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भारत में नए आविष्कार के युग का उदय, छात्रों ने 6 हफ्तों में पेश किए पेटेंट-योग्य प्रोटोटाइप

वर्तमान दौर में सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि ध्यान 'आविष्कार' पर केंद्रित हो, न कि महज 'नवाचार' पर। बता रहे हैं अजित बालकृष्णन

Last Updated- August 26, 2024 | 9:45 PM IST
The era of new invention dawns in India, students present patent-eligible prototypes in 6 weeks भारत में नए आविष्कार के युग का उदय, छात्रों ने 6 हफ्तों में पेश किए पेटेंट-योग्य प्रोटोटाइप

कुछ हफ्ते पहले एक सुबह मैं भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) बंबई के सम्मेलन कक्ष में बैठा था। मैं उस कक्ष में छह अन्य लोगों के साथ एक कार्यक्रम शुरू होने का इंतजार कर रहा था। पूरा हॉल आईआईटी के छात्रों एवं प्राध्यापकों से खचाखच भरा था। इस भारी जुटान के लिए मैं मानसिक रूप से तैयार भी था।

इसका कारण यह था कि मुझे आईआईटी और आईआईएम (भारतीय प्रबंध संस्थान) से किसी न किसी कार्यक्रम में शामिल होने के निमंत्रण मिलते रहते हैं। मुझे निर्णायकों की उस समिति में शामिल होने के लिए कहा जाता है जिसके सामने आईआईटी या आईआईएम के छात्र अपने शोध पत्र या उद्यम के विचार रखते हैं। मैं कुछ घंटों तक नए अल्गोरिद्म पर चर्चा सुनने और उस पर विचार-विमर्श करने के लिए मानसिक एवं भावनात्मक रूप से पूरी तरह तैयार था।

मुझे बताया गया कि उस दिन 10 टीमें आएंगी और हर टीम में दो सदस्य होंगे। प्रत्येक टीम अपने उत्पादों के नमूने या प्रोटोटाइप पेश करेगी, जो उन्होंने आईआईटी बंबई में छह सप्ताह ठहरकर तैयार किए हैं। आयोजकों ने जोर दिया कि कार्यक्रम में हिस्सा ले रहे सभी भागीदारों का जोर ‘इन्वेंशन’ (आविष्कार) पर रहेगा ‘इनोवेशन’ (नवाचार) पर नहीं।

वे लोग तो इस पर चर्चा कर रहे थे मगर मैंने इस बीच चुपके से अपना मोबाइल फोन निकाला और अपने दोस्त चैटजीपीटी से दोनों के बीच अंतर समझने की कोशिश की। मैंने अपने दोस्त से यह भी कहा कि उनके बीच अंतर केवल एक वाक्य में बताओ। मेरे दोस्त चैटजीपीटी ने तुरंत मेरी इच्छा पूरी की और बताया, ‘आविष्कार कुछ नया तैयार कर देने की प्रक्रिया है, जबकि नवाचार में पहले से मौजूद विचारों को सुधारकर और बदलकर बेहतर इस्तेमाल किया जाता है’। इस उत्तर से चीजें अधिक स्पष्ट हो गईं।

प्रस्तुति शुरू होने के बाद मैं अचरज में पड़ गया। मैंने तो खुद को समझाया था कि आईआईटी क्या किसी भी इंजीनियर कॉलेज के छात्र केवल छह हफ्तों में तैयार प्रोटोटाइप से क्या दिखा सकते हैं? मुझे लगा था कि छह हफ्तों में उन्होंने जो भी सोचा है, उसके बारे में वे पावर पॉइंट प्रस्तुति के जरिये बताएंगे। मगर जो हुआ उसने मुझे भौंचक्का कर डाला। मंच पर आने वाली हरेक टीम ने अपने विचार रखते समय केवल पावर पॉइंट प्रस्तुति ही नहीं दी बल्कि तैयार उत्पाद भी सामने रख दिया।

उदाहरण के लिए एक टीम ने तरल पदार्थ की बोतलों पर लगाने वाला ढक्कन दिखाया। उसने दिखाया कि उस ढक्कन की मदद से कैसे बोतल से निश्चित मात्रा में तरल निकाल सकते हैं। इस्तेमाल करने वाला व्यक्ति ढक्कन में लगे शाफ्ट को घुमाकर किसी निश्चित मात्रा (मान लीजिए 50 मिलीलीटर) पर सेट कर दे तो बोतल झुकाने पर उतनी ही मात्रा में तरल बाहर आता है।  आसान शब्दों में कहें तो आपको मात्रा बार-बार नापने की जरूरत नहीं पड़ेगी, यह काम ढक्कन की मदद से अपने आप हो जाएगा।

टीम का कहना था कि इस ईजाद से उन लोगों को मदद मिलेगी, जिन्हें नियमित तौर पर एक निश्चित मात्रा में दवा लेनी होती है। मैं यह सोचकर हैरान था कि उस टीम ने महज छह हफ्ते में ऐसा अनूठा उत्पाद तैयार कर लिया था।

दूसरी टीम ने ‘माउंटेबल गारबेज कॉम्पैक्टर’ का नमूना पेश किया। इस कॉम्पैक्टर का इस्तेमाल नगर निगम के कूड़ेदान में किया जा सकता है। इसे कूड़ेदान के ढक्कन पर रखा जाएगा तो यह कचरे को दबा देगा, जिससे उसमें और कचरे के लिए जगह बन जाएगी यानी कूड़ेदान में अधिक कचरा भरा जा सकेगा।

दूसरे शब्दों में ‘कॉम्पैक्टर’ की मदद से नगर निगम के कूड़ेदानों में सामान्य से चार-पांच गुना अधिक कचरा आ सकेगा। मैं यह सोचकर दंग था कि इन बच्चों को कूड़े के बेहतर तरीके निपटान जैसी समस्याओं का ख्याल भी आखिर कैसे आया। मेरी पीढ़ी के आईआईटी एवं आईआईएम के बच्चे गणित के मॉडलों में ही दिमाग खपाते रह गए थे और शायद ही किसी ने तकनीक के जरिये देश के नागरिकों की जीवन शैली सुधारने के बारे में सोचा था।

मुझे सबसे ज्यादा मगर सुखद आश्चर्य तब हुआ, जब एक युवक और युवती अपना आविष्कार लेकर मंच पर आए। उनके पास एक छोटे से उपकरण का प्रोटोटाइप था, जिसमें एयर कंप्रेसर बैग लगा था। अगर आप लंबे समय से मांसपेशी के दर्द से जूझ रहे हैं तो इस बैग को अपनी पेशियों के इर्दगिर्द लपेट सकते हैं।

बैग में दर्द खत्म करने वाला मरहम भी भरा जा सकता है। एथलीट एवं फुटबॉल प्रेमी होने के कारण यह प्रयोग मुझे बहुत काम का लगा। मगर ज्यादा सुखद आश्चर्य यह था कि इसे तैयार करने वाली टीम में एक महिला भी थी। महिला आविष्कारक? मैं जानता हूं  कि भारत में महिलाएं कई ऊंचे पदों पर पहुंच चुकी हैं।

देश के कई बड़े बैंकों में महिलाएं मुख्य कार्याधिकारी बन चुकी हैं और इस समय देश की वित्त मंत्री भी महिला ही हैं। मगर 20 वर्ष की किसी लड़की का इतने काम की ईजाद में योगदान करना वाकई चौंकाने वाला था। जब आप किसी महिला को एक अनूठे आविष्कार में भागीदार बना देखते हैं तो आपको तुरंत अहसास होता है कि सभ्यता के रूप में भारत ने शानदार प्रगति कर ली है। उस दिन ऐसी कई महिलाएं नजर आईं।

उस दिन अपने आविष्कार दिखाने वाली प्रत्येक टीम ने अपने इन अनूठे उत्पाद में पेटेंट कराने लायक खूबियों का भी जिक्र किया। उन्होंने बताया कि उनके उत्पाद किस तरह अलग थे और बाजार में मौजूद ऐसे दूसरे उपकरणों से बेहतर थे। इतना ही नहीं, उन्होंने यह भी बताया कि उन्हें भारत और अमेरिका में उनके उत्पादों के अस्थायी पेटेंट भी मिल गए हैं! उस दिन हमने जो 10 प्रस्तुतियां देखीं, वे आईआईटी एवं अन्य इंजीनियरिंग संस्थानों से आए 700 आवेदनों में चुनी गई थीं। इसकी आयोजक एक गैर-लाभकारी संस्था मेकर भवन फाउंडेशन है, जिसकी शुरुआत आईआईटी के पूर्व छात्रों ने अमेरिका में की थी।

हाल के वर्षों में भारत ने महसूस किया है कि स्टार्टअप एवं ‘कौशल’ देश में आर्थिक वृद्धि और रोजगार सृजन को बढ़ावा देने में प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं। राष्ट्रीय कौशल विकास मिशन,आत्मनिर्भर एवं कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय सभी केंद्र एवं राज्य स्तरों पर कई कार्यक्रम चलाते हैं। भारत में ऐसी कई वित्तीय इकाइयां भी हैं, जो स्टार्टअप इकाइयों में निवेश करने पर विचार कर रही हैं।

मगर ‘इन्वेंशन फैक्टरी’ उन सभी से अलग हैं क्योंकि वह पावर पॉइंट प्रस्तुति और अगले कुछ वर्षों के लिए कारोबारी अनुमानों के बजाय वास्तविक उपकरण (फिजिकल डिवाइस) तैयार करने पर ध्यान दे रही हैं, जो एकदम नए विचार वाले यानी पेटेंट कराने योग्य हैं। महत्त्वपूर्ण बात यह है कि ध्यान ‘आविष्कार’ पर केंद्रित हो ‘नवाचार’ पर नहीं।

(लेखक इंटरनेट उद्यमी हैं)

First Published - August 26, 2024 | 9:42 PM IST

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