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नतीजे कर रहे हैरान मगर कहीं न कहीं जनता भी थी परेशान…

नतीजे आने के बाद नई सरकार के गठन को लेकर तस्वीर साफ हो गई है मगर गठबंधन की राजनीति में सियासी उठापटक की आशंका तो बनी ही रहती है।

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निवेदिता मुखर्जी   
Last Updated- June 09, 2024 | 9:05 PM IST

एक पुरानी कहावत है कि यात्रा का भी उतना ही महत्त्व होता है जितना मंजिल पाने का। वर्ष 2024 के लोक सभा चुनाव (Lok Sabha Elections) और उसके हतप्रभ करने वाले परिणामों के साथ भी लगभग यही कहावत चरितार्थ हो रही है।

नतीजे आने के बाद नई सरकार के गठन को लेकर तस्वीर साफ हो गई है मगर गठबंधन की राजनीति में सियासी उठापटक की आशंका तो बनी ही रहती है।

जब मतगणना चल रही थी तो रोमांच चरम पर था और इंडिया भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) को कड़ी टक्कर देता दिख रहा था। कुछ लोगों ने कहा कि दोनों गठबंधनों में कांटे की टक्कर है जबकि कुछ लोगों ने अनुमान जताया कि यह मुकाबला आखिरी दम तक चलेगा।

इसमें कोई शक नहीं कि नतीजे सबके लिए चौंकाने वाले थे। मगर पिछले 45 दिन से समाचारपत्रों में प्रकाशित चुनाव से जुड़ी खबरों का विश्लेषण करने और देश के विभिन्न हिस्सों में मतदाताओं की नब्ज टटोलने गए हमारे सहकर्मियों ने जो देखा उनसे नतीजों को समझने में मदद मिली। हालांकि, कुछ बातें अब भी स्पष्ट नहीं हुई हैं।

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सबसे पहले गुजरात की बात करते हैं। वर्ष 2014 और 2019 में हुए लोक सभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी (BJP) को सभी 26 सीट पर जीत मिली थी। मगर 2024 में उसे बनासकांठा सीट पर हार का सामना करना पड़ा। राज्य के इस ग्रामीण जिले में दुग्ध उत्पादन प्रमुख व्यवसाय रहा है। इस पर कांग्रेस की गेनीबेन ठाकोर ने भाजपा की रेखाबेन चौधरी को शिकस्त दी।

हमारे संवाददाताओं ने गुजरात के कई संसदीय क्षेत्रों में राजनीतिक हवा का रुख परखने के बाद अपनी रिपोर्ट में कहा था कि देश के अन्य हिस्सों की तरह ही रोजगार, महंगाई और ऊंचे कर वहां भी प्रमुख मुद्दे थे। इनके अलावा स्थानीय स्तर पर क्षत्रिय एवं राजपूत से जुड़े जातिगत मुद्दे भी चुनाव पर असर डाल रहे थे। राज्य के राजकोट और सौराष्ट्र क्षेत्रों में क्षत्रियों के आंदोलन की धमक राज्य के उत्तरी हिस्सों बनासकांठा और पाटन में भी दिखी जहां इस समुदाय की अच्छी पकड़ है।

चुनाव के नजदीक आते ही यह चर्चा गर्म हो गई कि कुछ स्थानीय मुद्दों के कारण भाजपा अपने मजबूत गढ़ गुजरात में एक या दो सीट पर हार का मुंह देख सकती है। ये मुद्दे क्षत्रिय, पाटीदार और पटेल समुदायों से जुड़े थे। मगर ये मुद्दे चुनावी घमासान से जुड़ी विषयों में कहीं न कहीं खो गए।

गुजरात को लेकर एक बात जिस पर ध्यान नहीं दिया गया कि मुख्य सौराष्ट्र क्षेत्र में भाजपा ने जबरदस्त जीत दर्ज की। यहां केंद्रीय मंत्री पुरुषोत्तम रूपाला ने राजपूतों पर एक टिप्पणी कर दी जिससे उन्हें क्षत्रिय समुदाय के गुस्से का सामना करना पड़ा। रूपाला ने अपनी इस टिप्पणी के लिए सार्वजनिक रूप से क्षमा भी मांगी।

रूपाला ने गुजरात में चुनाव से ठीक एक दिन पहले कहा था कि क्षत्रिय मुद्दे से चुनाव नतीजे प्रभावित नहीं होंगे। मंगलवार को आए नतीजे में यह बात दिखी भी और वह भारी मतों से विजयी हुए।

उत्तर प्रदेश ने बहुमत पाने की भाजपा की उम्मीदों पर पानी फेर दिया, भले ही राजग मशक्कत से ही सही मगर सरकार बनाने की स्थिति में आ गया। चुनावी मैदान से आ रही खबरों में ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी, मुद्रास्फीति आदि स्पष्ट मुद्दे थे।

अयोध्या में मंदिर बनाने के भाजपा को फैजाबाद सहित पूरे राज्य में राजनीतिक लाभ मिलने की उम्मीद थी मगर वहां जमीनी सच्चाई कुछ और थी। लोगों को रोजमर्रा की जरूरतें पूरी करने में संघर्ष करना पड़ रहा था।

फैजाबाद सीट पर भाजपा के उम्मीदवार को समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार से शिकस्त मिली। ऐसा लगा कि राम मंदिर बनने के बाद धार्मिक भावना प्रबल हो गई मगर आर्थिक मुद्दा कहीं न कहीं इस पर भारी पड़ा।

एक दूसरे संवाददाता ने जब अयोध्या में स्थानीय लोगों से बात की तो यह बात छन कर आई कि वहां के लोगों में कहीं न कहीं गुस्सा था। स्थानीय लोगों के अनुसार अयोध्या को एक पर्यटन स्थल बनाने और इसे विश्व के नक्शे पर लाने के चक्कर में यहां कई चीजें महंगी हो गईं और गरीब लोगों की जद से बाहर हो गईं। अयोध्या में व्यावसायिक रियल एस्टेट जोर पकड़ने लगा जिससे लोगों का जीवन और दुष्कर हो गया। यह अलग बात है कि इस प्रक्रिया में रोजगार के अवसर भी सामने आए होंगे।

मुंबई की बात करें तो वहां भाजपा को केवल एक सीट पर जीत मिली। इसके उम्मीदवार पीयूष गोयल उत्तर मुंबई सीट से विजयी रहे। मुंबई महानगर की बाकी पांच सीट दूसरे दलों को मिलीं। उत्तर मुंबई के अलावा मुंबई उत्तर पूर्व और मुंबई दक्षिण सहित तीन अन्य क्षेत्रों में बॉलीवुड कलाकार, उद्योग जगत की बड़ी हस्तियां और छोटे एवं मझोले उद्यमों से जुड़े लोग रहते हैं। क्या ये लोग मांग की खस्ता हालत और उद्योगों द्वारा लचर निवेश के बारे में सोच रहे थे या कोई दूसरा कारण था?

भारत के कुछ अन्य हिस्सों में खासकर उत्तरी भाग में लघु एवं मझोले उद्योग अब भी नोटबंदी से हुए नुकसान से पूरी तरह उबर नहीं पाए हैं। इसके अलावा लोग वस्तु एवं सेवा कर (GST) और कोविड-19 के असर भी परेशान करते रहे हैं। पंजाब में विनिर्माण इकाइयों की जरूरत और राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (NGT) के सख्त नियम कारोबारों के लिए बाधा बताए जा रहे हैं।

दिल्ली में भी मतदाताओं ने ऐसी ही आर्थिक समस्याओं का जिक्र किया था मगर भाजपा यहां सातों सीट पर कब्जा जमाने में सफल रही। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने जमानत पर बाहर आकर कुछ दिनों तक जमकर चुनाव प्रचार किया मगर इससे उनकी पार्टी की किस्मत नहीं बदली। आम आदमी पार्टी (AAP) और कांग्रेस दोनों ही के मत प्रतिशत बढ़े हैं मगर ये सीट में तब्दील नहीं हो सके।

हमने लोक सभा चुनाव में मतदाताओं का मूड टटोलने की शुरुआत रेल यात्राओं के साथ की थी। इन यात्राओं के दौरान हमारे संवाददाताओं ने देश के एक दूसरे से दूसरे हिस्से तक लोगों के जीवन से जुड़े वास्तविक मुद्दों को समझने और उन्हें सामने लाने की कोशिश की। इन यात्राओं के दौरान लोगों ने रोजगार एवं श्रम से जुड़ी कई आर्थिक मुद्दों का भी जिक्र किया।

तो क्या 2024 का लोक सभा चुनाव राजनीति के बजाय आर्थिक मुद्दों के इर्द-गिर्द अधिक घूम रहा था? कम से कम चुनाव के दौरान नजर आईं बातें जीवन एवं जीविका से जुड़ी थीं, हां बाकी विषयों पर फिलहाल स्पष्ट रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता।

First Published : June 9, 2024 | 8:59 PM IST