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ट्रंप टैरिफ और भारत के पास विकल्प: निर्यात को सुरक्षित रखें, घरेलू गतिविधियों को दुरुस्त करें

ट्रंप के टैरिफ से महंगाई और भारत के निर्यात पर दबाव बढ़ा है, इसलिए सब्सिडी और आयात शुल्क सुधार के विकल्प अपनाकर प्रतिस्पर्धा और आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है

Last Updated- October 03, 2025 | 9:24 PM IST
Donald Trump
अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप | फाइल फोटो

अमेरिका के खरीदारों को जल्द ही डॉनल्ड ट्रंप के आयात शुल्क (टैरिफ) का असर महसूस हो सकता है। अमेरिका में आयात किए जाने वाले उपभोक्ता सामान पर अधिक टैरिफ लगाए जाने से महंगाई बढ़ेगी। ऐसे में समय के साथ इसका असर अधिकांश अमेरिकी नागरिकों पर पड़ेगा और अगर मांग घटती है तब वहां आर्थिक विकास रुक सकता है। इसके अलावा, जब दूसरे सामान बनाने के लिए जरूरी कच्चे माल के रूप में इस्तेमाल होने वाले सामान की कीमतें बढ़ेंगी, तब अमेरिका में चीजों की लागत बढ़ने के साथ ही आखिरकार उनके दाम भी बढ़ जाएंगे।

इसके बावजूद, अमेरिका के घरेलू उत्पादक डॉनल्ड ट्रंप को राजनीतिक फायदा पहुंचाने के लिए खुश हैं क्योंकि यह वास्तव में उपभोक्ताओं की समस्या है। लेकिन उत्पादकों के लिए कम प्रतिस्पर्धा का लाभ मिलने की संभावनाएं बनेंगी।

हालांकि आयातित सामान की ज्यादा कीमतें वास्तव में घरेलू उत्पादन को बढ़ावा दे सकती हैं, पर यह साफ नहीं है कि इसमें कितना समय लगेगा। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान ओलिवेट्टी ने अपने टाइपराइटर बनाने वाले कारखानों को सिर्फ तीन महीनों में इतालवी सेना के लिए मशीन गन बनाने के लिए बदल दिया था। लेकिन वह सब देशभक्ति की भावना और मुसोलिनी के आदेशों के तहत किया गया था। सवाल यह है कि क्या ट्रंप वास्तव में अमेरिकी विनिर्माताओं के बीच ऐसा ही उत्साह जगा सकते हैं?

रूस से कच्चा तेल आयात करने के कारण हमारे सभी निर्यात पर अमेरिका द्वारा 25 प्रतिशत का अतिरिक्त आयात शुल्क लगाना भारत के लिए एक बड़ा बोझ साबित हो रहा है। हम रूस से सालाना लगभग 60 करोड़ बैरल तेल आयात करते हैं। अगर हम ऐसा करना बंद कर दें और दूसरे देश भी रूस से तेल लेना शुरू नहीं करते हैं, तब अंतरराष्ट्रीय तेल बाजारों में अन्य तेल आपूर्तिकर्ताओं की मांग बढ़ जाएगी।

चूंकि भारत तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक है, ऐसे में कच्चे तेल की कीमतें बहुत अधिक बढ़ जाएंगी। रूस से आने वाले तेल को अगर अंतरराष्ट्रीय बाजार में लाया जाता है, तब इससे वैश्विक बाजार में तेल की मांग 4 से 5 प्रतिशत तक बढ़ जाएगी। मान लीजिए कि दाम 20 डॉलर प्रति बैरल बढ़ जाते हैं और भारत हर साल लगभग 168 करोड़ बैरल कच्चा तेल आयात करता है। ऐसे में, हमारे सालाना तेल आयात का बिल 34 अरब डॉलर तक बढ़ जाएगा।

अभी हमें रूस के कच्चे तेल पर 2 डॉलर प्रति बैरल का फायदा मिल रहा है। अगर हम वह फायदा खो देते हैं, तब भारत पर 1.2 अरब डॉलर का अतिरिक्त बोझ पड़ सकता है। इसी तरह ट्रंप द्वारा रूस से तेल आयात को लेकर दबाव डालने के विरोध में उसकी दादागीरी के आगे न झुकने के अलावा एक आर्थिक तर्क भी है।

सवाल यह है कि अमेरिका को इसका क्या फायदा होगा? वर्ष 2023 में, अमेरिका का पेट्रोलियम उत्पादों का शुद्ध निर्यात रोजाना 16.4 करोड़ बैरल था, यानी सालाना लगभग 60 करोड़ बैरल। तेल की कीमत में 20 डॉलर प्रति बैरल की वृद्धि होने पर, इसे सालाना 12 अरब डॉलर का अतिरिक्त राजस्व मिलेगा। इसीलिए अमेरिका के नजरिये से ट्रंप के टैरिफ कुछ हद तक सही लग सकते हैं।

नीतिगत विकल्प

भारत को अपने निर्यात की रक्षा के लिए कदम उठाने चाहिए। उदाहरण के तौर पर बासमती चावल का थोक मूल्य लगभग 50 रुपये प्रति किलोग्राम है जबकि अमेरिका में इसकी कीमत पहुंचने के बाद लगभग 100 रुपये प्रति किलोग्राम हो जाती है। 50 प्रतिशत के आयात शुल्क के साथ इसी चावल की वहां पहुंचने पर इसकी कीमत बढ़कर लगभग 150 रुपये प्रति किलोग्राम हो जाएगी। इसकी तुलना में, पाकिस्तान से आने वाले बासमती पर सिर्फ 19 प्रतिशत आयात शुल्क लगेगा, जिससे उसकी लागत लगभग 120 रुपये प्रति किलोग्राम होगी। अभी, अमेरिका के वॉलमार्ट में इसकी खुदरा कीमत लगभग 400 रुपये प्रति किलोग्राम है।

भारतीय निर्यातकों को लगभग 20 किलोग्राम की सब्सिडी (आर्थिक सहायता) देने से हमारा बासमती, अमेरिका के बाजार में पाकिस्तान के मुकाबले में सस्ता हो जाएगा। हम लगभग 23.5 करोड़ किलो चावल निर्यात कर रहे हैं। 20-25 रुपये प्रति किलोग्राम की सब्सिडी देने पर सरकार को लगभग 5 करोड़ डॉलर का खर्च आएगा। सब्सिडी कई तरीकों से दी जा सकती है, जैसे वास्तविक निर्यात शिपमेंट पर नकद हस्तांतरण, कर्ज को आगे बढ़ाना और अमेरिका को किए गए निर्यात से हुई कमाई पर कर में छूट देना आदि।

हालांकि मुश्किल बात यह है कि अगर एक बार सब्सिडी दे दी जाए तो उसे वापस लेना अक्सर मुश्किल होता है। इसलिए, इसे ऐसे रूप में होना चाहिए जो अपने आप ही खत्म हो जाए। एक विकल्प यह है कि सब्सिडी की राशि को, अमेरिका के अन्य प्रमुख निर्यातकों की तुलना में, भारत पर लगाए गए अतिरिक्त टैरिफ से जोड़ा जाए।

झींगा मछली के निर्यात के लिए भी इसी तरह की सब्सिडी दी जा सकती है ताकि किसानों और मछुआरों को सुरक्षा मिल सके। अंतरराष्ट्रीय बाजार से तेल खरीदने के बजाय इस तरह की सब्सिडी को रूस से तेल आयात करके होने वाली बचत से वित्तीय सहायता दी जा सकती है।

इसके साथ ही, बड़े पैमाने पर विनिर्माण क्षेत्र के लिए आयात शुल्क को कम किया जाना चाहिए। टैरिफ और आयात प्रतिबंधों को शुरू में नए उद्योगों की रक्षा के लिए पेश किया गया था। हालांकि, जैसा कि बताया गया है कि एक बार लागू होने के बाद इन्हें हटाना मुश्किल था। इसका परिणाम यह हुआ कि यह पुराने उद्योगों के साथ भी बना रहा।

उद्योगों के लिए लॉजिस्टिक्स की लागत कम हुई है, लेकिन अब भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। हालांकि सरकार ज्यादा कर जमा कर रही है लेकिन यह ईमानदार करदाताओं को इतना परेशान करती है कि वे हतोत्साहित हो जाते हैं।

जब मेरी कंसल्टिंग से जुड़ी आमदनी 20 लाख रुपये से ज्यादा हो गई थी, तब मैंने वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) नंबर लिया था। हालांकि मुझे जीएसटी रिटर्न दाखिल करने के लिए बार-बार याद दिलाया जाता रहा। आखिरकार परेशान होकर मैंने साल में 20 लाख रुपये से अधिक के कंसल्टिंग असाइनमेंट छोड़ देने का फैसला किया और अपना जीएसटी नंबर वापस कर दिया।

टीमलीज रेगटेक की एक रिपोर्ट बताती है कि एक सौर ऊर्जा संयंत्र को सालाना कुल 2,735 कामों पर अमल करना पड़ता है जिनमें से 83 में जेल की सजा का प्रावधान है। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि कई उद्योगपति भारत के बजाय, विदेश में निवेश करना पसंद करते हैं। हमें ट्रंप के टैरिफ को अपनी व्यवस्था को सुधारने के एक अवसर के तौर पर देखना चाहिए।

(लेखक इंटीग्रेटेड रिसर्च ऐंड एक्शन फॉर डेवलपमेंट (आईआरएडी) के चेयरमैन हैं )     

First Published - October 3, 2025 | 9:24 PM IST

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