प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जॉर्डन, इथियोपिया और ओमान की यात्रा पश्चिम एशिया और अफ्रीका के साथ भारत के ऐतिहासिक व्यापारिक और सुरक्षा संबंधों को और मजबूती देने की दिशा में एक छोटा मगर महत्त्वपूर्ण कदम है। प्रधानमंत्री की यह यात्रा ऐसे समय में हुई है जब अमेरिका के कदमों से उत्पन्न भू-राजनीतिक अनिश्चितताएं इस क्षेत्र और वैश्विक व्यापार दोनों के लिए चिंता का सबब हैं।
इन तीन देशों की यात्रा का जितना महत्त्व ऊपरी तौर पर दिख रहा है (जैसे इथियोपिया के प्रधानमंत्री और जॉर्डन के युवराज द्वारा प्रधानमंत्री के प्रति व्यक्त सम्मान) उतना ही उन समझौतों का भी है जिन पर हस्ताक्षर हुए। इनमें ओमान और भारत के बीच हुआ मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) एक महत्त्वपूर्ण कदम है। यह समझौता ऐसे मौके पर हुआ है जब दोनों देश राजनयिक संबंध स्थापित होने के 70 वर्ष पूरे होने का जश्न मना रहे हैं।
यह व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता (सीईपीए) भारत और किसी पश्चिम एशियाई देश के बीच हुआ दूसरा एफटीए है। पहला वर्ष 2022 में संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के साथ हुआ था। मगर ओमान के साथ यह सीईपीए वहां के बाजार में भारत को लगभग पूर्ण रूप से शुल्क-मुक्त पहुंच देता है और इसका दायरा एफटीए से कहीं अधिक है क्योंकि तत्काल 97.96 फीसदी शुल्क समाप्त हो जाएंगे।
इस बीच, भारत ने भी मूल्य के लिहाज से ओमान से लगभग 95 फीसदी आयात उदार बनाकर अपनी तरफ से भी सकारात्मक पहल की है। हालांकि, ओमान इस क्षेत्र में भारत के सबसे बड़े व्यापार साझेदारों में से एक नहीं है (यूएई के 100 अरब डॉलर और सऊदी अरब के 42 अरब की तुलना में कम है) मगर सीईपीए आर्थिक जुड़ाव और विस्तार के लिए बड़ी क्षमता की गुंजाइश तैयार करता है।
प्रमुख सेवा क्षेत्रों में भारतीय कंपनियों द्वारा 100 फीसदी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का प्रावधान पश्चिम एशिया और अफ्रीका के सेवा क्षेत्र में भारत की पारंपरिक उपस्थिति को और धार देगा। भारतीय पेशेवरों के आने-जाने के लिए एक उदार गतिशीलता ढांचा भी अहम है। ओमान ने भारत से कच्चे संगमरमर के निर्यात पर प्रतिबंध हटाने पर भी सहमति जताई है।
भारत के लिहाज से यह भी एक अहम प्रगति है क्योंकि इससे उसे तुर्किये पर अपनी निर्भरता कम करने में मदद मिलेगी। भारत इसे भी एक अहम भू-रणनीतिक लाभ के रूप में देख सकता है। तुर्किये द्वारा पाकिस्तान को समर्थन और जम्मू-कश्मीर पर भारतीय नीति की आलोचना के बाद भारत के साथ उसके संबंध खराब हो गए हैं।
प्रधानमंत्री अपनी तीन देशों की यात्रा के पहले चरण में जॉर्डन पहुंचे जो प्रधानमंत्री की पहली पूर्ण द्विपक्षीय यात्रा थी। जॉर्डन के साथ कई सहयोग समझौते हुए जिनसे आपसी आर्थिक हितों में निहित पुरानी मित्रता को मजबूती मिली है। भारत, जॉर्डन का तीसरा सबसे बड़ा व्यापार साझेदार है और लंबे समय से उर्वरक आपूर्तिकर्ता के रूप में एक अहम भूमिका निभाता रहा है।
इथियोपिया में पारस्परिक रूप से मजबूत द्विपक्षीय संबंधों के जरिये रणनीतिक लिहाज से अहम समझे जाने वाले अफ्रीका के इस देश में निवेश बढ़ाने के अवसर पर जोर दिया गया। इथियोपिया में लगभग 675 भारतीय कंपनियां पंजीकृत हैं और उन्होंने मुख्य रूप से कपड़ा और दवा क्षेत्रों में 6.5 अरब डॉलर का निवेश किया है। मगर चीन की तुलना में भारत काफी पीछे चल रहा है। भारत, इथियोपिया में एफडीआई का तीसरा सबसे बड़ा स्रोत है। मगर चीन और तुर्किये के इथियोपिया के साथ कहीं अधिक व्यापक व्यापार, सुरक्षा और सैन्य संबंध हैं। इसे देखते हुए भारत को सहयोग के दायरे और इसकी गहराई पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है।
ऐसा करना भारत के लिए इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि वह दुनिया के आर्थिक रूप से कमजोर देशों (ग्लोबल साउथ) का नेतृत्व करना चाह रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसे लेकर भारत का रुख भी स्पष्ट कर चुके हैं। भारत ने जनवरी 2024 में ब्रिक्स समूह में इथियोपिया को बतौर सदस्य शामिल करने में प्रमुख भूमिका निभाई थी।
इथियोपिया की राजधानी अदीस अबाबा अफ्रीकी संघ (एयू) का मुख्यालय भी है जिसके साथ भारत-अफ्रीका फोरम शिखर सम्मेलन जल्द करने के लिए चर्चा चल रही है, जो पिछले एक दशक से अधर में लटका है। हाव-भाव और वास्तविकता दोनों लिहाज से तीन देशों की यह यात्रा इस क्षेत्र के साथ भारत के पारंपरिक संबंधों की एक रचनात्मक निरंतरता को दर्शाती है। मगर असली परीक्षा तो इस बात से होगी कि भारत इसका कितना लाभ उठा पाता है।