लार्सन ऐंड टुब्रो (एलऐंडटी) ग्रीन हाइड्रोजन को सबसे अहम श्रेणी के तौर पर देख रही है, क्योंकि इस क्षेत्र में वह अपनी लगातार मौजूदगी बढ़ा रही है। बड़े स्तर वाला बैटरी स्टोरेज और पारेषण एवं वितरण (टीऐंडडी) कारोबार कंपनी के बिजली उत्पादन व्यवसाय के लिए वृद्धि के प्रमुख संचालक बने हुए हैं।
एलऐंडटी के पूर्णकालिक निदेशक और वरिष्ठ कार्यकारी उपाध्यक्ष (यूटिलिटीज) टी माधव दास ने कहा कि ग्रीन हाइड्रोजन एलऐंडटी के लिए सबसे अहम श्रेणी है। उन्होंने बिजनेस स्टैंडर्ड के साथ बातचीत में कहा, ‘अपने ऊर्जा पोर्टफोलियो के तहत हमने एलऐंडटी एनर्जी ग्रीन टेक लिमिटेड नाम से अलग कंपनी बनाई है। हम परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। लेकिन हम ऐसा चरणबद्ध रूप से कर रहे हैं। हम खुद को एक बार में फैलाने की कोशिश नहीं कर रहे हैं। हमने पहले ही ऐसी दो से तीन परियोजनाएं ले चुके हैं जिन्हें हम पूरा करना चाहते हैं और देखना चाहते हैं कि उनसे क्या परिणाम मिलते हैं।’
दूसरी तरफ कंपनी ‘तेजी से बढ़ती’ टीऐंडडी श्रेणी के बीच सालाना 10 से 12 गीगावॉट के रिन्यूएबल ईपीसी ऑर्डर हासिल करने का लक्ष्य बना रही है। रिन्यूएबल ऑर्डर मिलने की दर पहले के 7 से 8 गीगावॉट से बढ़कर वित्त वर्ष 26 में अनुमानित 12 गीगावॉट हो चुकी है।
कंपनी का रिन्यूएबल ईपीसी पोर्टफोलियो 38 गीगावॉट है। वह सऊदी अरब और यूएई में बड़े स्तर वाली परियोजनाओं और 16 गीगावॉट प्रति घंटे वाली बैटरी प्रणाली परियोजना पर काम कर रही है। भारत में वह अलग-अलग स्थानों पर लगभग 600 मेगावॉट प्रति घंटा की बैटरी परियोजनाओं को अंजाम दे रही है।
एलऐंडटी हाई-वोल्टेज पारेषण में भी दिग्गज कंपनी है, जो भारत में 765 किलो वोल्टेज और 800 किलो वोल्टेज एचवीडीसी लाइनों तथा पश्चिमी एशिया में 400 किलो वोल्टेज तक की परियोजनाओं पर काम कर रही है। वह भारत में सामान्य रूप से हर वक्त ही 14 से 15 पारेषण और सबस्टेशन परियोजनाओं का संचालन करती है।
ग्रीन हाइड्रोजन श्रेणी में एलऐंडटी ने हजीरा में एक इलेक्ट्रोलाइजर विनिर्माण इकाई लगाई है और अपनी खुद की तकनीक विकसित करने के लिए फ्रांस की मैकफी के साथ गठजोड़ किया है। उसने कांडला में 1 मेगावॉट का इलेक्ट्रोलाइजर चालू किया है और अब इसका और विस्तार करने पर विचार कर रही है।
कंपनी एक ग्रीन हाइड्रोजन परियोजना के लिए इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन के साथ भी काम कर रही है। उसका मानना है कि स्वदेशीकरण से लागत कम करने में मदद मिलेगी। दास ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘बिजली की लागत कम होने की वजह से भी हम अपने खुद के इलेक्ट्रोलाइजर पर दांव लगा रहे हैं ताकि हम हाइड्रोजन को प्रतिस्पर्धी स्तरों के करीब ला सकें।’