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कर्णाटका बैंक की कहानी: 101वीं वर्षगांठ के जश्न से इस्तीफों तक, अहंकार और संस्कृतियों का टकराव

दोनों पूर्णकालिक निदेशकों के इस्तीफे के पीछे के घटनाक्रमों पर नजर रखने वालों का मानना है कि इससे बैंक के कुछ बोर्ड सदस्यों को खुशी हुई होगी। बता रहे हैं तमाल बंद्योपाध्याय

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तमाल बंद्योपाध्याय   
Last Updated- August 21, 2025 | 11:22 PM IST

कर्णाटका बैंक ने 18 फरवरी, 2025 को अपनी 101वीं वर्षगांठ बड़े धूमधाम से मनाई और इस कार्यक्रम में मानवतावादी और आध्यात्मिक शिक्षक मधुसूदन साई का उद्बोधन हुआ। इस अवसर पर कर्नाटक संगीत कार्यक्रम का आयोजन भी कराया गया। इस मौके पर बैंक के चेयरमैन पी प्रदीप कुमार, प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) श्रीकृष्णन हरिहर सरमा, कार्यकारी निदेशक (ईडी) शेखर राव सहित कुछ स्वतंत्र निदेशक और पूरी प्रबंधन टीम मौजूद थी।

हालांकि, इस कार्यक्रम के कुछ महीने बाद ही, 29 जून को सरमा और राव दोनों ने इस्तीफा दे दिया। सरमा ने इस इस्तीफे के लिए मुंबई में स्थानांतरित होने के अपने फैसले सहित कुछ निजी कारणों का हवाला दिया। वहीं दूसरी ओर राव ने व्यक्तिगत कारणों के अलावा, मंगलूरु में स्थानांतरित होने में अपनी असमर्थता का हवाला दिया। सरमा का इस्तीफा 15 जुलाई से और राव का इस्तीफा 31 जुलाई से प्रभावी हो गया।

बैंक ने दोनों पदों के लिए उपयुक्त उम्मीदवारों की पहचान करने के लिए एक खोज समिति का गठन किया है। इस काम के लिए एक बाहरी एजेंसी को भी शामिल किया गया है। दोनों पूर्णकालिक निदेशकों के इस्तीफे के पीछे के घटनाक्रमों पर नजर रखने वालों का मानना है कि इससे बैंक के कुछ बोर्ड सदस्यों को खुशी हुई होगी।

कर्णाटका बैंक की स्थापना बीआर व्यासराय आचार के नेतृत्व में कृषकों, वकीलों और व्यापारियों के एक समूह ने दक्षिण कन्नड़ क्षेत्र में आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए की थी। इसका कोई जाना-माना प्रवर्तक नहीं है। इसके शेयरधारकों में घरेलू वित्तीय संस्थान, विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक, म्युचुअल फंड और जनता शामिल हैं।

बैंक ने मई 1924 में मंगलूरु के डोंगेरकेरी में पहली बैंक शाखा के साथ परिचालन शुरू किया। दूसरी शाखा, मार्च 1930 में मद्रास (अब चेन्नई) में और तीसरी जनवरी 1934 में उडुपी में खुली। 1960 के दशक में, बैंक ने श्रृंगेरी शारदा बैंक, चित्रदुर्ग बैंक और बैंक ऑफ कर्नाटक का अधिग्रहण किया। आचार बैंक के पहले अध्यक्ष थे। सरमा की जियो पेमेंट्स बैंक लिमिटेड की स्थापना में अहम भूमिका थी और लगभग छह वर्षों तक समूह के साथ जुड़े रहने के बाद वह जून 2023 में कर्णाटका बैंक में शामिल हुए।

बैंक के तब तक के 99 साल के इतिहास में, वे इस पद को संभालने वाले पहले ‘बाहरी व्यक्ति’ थे। ईडी शेखर राव उनसे पहले फरवरी में शामिल हुए। वे भी ‘बाहरी’ थे, हालांकि वे कन्नड़ बोलते हैं। उनकी सरमा के समान ही पृष्ठभूमि थी और उन्होंने निजी क्षेत्र के बैंकों और वित्तीय प्रौद्योगिकी बैंक (फिनटेक) में काम किया था।

परामर्श फर्म कॉर्न फेरी ने सरमा से इस पद के लिए संपर्क किया था, जब इस पद के लिए 19 उम्मीदवारों का साक्षात्कार लिया जा चुका था। बोर्ड की खोज समिति में चेयरमैन प्रदीप कुमार सहित सात निदेशक थे और इन सभी लोगों ने सरमा से मुलाकात की। संयोग से, कुमार भी बैंक के इतिहास में पहले ‘बाहरी’ गैर-कार्यकारी चेयरमैन हैं जिन्होंने 2022 में पदभार संभाला था। फरवरी 2023 में चार घंटे तक चली बातचीत के बाद सरमा ने यह पद स्वीकार कर लिया।

अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि उन्होंने अपनी रजामंदी के साथ तीन शर्तें रखीं कि प्रबंध निदेशक (एमडी) और सीईओ बेंगलूरु में रहेंगे (मंगलूरु में नहीं, जैसी कि परंपरा थी), इसके अलावा कर्णाटका बैंक बड़े पैमाने पर डिजिटलीकरण अपनाएगा और उन्हें बैंक चलाने की स्वतंत्रता होगी, जबकि बोर्ड नीति-निर्माण और शासन के लिए जिम्मेदार होगा। मई 2023 तक, नियामक की मंजूरी मिल गई। सरमा उसी साल जून में बैंक से जुड़ गए। सितंबर 2023 और मार्च 2024 के बीच, बैंक ने बड़े घरेलू वित्तीय संस्थानों से तरजीही आवंटन के माध्यम से 900 करोड़ रुपये और पात्र संस्थागत निवेशकों से 600 करोड़ रुपये जुटाए।

इसने अपनी उच्च लागत वाली टीयर 2 पूंजी का एक बड़ा हिस्सा खत्म कर दिया और तकनीकी मंच बनाने के लिए भारी निवेश किया। साथ ही मुख्य उत्पाद अधिकारी, मुख्य सूचना अधिकारी, मानव संसाधन प्रमुख, कॉरपोरेट और रिटेल बैंकिंग के प्रमुखों के साथ-साथ देनदारियों और तीसरे पक्ष के उत्पाद बिक्री सहित कई वरिष्ठ पदों के लिए बाहरी लोगों को लाकर सीधी भर्ती की गई।

बैंक के बहीखाते में भी यह बदलाव दिखता है। वर्ष 2022-23 (वित्त वर्ष 2023) और वित्त वर्ष 2025 के बीच, इसके ऋण में 27 फीसदी की बढ़ोतरी हुई और यह 61,303 करोड़ रुपये से बढ़कर 77,959 करोड़ रुपये हो गया। वहीं जमा 20 फीसदी बढ़कर 87,368 करोड़ रुपये से 1,04,807 करोड़ रुपये हो गया।निवेशकों ने बैंक की इस प्रगति पर गौर किया। इस दौरान बैंक का बाजार पूंजीकरण 4,238 करोड़ रुपये से बढ़कर 6,637 करोड़ रुपये हो गया। आंकड़े एक अच्छी कहानी बताते हैं। लेकिन यह बेहतर दौर 18 महीने से ज्यादा नहीं चला। अब सवाल यह है कि आखिर बैंक में गड़बड़ी कहां हुई?

दरअसल किसी ‘बाहरी व्यक्ति’ जिसका ताल्लुक कर्नाटक से नहीं है, उसके लिए दक्षिण भारत के राज्य में एक पुराने निजी बैंक की संस्कृति के साथ चलना आसान नहीं है। पहला विवाद, एक स्वतंत्र निदेशक को बोर्ड के चेयरमैन के रूप में बनाए रखना था। संयोग से, एक को छोड़कर, बैंक के बोर्ड में सभी स्वतंत्र निदेशक हैं। ये विशेष निदेशक अपना तीन साल का कार्यकाल पूरा करने वाले थे। बोर्ड की नामांकन और पारिश्रमिक समिति ने इस पद के लिए एक अन्य स्वतंत्र निदेशक की सिफारिश की। लेकिन यह सफल नहीं हुआ और उक्त चेयरमैन बने रहे। इस कदम का विरोध करने वालों में एमडी और ईडी शामिल थे।

एमडी और ईडी के नेतृत्व में नए प्रबंधन का विचार बैंक को नए सिरे से स्थापित करना था और इसे ‘भारत का कर्णाटका बैंक ’ बनाना था। लेकिन एक निदेशक ने कहा कि इसे कर्णाटका बैंक ही रहना चाहिए, जैसा कि यह 100 वर्षों से रहा है। ऐसा लगता है कि यह उन दो ‘बाहरी लोगों’ और परंपरागत लोगों के बीच की लड़ाई में अंतिम कील था जिसमें से पहले बदलाव लाना चाहते थे जबकि दूसरे बैंक की शताब्दी पुरानी संस्कृति को बनाए रखने के लिए दृढ़ थे।

इसे अहंकार या संस्कृतियों का टकराव कहें लेकिन तथ्य यह है कि भारत के कुछ पुराने निजी बैंक बिल्कुल अलग हैं। इन्हें चलाना आसान नहीं है। हमने इसे अन्य बैंकों के साथ भी देखा है। दो शीर्ष इस्तीफे से पहले, मीडिया में सरमा, राव और बैंक के बोर्ड के बीच कुछ खर्चों को लेकर मतभेदों की खबरें भी आईं थीं, जिन्हें बोर्ड की संबंधित समिति द्वारा मंजूरी नहीं दी गई थी।

संयोग से, सरमा के वैरिएबल पे का एक हिस्सा अभी तक नहीं दिया गया है, हालांकि नियामक ने इसे मंजूरी दे दी है। जाहिर तौर पर, बैंक द्वारा उन्हें दी गई वैरिएबल पे राशि, बैंक की मौजूदा पारिश्रमिक नीति से मेल नहीं खाती थी। इसे एक साल बाद संशोधित किया गया था।

First Published : August 21, 2025 | 11:19 PM IST