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प्रधानमंत्री जन धन योजना: फाइनेंशियल इंक्लूजन की क्रांति और पहले दशक की अन्य उपलब्धियां

प्रधानमंत्री जन-धन योजना के 56 करोड़ खातों में कुल 2.64 लाख करोड़ रुपये जमा। बता रहे हैं तमाल बंद्योपाध्याय

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तमाल बंद्योपाध्याय   
Last Updated- August 28, 2025 | 10:25 PM IST

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने 6 अगस्त को मौद्रिक नीति समीक्षा के बाद मीडिया के साथ बातचीत में नागरिकों के हित और कल्याण की बात की, जिसमें ‘पिरामिड के निचले स्तर’ पर रहने वाले लोग भी शामिल हैं। उन्होंने कहा, ‘आरबीआई के लिए, भारत के नागरिकों के हित और कल्याण सबसे महत्त्वपूर्ण हैं। भारत के लोग ही हमारे अस्तित्व का कारण हैं, जिनमें सबसे गरीब लोग भी शामिल हैं।’ इसके बाद, उन्होंने बैंकों को निर्देश दिया कि वे जन धन खातों के लिए ‘नो योर कस्टमर’ के दोबारा नवीनीकरण (री-केवाईसी) और सूक्ष्म बीमा तथा पेंशन योजनाओं के लिए कैंप लगाएं।

री-केवाईसी के तहत ग्राहकों की जानकारी फिर से अद्यतन की जाती है। बैंकों ने जुलाई से ऐसे कैंप लगाने शुरू कर दिए हैं और सितंबर के अंत तक इन्हें जारी रखेंगे ताकि ग्राहकों को उनके घर के पास ही सेवाएं मिल सकें। री-केवाईसी और नए बैंक खाते खोलने के अलावा इन कैंपों का ध्यान वित्तीय समावेशन के लिए सूक्ष्म बीमा और पेंशन योजनाओं पर है और साथ ही इनका मकसद ग्राहकों की शिकायतें दूर करना भी है।

जन धन खातों को कम जोखिम वाला माना जाता है, इसलिए बैंकों को ऐसे खातों के लिए हर 10 साल में एक बार री-केवाईसी करना होता है। इनमें से कई खाते 28 अगस्त, 2014 को प्रधानमंत्री जन-धन योजना शुरू होने के शुरुआती सालों में खोले गए थे। इस योजना की शुरुआत के पहले सप्ताह में 1.8 करोड़ बैंक खाते खोले गए थे। हालांकि बाद में कई खाते निष्क्रिय हो गए हैं, जिन्हें फिर से सक्रिय करने की जरूरत है ताकि खाताधारक योजनाओं के लाभ से वंचित न रहें।

कोई भी खाता तब निष्क्रिय हो जाता है जब उसमें लंबे समय तक (अक्सर एक साल से ज्यादा) कोई लेन-देन नहीं होता है। इसे फिर से चालू करने के लिए, उसमें पैसा जमा करना या पैसा निकाला जाना चाहिए। बैंक खातों को निष्क्रिय इसलिए करते हैं ताकि अगर खाताधारक उसे भूल गया हो, तो उसमें कोई अनधिकृत गतिविधि न हो। आजादी के बाद से भारत ने औपचारिक बैंकिंग नेटवर्क का विस्तार करने के लिए बहुत प्रगति की है। देश के कुल जमा का 85 फीसदी रखने वाले 14 बैंकों का 19 जुलाई, 1969 को राष्ट्रीयकरण किया गया। वर्ष 1980 में दूसरे दौर में छह और बैंकों का राष्ट्रीयकरण हुआ। इसके बाद, 91 फीसदी बैंकिंग उद्योग, सरकार के स्वामित्व में आ गए।

राष्ट्रीयकरण से पहले, निजी स्वामित्व वाले बैंक बचत वाली जमा रकम जुटाते थे और अधिकांशतः बड़े व्यापारिक घरानों के लिए ही पैसे का लेन-देन करते थे। देश की आबादी के एक बड़े वर्ग के पास, न तो उधार लेने के लिए और न ही बचत करने के लिए बैंकिंग की सुविधा थी।

बैंकों के राष्ट्रीयकरण से बैंकिंग नेटवर्क का विस्तार करने और अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचने की शुरुआत हुई, लेकिन ‘हर 10,000 लोगों के लिए एक बैंक शाखा’ का सपना 1980 के दशक तक अधूरा रहा। प्रधानमंत्री जन-धन योजना ने इस दिशा में एक बड़ा बदलाव किया। यह सरकार की एक ऐसी वित्तीय समावेश योजना है जिसका उद्देश्य देश के सभी वर्गों तक बैंक खातों, पैसे भेजने, ऋण लेने, बीमा और पेंशन जैसी वित्तीय सेवाओं की पहुंच बनाना है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त, 2014 को अपने पहले स्वतंत्रता दिवस भाषण में इस योजना की घोषणा की थी। योजना के उद्घाटन के दिन ही 1.5 करोड़ बैंक खाते खोले गए और पहले सप्ताह में कुल 1.8 करोड़ खाते खोले गए। इस तरह इस योजना के तहत ‘एक सप्ताह में सबसे ज्यादा बैंक खाते खोलने’ का गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड भी बना। एक दशक बाद, अगस्त 2025 के पहले सप्ताह में कुल प्रधानमंत्री जन-धन योजना खातों की संख्या 56.1 करोड़ हो गई। इन खातों में कुल 2.64 लाख करोड़ रुपये जमा हैं जिसमें प्रति खाते का औसत बैलेंस 4,726 रुपये है। ऐसे लाभार्थियों को 38.59 करोड़ रुपे क्रेडिट कार्ड जारी किए गए हैं। प्रधानमंत्री जन-धन खातों से रुपे कार्ड को जोड़ने से डिजिटल लेनदेन कई गुना बढ़ गए थे।

सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने इस अभियान में शानदार भूमिका निभाई है। उन्होंने 43.51 करोड़ खाते खोले हैं जो कुल जन-धन खातों का 77.55 फीसदी है। इसके बाद, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (10.56 करोड़ यानी18.80 फीसदी), निजी बैंकों (1.84 करोड़ यानी 3.30 फीसदी), और ग्रामीण सहकारी बैंकों (लगभग 10 लाख यानी ​0.35 फीसदी) का स्थान आता है। प्रधानमंत्री जन-धन योजना (पीएमजेडीवाई) के लाभार्थियों की संख्या रूस (जिसका कुछ हिस्सा एशिया में है), तुर्की, जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन, इटली, स्पेन और पोलैंड सहित यूरोप के एक बड़े हिस्से की संयुक्त आबादी से ज्यादा है। केवल बैंक खातों की संख्या पूरी कहानी नहीं बताती। कुल पीएमजेडीवाई खातों में से 66.75 फीसदी यानी 37.44 करोड़ खाते देश के ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में हैं और 33.25 फीसदी (18.66 करोड़ खाते) शहरी क्षेत्रों में हैं।

खास बात यह है कि महिला लाभार्थियों की संख्या पुरुषों से अधिक है। अगस्त के पहले सप्ताह में 31.27 करोड़ (55.70 फीसदी) महिला लाभार्थी थीं। पीएमजेडीवाई वास्तव में बहुचर्चित जन-धन-आधार-मोबाइल (जैम की तिकड़ी) का मुख्य चालक है, जिसने भारत की बैंकिंग व्यवस्था बदल दी है। जन-धन खाते वॉलेट की तरह हैं और आधार हर व्यक्ति की असली पहचान सुनिश्चित करता है और मोबाइल फोन पैसों के लेन-देन का साधन है। मोबाइल के अलावा, क्यूआर कोड और प्वाइंट ऑफ सेल्स (पीओएस) मशीनों ने जन-धन खातों में आसान लेन-देन को बढ़ावा दिया है।

इन तीनों ने मिलकर प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) को संभव बनाया है, जो सब्सिडी और कल्याणकारी योजनाओं को सीधे लाभार्थियों तक पहुंचाता है और इसमें कोई बिचौलिया नहीं होता और न ही पैसे का दुरुपयोग होता है। वर्ष 2013-14 में डीबीटी के तहत 28 योजनाएं थीं, जो 2024-25 में बढ़कर 323 हो गईं। इसी दौरान, हस्तांतरित की गई राशि भी लगभग 10 गुना बढ़ी और यह 7,400 करोड़ रुपये से बढ़कर लगभग 7 लाख करोड़ रुपये हो गई।

डिजिटल लेनदेन में बढ़ोतरी का एक और कारण रुपे कार्ड है। जन-धन योजना के तहत 38.68 करोड़ रुपे कार्ड जारी किए गए, लाखों पीओएस मशीनें लगाई गईं और मोबाइल-आधारित भुगतान प्रणाली ने मिलकर वित्तीय समावेश अभियान को बढ़ावा दिया है। अब औसतन, एक बैंक शाखा 7,100 लोगों को सेवाएं देती है। हालांकि जन धन योजना की कुछ चुनौतियां भी हैं। जनवरी 2025 तक, 21.17 फीसदी जन धन खाते निष्क्रिय थे। इसके कई कारण हैं, जिनमें से एक ग्रामीण से शहरी इलाकों में लोगों का पलायन हो सकता है। इसके अलावा ऐसे कई मामले सामने आए हैं जिनमें एक व्यक्ति के कई खाते हैं जो ‘म्यूल खाते’ के तौर पर अवैध गतिविधियों के लिए इस्तेमाल होते हैं।

बैंक केवल खाते ही खोल सकते हैं लेकिन वे आय का सृजन नहीं कर सकते हैं। अगर ग्रामीण क्षेत्रों की आय नहीं बढ़ती है, खाते का इस्तेमाल नहीं होता है और न पूंजी आती है तब बैंक खाते निष्क्रिय हो जाएंगे। इसका समाधान रोजगार के मौके तैयार करने से जुड़ा है। लेकिन यह अलग मुद्दा है।


(लेखक जन स्मॉल फाइनैंस बैंक केवरिष्ठ सलाहकार हैं)

First Published : August 28, 2025 | 10:12 PM IST