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सरकारी बैंकों के प्रमुखों की सेवानिवृत्ति में पेच

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तमाल बंद्योपाध्याय
Last Updated- January 18, 2023 | 10:18 PM IST

वित्तीय सेवा संस्थान ब्यूरो ने शनिवार को बैंक ऑफ बड़ौदा के मुख्य कार्याधिकारी (सीईओ) एवं प्रबंध निदेशक (एमडी) संजीव चड्ढा और बैंक ऑफ इंडिया के प्रमुख अतनु कुमार दास के उत्तराधिकारी के लिए सिफारिशें कीं। दोनों को तीन-तीन साल के कार्यकाल के बाद इस महीने के अंत में सेवानिवृत्त होना था। इस घोषणा के कुछ घंटे के भीतर वित्त मंत्रालय के वित्तीय सेवा विभाग ने देर शाम एक विज्ञप्ति जारी की जिसके मुताबिक चड्ढा का कार्यकाल 30 जून तक के लिए बढ़ा दिया गया है जब वह 60 वर्ष के होंगे। दास को भी 60 वर्ष होने में कुछ महीने ही बाकी हैं।

पहले भी राष्ट्रीयकृत बैंकों के कम से कम दो प्रमुख अपना कार्यकाल पूरा करने के बाद सेवानिवृत्त हुए थे, लेकिन उन्हें 60 वर्ष पूरा होने के पहले ही सेवानिवृत होना पड़ा। इनमें केआर कामत (जिन्होंने पहले इलाहाबाद बैंक का नेतृत्व किया जिसका विलय 2021 में इंडियन बैंक में हो गया और फिर पंजाब नैशनल बैंक का नेतृत्व किया) और राजीव ऋषि (सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया) शामिल हैं।

नवंबर 2022 में वित्त मंत्रालय की एक अधिसूचना में कहा गया था कि राष्ट्रीयकृत बैंकों में शीर्ष स्तर की नियुक्ति शुरुआत में पांच साल तक के लिए हो सकती है और बाद में इसे पांच साल तक के लिए बढ़ाया जा सकता है। हालांकि शीर्ष पद के कार्यकाल के लिए प्रचलित मानदंड तीन साल या 60 वर्ष की आयु ही लागू थी यानी इनमें से जो भी पहले हो। पूर्णकालिक निदेशकों का कार्यकाल बढ़ाने की तात्कालिक वजह राष्ट्रीयकृत बैंकों में अपेक्षाकृत कई युवा कार्यकारी निदेशकों (ईडी) की उपस्थिति हो सकती है। इनमें से कुछ 50 से 55 के दायरे में हैं और कम से कम एक की उम्र 50 के करीब पहुंच रही है।

दिक्कत की बात यह है कि भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के अलावा कई अन्य बड़े और मजबूत सरकारी बैंकों का एकीकरण करने के सरकार के अभियान के बाद ऐसे बैंकों की संख्या घटकर महज 11 रह गई है, ऐसे में शीर्ष स्तर पर बहुत अधिक पद नहीं हैं। इसका मतलब यह है कि कई ईडी को 55 साल के करीब भी सेवानिवृत्त होना पड़ सकता है।

ऐसे में कार्यकाल के विस्तार से यह सुनिश्चित होगा कि वे 60 वर्ष की उम्र या 60 के करीब होने तक बैंक से जुड़े रहें। पिछले हफ्ते, एसबीआई के एमडी में से एक, चल्ला श्रीनिवासुलु शेट्टी के कार्यकाल में दो साल का विस्तार और कर दिया गया जिन्हें शुरुआत में तीन साल के लिए नियुक्त किया गया था और उनका कार्यकाल 20 जनवरी, 2020 से प्रभावी हुआ था।

नियमों के अनुसार, एसबीआई में पूर्णकालिक निदेशकों के कार्यकाल की सीमा पांच साल तक के लिए तय की गई है चाहे वे किसी भी उम्र के क्यों न हों। राष्ट्रीयकृत बैंकों के प्रमुखों के उलट, एसबीआई के चेयरमैन 60 वर्ष की आयु के बाद भी शीर्ष पद पर बने रह सकते हैं। आमतौर पर यह कार्यकाल तीन साल के लिए होता है। हालांकि, कुछ अपवाद भी हैं।

उदाहरण के तौर पर, अरुंधती भट्टाचार्य को उनके तीन साल के कार्यकाल के बाद एक साल का विस्तार मिला था और ओपी भट्ट को एक बार में ही करीब पांच साल का कार्यकाल मिल गया था। राष्ट्रीयकृत बैंकों के पूर्णकालिक निदेशकों का कार्यकाल 10 साल तक बढ़ाना पहला कदम है।

एसबीआई की तरह 60 साल से अधिक उम्र के लोगों को भी पद पर बने रहने की अनुमति दी जानी चाहिए। आखिर ऐसा क्यों नहीं हो? विशेषतौर पर तब जब किसी निजी बैंक के सीईओ का कार्यकाल 70 वर्ष तक होता है।

बैंकों के एकीकरण/विलय की प्रक्रिया में कुछ अपवादों को छोड़ दिया जाए तब राष्ट्रीयकृत बैंकों के प्रमुखों को आमतौर पर शीर्ष पद पर दो साल से अधिक समय बिताने का मौका नहीं मिलता था। यह अवधि एक वर्ष जितनी छोटी भी हो सकती है। शीर्ष पद अक्सर कई महीने तक खाली रहता था।

उदाहरण के तौर पर, पीएस जयकुमार के बैंक ऑफ बड़ौदा के प्रमुख के रूप में पद छोड़ने के बाद, उनके उत्तराधिकारी चड्ढा ने 100 दिनों के बाद पदभार संभाला। यह तब हुआ जब बैंक ऑफ बड़ौदा दो बैंकों के अपने साथ अपने विलय का प्रबंधन कर रहा था जो भारतीय बैंकों में अपनी तरह का पहला प्रयोग था।

एक लंबा कार्यकाल इस वजह से भी आवश्यक होता है क्योंकि अगर किसी व्यक्ति का ताल्लुक समान बैंक से नहीं है, जैसा कि अक्सर होता है तब उस जगह के माहौल में खुद को ढालने में वक्त लगता है क्योंकि हर बैंक अलग होता है। इसके अलावा, बैंक का आकार भी मायने रखता है। छोटे बैंक के एक अधिकारी के लिए एक बड़ा बैंक चलाना आसान नहीं होता।

संयोग से, किसी भी बैंक प्रमुख को अक्षमता के लिए पद से हटाया नहीं गया है। बेशक, बैंक प्रमुखों को भ्रष्टाचार के मामले में पद से हटा दिया जाता है, हालांकि इसके उदाहरण भी दुर्लभ हैं। सबसे खराब स्थिति में यही होता है कि अक्षम बैंकर को दूसरा कार्यकाल नहीं मिलता है। आदर्श रूप से, कुशल बैंक प्रमुखों को 60 से अधिक लंबा कार्यकाल दिया जाना चाहिए और अक्षम अधिकारियों को बाहर का रास्ता दिखाया जाना चाहिए।

इसके अलावा, अखिल भारतीय वित्तीय संस्थानों जैसे कि भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (सिडबी), राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड), भारतीय निर्यात-आयात बैंक (एक्जिम बैंक), आदि के पूर्णकालिक निदेशकों की नियुक्ति के मानदंडों में कोई एकरूपता नहीं है। उनका कार्यकाल भी एकसमान नहीं है।

जून 2022 में नाबार्ड अध्यक्ष पद के विज्ञापन में निदेशक मंडल (बोर्ड) के स्तर से कम से कम तीन साल का अनुभव (मुख्य महाप्रबंधक) निर्धारित किया गया था और कट-ऑफ आयु 57 रखी गई थी। लेकिन अगस्त 2020 में सिडबी प्रमुख के पद के लिए विज्ञापन में केवल दो साल के ऐसे अनुभव की मांग की गई थी। एक्जिम बैंक के पूर्णकालिक निदेशकों के लिए, पिछले तीन विज्ञापनों में भी दो साल के अनुभव की मांग की गई है।

इसके अलावा, सिडबी प्रमुख या उप प्रबंध निदेशक बनने के लिए, आवश्यक अनुभव समान है जो दो साल (बोर्ड स्तर से नीचे) तक है। हालांकि इसकी जिम्मेदारियां बहुत अलग होती हैं। केंद्र और राज्य सरकारों के साथ काम करने वाले सिविल सेवा अधिकारी भी सिडबी के पूर्णकालिक निदेशक के पद के लिए आवेदन कर सकते हैं, लेकिन वे नाबार्ड में उप प्रबंध निदेशक के पदों के लिए पात्र नहीं हैं, जो मूल रूप से कृषि क्षेत्र के लिए फंडिंग करता है।

भले ही ऐसे संस्थानों के वरिष्ठ अधिकारियों को कृषि, निर्यात और सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्यमों की फंडिंग में विशेषज्ञता हासिल हो और ये सभी वाणिज्यिक बैंकों के लिए तथाकथित रूप से प्राथमिकता वाले क्षेत्र का हिस्सा हैं लेकिन वे बैंक में ईडी के पद के लिए आवेदन नहीं कर सकते हैं। लेकिन वरिष्ठ बैंकर अखिल भारतीय स्तर के वित्तीय संस्थानों में ऐसे पदों के लिए पात्र हैं।

कुछ शर्तों में ढील तभी दी जाती है जब पर्याप्त उम्मीदवार नहीं मिल रहे होते हैं। इस प्रक्रिया में, कीमती वक्त भी बरबाद होता है और कई महत्त्वपूर्ण पद लंबे समय तक खाली रहते हैं, जिसकी वजह से संस्थान अक्सर दिशाहीन हो जाते हैं। अखिल भारतीय वित्तीय संस्थानों में शीर्ष पदों के लिए योग्यता मानदंड, युवा और योग्य उम्मीदवारों को प्रोत्साहित करने के लिए तैयार किया जाना चाहिए। यह समय की मांग है।

पिछले एक दशक में, सरकारी बैंकों में पदोन्नति की प्रक्रिया तेज हो गई है, जिससे अधिकारी 40 से 45 साल की उम्र में ही महाप्रबंधक और 50 से 55 साल की उम्र में ईडी बन गए हैं। हमें प्रतिभाओं को आकर्षित करने के लिए बैंकों सहित पूरे वित्तीय क्षेत्र के लिए एक व्यापक प्रोत्साहन नीति की आवश्यकता है क्योंकि इस वक्त इस क्षेत्र में ऐसी प्रतिभाओं की काफी कमी है।

(लेखक जन स्मॉल फाइनैंस बैंक लिमिटेड के वरिष्ठ सलाहकार और लेखक हैं)

First Published : January 18, 2023 | 10:18 PM IST