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सरकार की क्रय शक्ति का लाभ उठाने की जरूरत

Government Purchasing: सरकार उपभोक्ता के रूप में भारतीय कंपनियों में नवाचार की संभावनाओं को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। बता रहे हैं अजय शंकर

Last Updated- February 28, 2024 | 11:17 PM IST
Unleashing govt's procurement power सरकार की क्रय शक्ति का लाभ उठाने की जरूरत

सरकार और उसकी एजेंसियां विभिन्न प्रकार की वस्तु एवं सेवाओं की बड़ी खरीदार रही हैं। उदाहरण के लिए सरकार रक्षा उपकरण की एक मात्र खरीदार है। सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम उत्पादन कार्यों के लिए आवश्यक सामग्री या कच्चा माल खरीदते हैं। इन उपक्रमों को खरीद प्रणाली का कड़ाई से अनुपालन करना पड़ता है।

यह प्रणाली दिनोदिन सख्त होती जा रही है और इस पर कड़ी निगरानी रखी जा रही है। आपूर्ति के लिए निविदा जारी कर बोलियां आमंत्रित की जाती हैं, परंतु इसके लिए विशेष नियम-शर्तें भी निर्धारित की जाती हैं। बोलियां लगाने से पूर्व ही संभावित बोलीदाताओं के लिए मानदंड तय कर दिए जाते हैं। सरकार उस बोलीदाता को अनुबंध देती है जो उसे अधिक अनुकूल दिखाई देती है। एक ही बोलीदाता सामने आने पर निविदा दोबारा जारी की जाती है।

परंतु, इस प्रक्रिया की कुछ निहित सीमाएं होती हैं। इन सीमाओं पर विचार कर उनमें आवश्यक सुधार की जरूरत है। आधुनिक औद्योगिक समाज में नवाचार तकनीक एवं उत्पाद लगातार सृजित हो रहे हैं।

जो तकनीक एवं उत्पाद उपभोक्ताओं की नजर में सर्वाधिक फायदेमंद होते हैं, वे बाजार में सफल रहते हैं। शुरू में नवाचार करने वाली कंपनी का बाजार में प्रभुत्व रहता है और नए प्रतिस्पर्द्धियों के आने में कुछ समय लग जाता है। हमारी सार्वजनिक खरीद प्रक्रिया में अकेले एक छत्र राज करने वाली आपूर्तिकर्ता से नई नवाचार तकनीक और उत्पाद खरीदने का कोई प्रावधान नहीं है।

आपसी बातचीत के आधार पर वस्तु एवं सेवाओं की खरीद की अनुमति नहीं है। इसका परिणाम यह हुआ है कि सरकार एवं इसकी एजेंसियां नई तकनीक नहीं खरीद पा रही हैं। हमें नए प्रतिस्पर्द्धियों के आने के लिए लंबा इंतजार करना पड़ता है।

कई कंपनियों के बाजार में उतरने के बाद ही निविदा जारी होती है। इसके पश्चात खरीद से संबंधित निर्णय लिए जाते हैं। नए एवं बेहतर उपाय तैयार किए जाने का निर्णय स्वयं में काफी महत्त्वपूर्ण है परंतु सार्वजनिक एजेंसियों में जोखिम से दूर रहने वाली संगठनात्मक संस्कृति में ये उपाय ना आजमाए जाएं तो ही अच्छा है।

इस बात की पूरी संभावना है कि भारतीय कंपनियों एवं स्टार्टअप इकाइयों के पास नवाचार की क्षमता मौजूद है और यह भी संभव है कि वे इस दिशा में काफी आगे निकल चुकी हैं। सरकार एवं इसकी एजेंसियां संभावित खरीदार हो सकती हैं।

परंतु इन नवाचारों के लिए बाजार में अवसर नहीं दिखाई पड़ रहे हैं। इसे दृष्टिगत रखते हुए यह सोच विकसित नहीं करने और अल्प मात्रा में उपस्थिति संसाधनों के इस्तेमाल से सफल उत्पाद तैयार नहीं करने का निर्णय ही उचित होगा। हालांकि, इसका नुकसान उत्पादक एवं उपभोक्ताओं के रूप में सरकारी एजेंसियों को होता है। देश में अब एक सक्षम स्टार्टअप तंत्र एवं इनक्यूबेशन केंद्र विकसित हो चुके हैं।

इनका उपयोग कर कम लागत के साथ नए एवं बेहतर उत्पाद तैयार किए जा सकते हैं। सरकार एजेंसियों को सफल आपूर्ति कर वैश्विक स्तर की कंपनियां खड़ी हो सकती हैं। परंतु इन कंपनियों को विदेशी बाजार में प्रवेश करने से पहले स्वदेशी बाजार में सफलता अर्जित करनी होगी।

इन बातों पर विचार करते हुए एक ऐसे समाधान की आवश्यकता नजर आ रही है जिसमें पारदर्शिता के प्रमुख सिद्धांतों एवं समान अवसर का ध्यान रखा जा सके। इस दिशा में आगे बढ़ने का एक जरिया यह है कि प्रत्येक संगठन के पास उन सभी इकाइयों से अवांछित पेशकश प्राप्त करने का विकल्प होना चाहिए जो नए उत्पाद विकसित कर चुकी हैं या करने की प्रक्रिया में हैं।

प्रस्ताव में इस बात का स्पष्ट उल्लेख होना चाहिए कि जिन उत्पादों की पेशकश की जा रही है उसे लेकर सारी बातें मसलन, इनकी खूबियां एवं कीमत पूरी तरह स्पष्ट होनी चाहिए। एक विशेषाधिकार प्राप्त समिति प्रत्येक छह महीने पर ऐसी पेशकशों पर विचार कर सकती है।

इस समिति में संगठन से बाहर के भी विशेषज्ञों को भी शामिल किया जा सकता है। अगर लाभ लागत से कहीं अधिक दिखाई पड़ते हैं तो समिति ऐसी पेशकश स्वीकार कर सकती है और इसमें किए जा रहे दावों की जांच कर सकती है और बातचीत कर कीमत तय करने के बाद ऑर्डर दे सकती है। अगर परीक्षण के मकसद से की गई खरीदारी के अनुकूल परिणाम दिखते हैं तो उसके बाद जरूरत के अनुसार खरीदारी का आकार बढ़ाया जा सकता है।

मगर यह उपाय तभी कारगर साबित होगा जब विशेषाधिकार प्राप्त समितियों के सदस्यों के निर्णयों पर भरोसा होगा। इसके साथ ही समितियों में निर्णय लेने के लिए आवश्यक विश्वास भी बहाल करना होगा। यह बात भी काफी प्रभावी साबित होगी अगर आपसी सांठगांठ का कोई प्रमाण नहीं होने या साधन से अधिक परिसंपत्ति नहीं होने की स्थिति में जांच एजेंसियां इन समितियों के गुणवत्तापूर्ण निर्णयों की जांच नहीं करेंगी। यह प्रक्रिया अमल में आने और कुछ जांच से जुड़े ऑर्डर पूरा होने के बाद दूसरी इकाइयां भी नवाचार के लिए आगे आएंगी।

कुछ खास एवं विभिन्न प्रकार की समस्याओं की पहचान कर और इन्हें चुनौती मानते हुए नवाचार को और बढ़ावा दिया जा सकता है। यह बिल्कुल स्पष्ट होना चाहिए कि किस तरह की बाधाएं सामने आ रही हैं। नए नवाचार का आधार वास्तविक जरूरत होना चाहिए ताकि कोई समाधान विकसित होने पर खरीद प्रक्रिया स्वतः ही काम करने लगे।

किसी कंपनी, समूहों, तकनीकी संस्थान, कुछ खास लोगों या इनमें किसी भी एक से अधिक इकाइयों के समूहों को समस्या की पहचान करने का उत्तरदायित्व दिया जाना चाहिए। परियोजना स्तर पर किए जाने वाले प्रयास के लिए वित्त पोषण पूरी तरह प्रायोजक एजेंसियों की तरफ से होना चाहिेए।

इस तरह की पहल में अधिक समय लग सकता है और लागत भी अनुमान से अधिक रह सकती है। इन बातों को समझने एवं स्वीकार करने की जरूरत है तभी बाद में ऑडिट या किसी तरह की जांच से जुड़ी चिंताएं मन में नहीं आएंगी।

सफलता के बाद जिस मूल्य पर उत्पाद खरीदा जाएगा उसे बातचीत के जरिये तय करना होगा। बातचीत के आधार पर तय मूल्य पर खरीदारी करने और वार्ताकारों पर विश्वास करने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है। अगर तकनीकी चुनौती का समाधान किसी शोध संस्थान के दल द्वारा किया जाता है तो उस स्थिति में उत्पादन की जिम्मेदारी शोध सह चयन प्रक्रिया के जरिये किसी विनिर्माण कंपनी को देने की आवश्यकता होगी।

परमाणु ऊर्जा विभाग, अंतरिक्ष एवं रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन इन विधियों को अपना कर सफल कार्यों को अंजाम दे चुके है। भारत को इनका लाभ अवश्य मिलेगा। मगर भारत में दूसरे संगठनों को ऐसा करने के अवसर नहीं दिए गए हैं। अब समय आ गया है कि इसके दायरे में सभी सार्वजनिक खरीदारी लाई जाए ताकि तेजी से बढ़ती नवाचार क्षमता का लाभ सभी को मिल सके और भारत नवाचार का एक बड़ा केंद्र बन सके।

अवांछित मगर नवाचार आधारित पेशकश प्राप्त करने, पारदर्शी तरीके से गुणवत्ता के आधार पर उन पर विचार करने और बातचीत के आधार पर खरीद का निर्णय लेने के लिए एक मार्ग खोला जाना चाहिए। यह प्रावधान सामान्य प्रतिस्पर्द्धी खरीद प्रक्रिया के अतिरिक्त होना चाहिए।

एजेंसियां नवाचार के लिए आवश्यक जरूरतों की पहचान कर सकती हैं और इस दिशा में किए जाने वाले प्रयासों के लिए वित्त मुहैया कर सकती हैं। सब कुछ ठीक रहने और सफलता मिलने की स्थिति में लागत निकालने के साथ ही तार्किक मार्जिन के साथ सफल समाधान एवं सेवाएं ली जा सकती हैं।

सबसे जरूरी बात, यह स्वीकार करने में किसी तरह की हिचकिचाहट नहीं होनी चाहिए कि शुरुआती चरण में नवाचार के लिए बातचीत के आधार पर कीमत तय किए जाने की जरूरत होती है। इसके बाद नवाचार बड़े पैमाने पर एवं विभिन्न स्तरों पर होना शुरू हो जाएगा।

इसका दायर कचरा प्रबंधन से लेकर चक्रीय अर्थव्यवस्था (सर्कुलर इकॉनमी) और अति महत्त्वपूर्ण सामग्री से लेकर नए हरित एवं हाइड्रोजन अर्थव्यवस्थाओं तक पहुंच जाएगा। इसका लाभ यह होगा कि भारत अनुमानित समय से पहले ही वैश्विक तकनीकी मोर्चे पर विराजमान हो जाएगा।
(लेखक डीआईपीपी, भारत सरकार में सचिव रह चुके हैं)

First Published - February 28, 2024 | 10:08 PM IST

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