एक छोटा बच्चा अपनी साइकिल खड़ी करने के लिए पार्किंग स्टॉल जाता है
स्टॉल का मालिक उस पर हंसता है, गुस्से में वह बच्चा वही सवाल दोहराता है। सीन फिर बदलता है, इस बार स्वीमिंग कॉिपटिशन में वही बच्चा पहले स्थान पर चल रहे बच्चे को उसी सवाल से डराकर पहले स्थान पर आ जाता है। इस सवाल का राज तब खुलता है, जब वह बच्चा अपनी स्कूल बस के कंडक्टर पर वही सवाल दागता है। इस बार कंडक्टर गुस्से में कहता है,’क्या देगा रे तू?’ इस पर बच्चा दांत निपोरते हुए अपनी जेब से ‘पॉपिन्स‘ का पैकेट निकालकर कहता है, ‘क्या लोगे? ओरेंज, पाइनएप्पल या स्ट्रबेरी?’ अब तक तो आप समझ ही चुके होंगे कि हम यहां पारले के ‘पॉपिन्स‘ ब्रांड के नए ऐड कैंपेन की बात कर रहे हैं।
पॉपिन्स के पिछले कैंपेन को खत्म हुए अभी साल भर भी पूरे नहीं हुए हैं। फिर इतनी जल्दी वह नया कैंपेन क्यों लेकर आ गया
? दरअसल, इसकी वजह है 1,400 करोड़ रुपए के देसी कन्फेक्शनरी बाजार पर कब्जे के लिए बढ़ती प्रतिस्पध्र्दा। इसमें कोई दो राय नहीं कि पारले ‘पॉपिन्स‘ इस सेगमेंट का काफी पुराना खिलाड़ी है, लेकिन अब इस सेक्टर में कैडबरी, परफिटी वैन मेली, नैस्ले और गोडरेज जैसी कंपनी भी कूद पड़ी हैं। इससे देश के कन्फेक्शनरी बाजार के 15 फीसदी पर पारले की बादशाहत खतरे में पड़ गई है। खुद पारले भी इस बात को मान रही है।
कंपनी के जनरल मैनेजर (मार्केटिंग) प्रवीण कुलकर्णी का कहना है कि,’बड़े शहरों के बच्चों के बीच हम पसंदीदा ब्रांड नहीं रह गए हैं। पिछले कुछ सालों से हम ‘मेंटोज‘ और ‘पोलो‘ जैसे ब्रांड से भी मात खा रहे हैं।‘ पॉपिन्स के पिछले कैंपेनों में बच्चों को आकर्षित करने की कोशश की गई है। इसके लिए इस उत्पाद के विभिन्न पहलुओं को खास तौर पर उभारा, जैसे अलग–अलग रंग, स्वाद और कीमत। पिछले साल के कैंपेन में इस एक किफायती उत्पाद के रूप में पेश किया गया था। दो रुपए में 10 कैंडी, जबकि दूसरे कैंडीज आम तौर 50 पैसे में आते हैं। लेकिन बच्चों को लुभाने में यह कैंपेन विफल रहा।
इस बार सफलता हासिल करने के लिए पारले ने पहले अपने उपभोक्ताओं यानी बच्चों को करीब से समझने की कोशिश की। कंपनी ने बच्चों के बर्ताव को समझने के लिए चार महानगरों के
400 बच्चों के बीच एक सर्वे किया। साथ ही, बाजार की नजदीकी जानकारी हासिल करने के लिए उसने रिसर्च एजेंसी आईएमआरबी का सहारा लिया। कंपनी को अपने सर्वे में पता चला कि पांच साल से ऊपर के बच्चों को पॉपिन्स ज्यादा अच्छा नहीं लगता। वे इसे बच्चों की टॉफी मानते हैं। साथ ही, बड़े शहरों के बच्चे पॉपिन्स से खुद को जोड़ भी नहीं पाते हैं। इस सर्वे में यह नतीजा निकला कि कंपनी को अब अपने प्रोडक्ट के लिए बड़े बच्चों को टारगेट करना पड़ेगा। कंपनी को पॉपिन्स के बारे में लोगों के मन में अच्छी छवि भी बनानी पड़ेगी। कुलकर्णी का कहना है कि,’बड़े बच्चों की तरफ देखना काफी जरूरी है। न सिर्फ वह ज्यादा खर्च करते हैं, बल्कि जिस प्रोडक्ट का इस्तेमाल वह करते हैं छोटे बच्चे भी उसकी ओर आकर्षित होते हैं।‘
कंपनी ने अपनी क्रिएटिव पार्टनर एवरेस्ट ब्रांड सोल्यूशंस को काफी सीधा सा ब्रीफ दिया था। पारले के लिए पिछले
52 साल से काम कर रही इस ऐड एजेंसी के नैशनल क्रिएटिव डाइरेक्टर एन.पद्मकुमार का कहना है कि,’पारले वाले इस बात के लिए बेहद साफ थे कि उन्हें पॉपिन्स को एटिटयूड से जोड़ना है। हमारा मकसद पॉपिन्स को एक मॉडर्न, स्टाइलिश और एक ऐसा ब्रांड बनाना है, जिसे इस्तेमाल करने पर एक 10 साल के बच्चे को गर्व हो। साथ ही, हमें पॉपिन्स की पुरानी पहचान को भी जिंदा रखना था। एक ऐसी टॉफी, जो दूसरों के साथ मिल बांट कर खाई जा सके।‘
एक महीने तक काफी सोच–विचार करने के बाद एवरेस्ट की क्रिएटिव टीम एक बिल्कुल आइडिया के साथ सामने आई। एक बच्चा और उसका ‘दूं क्या?’ सवाल। पारले को यह आइडिया काफी पसंद आया। वजह केवल धौंस जमाने वाला बर्ताव नहीं था, जो बड़े बच्चों को काफी पसंद आता है। इसकी और बड़ी वजह ‘दूं क्या?’ डॉयलॉग है। गर्मियों की छुट्टियों को देखते हुए वह विज्ञापन तो अभी से बच्चों के चैनलों पर दिखाया जा रहा है। पद्मकुमार का कहना है कि,’टीवी पॉपिन्स के ऐड कैंपेन के लिए काफी अहम माध्यम है। हमारा लक्षित समूह पांच से 14 साल के बच्चे हैं।
प्रिंट मीडिया या इंटरनेट उन पर ज्यादा असर नहीं डालता है। इसलिए हम टीवी पर इतना भरोसा कर रहे हैं।‘ इस कैंपेन पर ज्यादा जोर पोगो, कार्टून नेटवर्क, निक और डिजनी जैसे चैनलों पर दिया जा रहा है। वैसे, स्टार प्लस और जी सिनेमा जैसे आम मनोरंजन और मूवी चैनलों को भी इस कैंपेन में महत्व दिया जा रहा है। ऐसी बात नहीं है कि सारा ध्यान टीवी पर ही दिया जाएगा। इस कैंपेन के तहत कुछ शहरों में ऑउटडोर विज्ञापनों पर भी काफी जोर दिया जाएगा। साथ ही, पारले अब पॉपिन्स के मेक–ओवर के बारे में भी काफी गंभीरता से सोच रही है। कंपनी के जीएम कुलकर्णी का कहना है कि,’हम पैकेजिंग मैटेरियल में बदलाव के बारे में भी सोच रहे हैं। इससे हमें पॉपिन्स को भी से स्थापित करने में काफी मदद मिलेगी।‘ पारले इस कैंपेन पर करीब एक करोड़ रुपए खर्च करेगी, जिससे उससे उमीद है कि पॉपिन्स की सेल्स में 25 फीसदी का इजाफा होगा।