातचीत को प्राथमिकता देनी चाहिए और 2025 के पतझड़ (शरद ऋतु) तक वृहद बीटीए का पहला चरण पूरा होने तक इसका समाधान खोज लेना चाहिए।

धारा 232 के तहत जांच

अमेरिका के साथ बातचीत के साथ भारत को धारा 232 के तहत विचाराधीन 7 जांच के नतीजों के लिए भी तैयार रहना चाहिए। इनमें भारत के प्रमुख निर्यात क्षेत्रों में एक दवा भी है। ब्रिटेन ने हाल में अमेरिका के साथ हुए व्यापार सौदे में 232 के तहत आने वाले कुछ शुल्कों से राहत ले ली। एक बार निर्णय आने के बाद भारत को भी ऐसी ही राहत हासिल करने की दिशा में काम करना चाहिए।

आगे की राह

राष्ट्रपति ट्रंप ने जब शुल्कों की घोषणा की थी तो उस समय प्रधानमंत्री मोदी ने कोई जवाबी कदम उठाने के बजाय बातचीत को प्राथमिकता दी थी। उनके इस कदम से कूटनीति के लिए गुंजाइश बन गई। बातचीत को प्राथमिकता देने की उस नीति के सकारात्मक नतीजे बातचीत में भारत के विश्वास के दृष्टिकोण को और मजबूती देंगे और भविष्य में होने वाले समझौते के लिए मजबूत जमीन तैयार करेंगे।

शरद ऋतु तक दोनों ही सरकारें बीटीए का पहला चरण पूरा कर लेना चाहती हैं जिसमें डिजिटल व्यापार से लेकर कृषि जैसे पेचीदे मसले केंद्र में आ जाएंगे। अगर भारत अभी शुल्कों से राहत हासिल नहीं कर पाता है तो उसे बीटीए के पहले चरण के दौरान इस पर जोर देना चाहिए। 2030 तक 500 अरब डॉलर का साझा व्यापार लक्ष्य हासिल करने के लिए दोनों पक्षों को 10 फीसदी सार्वभौम शुल्क जैसी बाधाओं को समाप्त करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। घड़ी की सूई तेजी से घूम रही है। भारत ने अपनी तरफ से ठोस एवं साहसिक पेशकश की है। अमेरिका ने भी जवाबी शुल्क पर रोक लगा दी है। इस अवसर को एक ऐसे समझौते का रूप दे देना चाहिए जो उचित, भविष्य के लिए बेहतर और रणनीतिक रूप से मजबूत हो।

(लेखक क्रमशः यूएसआईएसपीएफ में पूर्व सहायक अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि एवं वरिष्ठ सलाहकार (व्यापार) और प्रबंधक (ट्रेड पॉलिसी ऐंड इमर्जिंग ऐंड क्रिटिकल टेक्नॉलजीज) हैं। )

First Published - June 10, 2025 | 5:20 PM IST

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