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वैश्विक इंटरनेट की चुनौती: एआई युग में नए शासनिक सहमति की जरूरत

एआई के दौर में इंटरनेट का संचाल करने के लिए सरकारों और उन निकायों के बीच सहमति की आवश्यकता होगी जो इसके सेवा प्रदाता हैं या इन सेवाओं के बड़े उपयोगकर्ता हैं

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नितिन देसाई   
Last Updated- October 14, 2025 | 11:40 PM IST

बीते कुछ दशकों में जो सबसे अहम तकनीकी उन्नति नजर आई है वह नई सूचना प्रौद्योगिकी के विकास से संबंधित है। वर्ष 1990 में इंटरनेट का इस्तेमाल करने वालों की कुल संख्या करीब 30 लाख थी। इनमें भी अधिकांश लोग अमेरिका में थे। तब से अब तक इंटरनेट के इस्तेमाल में अभूतपूर्व इजाफा हुआ है और आज दुनिया भर में करीब 5.5 अरब लोग इसका इस्तेमाल करते हैं। इसमें विकसित देशों की 93 फीसदी आबादी और विकासशील देशों की 63 फीसदी आबादी शामिल है। मोबाइल संचार और मोबाइल फोन के विकास ने भी इस तेजी में अहम भूमिका निभाई है। यह स्पष्ट रूप से हाल के वर्षों में दुनिया की अब तक की सबसे तेज और बड़ी तकनीकी प्रगति है।

20 वीं सदी के अंत में जब इंटरनेट का इस्तेमाल व्यापक हो चला था और वह बहुत हद तक वाणिज्यिक रुझान वाला हो गया था तब सरकारें मानक निर्धारण, आवंटन अधिकार के लिए संस्थानों के चयन, और इंटरनेट शासन से जुड़े अन्य पहलुओं में अधिक भूमिका चाहती थीं। इसी कारण वर्ष 2003 और 2005 में दो बार विश्व सूचना समाज शिखर सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसमें संयुक्त राष्ट्र के अंतर्गत इंटरनेट गवर्नेंस फोरम (आईजीएफ) की स्थापना की मांग की गई। तब से बीते 20 साल से हर वर्ष आईजीएफ की बैठक हो रही है।

संयुक्त राष्ट्र द्वारा देखे जाने वाले अधिकांश विकास संबंधी मुद्दों में प्रभावी नियंत्रण का केंद्र राष्ट्रीय स्तर पर होता है। यहां तक कि दूरसंचार जैसी अंतरराष्ट्रीय संपर्क वाली गतिविधियों में भी। परंतु इंटरनेट इससे अलग है। यह एक वैश्विक सुविधा है और इसके सभी तत्व वैश्विक प्रकृति के हैं, भले ही उनमें से कुछ किसी राष्ट्र की पहचान रखते हों। इसलिए केवल राष्ट्रीय नीतियों का समन्वय पर्याप्त नहीं है। इंटरनेट बुनियादी रूप से सीमाओं के पार साझेदारियों का नतीजा है। यही वजह है कि इसकी प्रबंधन प्रणाली को वैश्विक प्रबंधन के रूप में देखा जाना चाहिए जिसमें राष्ट्रीय प्रभाव की भूमिका हो। बजाय कि केवल वैश्विक समन्वय की जरूरत वाले राष्ट्रीय प्रबंधन के रूप में।

आईजीएफ की स्थापना 2005 में की गई थी क्योंकि अमेरिका के अलावा अन्य सरकारों के पास इंटरनेट उपयोग और प्रसार संबंधी मानक तय करने के लिए जिम्मेदार संस्थाओं के साथ सार्थक संपर्क नहीं था। इंटरनेट के अधिकांश मानक और कार्य व्यवहार सरकारों द्वारा निर्धारित नहीं किए गए बल्कि इन्हें गैर सरकारी संस्थाओं मसलन इंटरनेट इंजीनियरिंग टास्क फोर्स और इंटरनेट कॉरपोरेशन फॉर असाइंड नेम्स ऐंड नंबर्स (आईसीएएनएन) ने निर्धारित किया। आईजीएफ को एक बहुअंशधारक मंच के रूप में स्थापित किया जाना था ताकि निर्णय लेने के पहले विभिन्न अंशधारकों के बीच सहमति तैयार करने की कोशिश की जा सके। इसका उद्देश्य था बेहतर गुणवत्ता वाले नतीजे प्राप्त करना।

अब इंटरनेट संचालन के नीति-नियम निर्धारित करने में सरकारों की भूमिका स्थापित हो चुकी है। पहले इसमें अमेरिकी सरकार का दबदबा था लेकिन अब वह कमजोर पड़ चुका है। इतना ही नहीं अधिकांश सरकारों ने राष्ट्रीय स्तर पर शासन प्रणाली विकसित की है। हालांकि अब इंटरनेट के संचालन की चुनौतियां बदल चुकी हैं।

आज का इंटरनेट उस समय से बिल्कुल अलग है जैसा कि वह 2005 में आइजीएफ की शुरुआती बैठक के समय था। उस समय इंटरनेट का व्यावसायिक इस्तेमाल शुरू ही हुआ था। अब हालात बदल गए हैं। अब इंटरनेट के प्रभावी संचालन के लिए जो सबसे महत्त्वपूर्ण है, वह है ई-बैंकिंग और ई-कॉमर्स में इसका इस्तेमाल। अब यह बहुत व्यापक पैमाने पर होने लगा है: सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव में, जो उपयोगकर्ताओं को केवल जानकारी हासिल करने में नहीं बल्कि जानकारी और ऐसे विचार साझा करने में जिनका राजनीति प्रभाव भी पड़ता है। इसी तरह ई-गवर्नेंस में इनका इस्तेमाल किया जाता है।

एक नया बदलाव जो देखने को मिल रहा है वह है आर्टिफिशल इंटेलिजेंस के इस्तेमाल में तेज इजाफा। इसका रोजगार और उत्पादकता पर बहुत गहरा असर पड़ने की संभावना है। यह प्रभाव केवल जानकारी प्रदान करने तक सीमित नहीं है बल्कि वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन में जानकारी के इस्तेमाल तक फैला हुआ है। आज इंटरनेट बहुत हद तक व्यावसायिक हो चुका है और इंटरनेट सेवा प्रदान करने वाले कारोबारियों से प्रभावित है। वास्तव में वैश्विक दबदबे वाली अधिकांश कंपनियां अमेरिकी हैं।

इंटरनेट सेवा में दबदबा केवल सामग्री तक सीमित नहीं है, बल्कि उपयोगकर्ताओं की संख्या से भी जुड़ा हुआ है। इसका परिणाम यह होता है कि कोई एक निगम विजेता बन जाता है और अपनी प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त का लाभ उठाता है, जिससे कभी-कभी किसी इंटरनेट सेवा पर लगभग एकाधिकार जैसा हो जाता है। यह प्रभुत्व उपयोगकर्ताओं की जानकारी तक विशेष पहुंच और डेटा उपनिवेशवाद की स्थिति उत्पन्न कर सकता है। आज इंटरनेट पर अमेरिका का प्रभुत्व उसकी सरकार की भूमिका से कम और उसकी इंटरनेट-संबंधित कंपनियों के वैश्विक प्रभाव से कहीं अधिक जुड़ा हुआ है।

इस समय हम सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र में एक बड़ी उछाल के साक्षी बन रहे हैं। यह जनता की नजर में तब आया जब साल 2022 में चैटजीपीटी सामने आया। तब से अब तक एआई का बहुत बड़े पैमाने पर विस्तार हो चुका है। इसने सूचनाओं तक पहुंच को आसान बनाया है। यह इतना अधिक हो चुका है कि कई वेब आधारित सूचना प्रदाता अपनी घटती प्रासंगिकता को लेकर चिंतित हैं।

हालांकि जेनरेटिव एआई के उभार के आर्थिक परिणाम कहीं अधिक गंभीर हो सकते हैं। माना जा रहा है कि यह बहुत बड़े पैमाने पर रोजगार को प्रतिस्थापित कर देगा। ऐसे रोजगारों को जो सेवाओं और उत्पादों को तैयार करने के लिए सूचनाओं का इस्तेमाल करते हैं। उम्मीद यह है कि 19वीं सदी में बिजली के विकास की तरह ही इससे उत्पादकता, सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि होगी और नए तरह के रोजगार तैयार होंगे।

फिलहाल एआई उपक्रम निवेश का प्रमुख केंद्र बने हुए हैं। खासतौर पर अमेरिका में ऐसा हो रहा है। अमेरिकी शेयर बाजार में आई मौजूदा तेजी के 80 फीसदी हिस्से के लिए एआई कंपनियां जिम्मेदार हैं। परंतु जैसा कि अतीत के तकनीकी अविष्कारों के साथ हुआ, इसमें कुछ विजेता होंगे तो कुछ पीछे रह जाएंगे। इंटरनेट शासन के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण पहलू अब डेटा का भारी व्यावसायीकरण और एआई का संभावित प्रभाव होने वाला है। एक चुनौतीपूर्ण मुद्दा यह है कि एआई सेवा प्रदाताओं को इंटरनेट डेटा तक पहुंच प्राप्त होती है, जो सामान्यतः मुफ्त में उपलब्ध होता है, लेकिन उसी डेटा से एआई प्रदाता आर्थिक लाभ कमाते हैं। वास्तव में चीन के योजनाकार श्रम, पूंजी और जमीन की तरह डेटा को भी उत्पादन कारक मान रहे हैं। अधिकांश देश अभी भी डेटा के प्रबंधन और नियंत्रण से जूझ रहे हैं।

इंटरनेट बुनियादी रूप से वैश्विक है और राष्ट्रीय स्तर का प्रबंधन पर्याप्त नहीं है। इंटरनेट और एआई के डिजाइन ही नहीं, बल्कि उनके वैध उपयोग पर भी वैश्विक सहमति आवश्यक होगी। प्रभावी इंटरनेट शासन के लिए केवल सरकारों के बीच ही नहीं, बल्कि उन कंपनियों के बीच भी सहमति ज़रूरी होगी जो इंटरनेट और एआई में सेवा प्रदाता या प्रमुख उपयोगकर्ता हैं। एक प्रारंभिक कदम के रूप में, आईजीएफ से यह अपेक्षा की जा सकती है कि वह सरकारों द्वारा औपचारिक विचार के लिए एक योजना तैयार करे।


(लेखक उस कार्य समूह के अध्यक्ष रहे हैं जिसने आईजीएफ की स्थापना के बारे में सलाह दी थी)

First Published : October 14, 2025 | 11:20 PM IST