केंद्र सरकार ने नीति आयोग से कहा है कि वह राष्ट्रीय राजमार्गों पर टोल दरों के पीछे के बुनियादी सिद्धांत पर नए सिरे से विचार करे। यह पिछले 17 साल में पहली बार ऐसी समीक्षा होगी। इस अध्ययन में कई मानकों पर दोबारा विचार किया जाएगा जिनमें वाहन परिचालन लागत, क्षति कारक और भुगतान करने की इच्छा शक्ति आदि शामिल हैं।
अध्ययन में बुनियादी दर का आधार तय करने वाले सिद्धांतों पर दोबारा विचार किया जाएगा तथा आधुनिक राजमार्गों की हकीकतों के साथ उनके तालमेल को परखा जाएगा। राष्ट्रीय राजमार्ग शुल्क (दरों का निर्धारण एवं संग्रह) नियम, 2008 करीब दो दशक से देश में टोल दरों के निर्धारण का आधार रहा है।
इन नियमों को उस समय तैयार किया गया था जब राजमार्गों का नेटवर्क अपेक्षाकृत कम था, सड़कों की गुणवत्ता में एकरूपता कम थी और तकनीक भी इतनी प्रभावी नहीं थी। बहरहाल, टोल दरों को हर वर्ष यांत्रिक रूप से समायोजित किया जाता है, जिसमें एक नियत 3 फीसदी वृद्धि के साथ थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) के आधार पर समायोजन शामिल होता है। चाहे सड़क की स्थिति, भीड़-भाड़ का स्तर, या सेवा की गुणवत्ता कुछ भी हो।
संसद की लोक लेखा समिति (पीएसी) की एक रिपोर्ट ने पिछले वर्ष इस मुद्दे को उजागर किया और वर्तमान टोल प्रणाली को जड़ और पुरानी करार देते हुए एक नई स्वतंत्र शुल्क प्राधिकरण की स्थापना की सिफारिश की।
देश में राजमार्ग से हासिल राजस्व में सड़क नेटवर्क के विस्तार के साथ वृद्धि हुई है। इकरा एनालिटिक्स के मुताबिक जनवरी से सितंबर 2025 के बीच टोल राजस्व में पिछले वर्ष की समान अवधि की तुलना में 16 फीसदी का इजाफा हुआ और यह 42, 474 करोड़ रुपये से बढ़कर 49,193 करोड़ रुपये हो गया। राष्ट्रीय राजमार्ग नेटवर्क में व्यापक विस्तार हुआ है और बीते एक दशक में यह करीब 60 फीसदी बढ़कर 2024 में 1,46,195 किलोमीटर हो गया है।
ऐसे में टोल से होने वाली प्राप्तियां और परिसंपत्ति मुद्रीकरण भी भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण यानी एनएचएआई के लिए फंडिंग का अहम जरिया बन चुका है। प्राधिकरण ने टोल-ऑपरेट-ट्रांसफर (टीओटी) और इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट मॉडलों के माध्यम से चालू सड़क खंडों के मुद्रीकरण पर लगातार अधिक निर्भरता दिखाई है, जिससे निजी कंपनियों को तैयार सड़क अवसंरचना पट्टे पर लेने और एकमुश्त भुगतान करने का मौका मिलता है।
इस ढांचे के तहत, एनएचएआई ने वित्त वर्ष 2022 से 2025 तक के लिए नीति आयोग की राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन (एनएमपी) के सड़क क्षेत्र लक्ष्य का 71 फीसदी हासिल कर लिया है, जिसमें 1.6 लाख करोड़ रुपये के लक्ष्य के मुकाबले 1.15 लाख करोड़ रुपये की राशि जुटाई गई है। कुल मिलाकर, शुरुआत से अब तक कुल मुद्रीकरण 1.4 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच चुका है, जो भारत में राजमार्ग के लिए धन जुटाने में उपयोगकर्ता शुल्क और निजी भागीदारी की बढ़ती भूमिका को दर्शाता है।
इसके बावजूद सड़कों की हालत और टोल की निरंतरता में असमानता बनी हुई है। एनएचएआई का नया सर्वे व्हीकल इनीशिएटिव का उद्देश्य सड़क गुणवत्ता, सतह की खामियों आदि पर एक विश्वसनीय डेटा बेस तैयार करना है जो अधूरी या खराब रखरखाव वाली सड़कों पर पूरा टोल वसूल किए जाने को लेकर बढ़ती जन शिकायतों की प्रतिक्रिया है। ऐसे में प्रस्तावित ढांचा समयानुकूल और आवश्यक है। इसमें टोल दरों को आवागमन के प्रवाह, रखरखाव मानकों और सेवा गुणवत्ता जैसे मापे जाने योग्य मानकों से जोड़ा जाना चाहिए। ताकि वित्तीय जरूरतों और उपभोक्ताओं के बीच संतुलन कायम हो सके।
भविष्य में हमें एक प्रदर्शन आधारित टोल मॉडल अपनाना चाहिए जिसमें दरें केवल मुद्रास्फीति पर नहीं बल्कि सड़क की गुणवत्ता, भीड़ और सुरक्षा ऑडिट तथा रखरखाव स्कोर जैसे मापे जा सकने लायक संकेतकों पर आधारित हों। हमारा लक्ष्य केवल राजस्व बढ़ाना नहीं बल्कि एक ऐसी पारदर्शी, पूर्वानुमान योग्य और प्रदर्शन आधारित प्रणाली तैयार करना होना चाहिए जो खर्च किए गए हर रुपये की वाजिब कीमत तय करे। ऐसा करके भारत एक ऐसी टोल व्यवस्था की ओर बढ़ सकता है जो केवल शुल्क वसूलने वाली न हो बल्कि जन विश्वास अर्जित करने वाली भी हो।